कुम्हार के चाक पर रखा कोई कच्चा घड़ा थोड़ी हूँ कि जब चाहो जैसे चाहो तुम बदलते रहो मेरा आकार: डा0 सूफिया अहमद

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कुम्हार के चाक पर रखा कोई कच्चा घड़ा थोड़ी हूँ कि जब चाहो जैसे चाहो तुम बदलते रहो मेरा आकार: डा0 सूफिया अहमद

मैं मेरे जैसी ही अच्छी हूँ

कुम्हार के चाक पर रखा

कोई कच्चा घड़ा थोड़ी हूँ

कि जब चाहो

जैसे चाहो

तुम बदलते रहो मेरा आकार

उकेरते रहो अपने मनपसंद फूल पत्तियाँ

रंगते रहो जैसे चाहे वैसे रंग में

मैं तो चट्टान हूँ

सख़्त और मजबूत

मुझे अपने आकार में तब्दील करने के लिए

तुम्हें मुझ तक चल कर

खुद आना होगा

क्या आ सकोगे

छोड़कर सारा दंभ, ग़ुरूर, अहंकार

नहीं न

तो मुझे मेरे जैसा ही रहने दो।



चलो रहने दो

मत दो मुझे इज़्ज़त विज़्ज़त

न तुम मेरे दाता हो

न मैं याचक

मैं कुलटा, चरित्रहीन, बेहया सही

नही चाहिए तुम्हारा दिया हुआ सम्मान

कितने चालाक हो तुम

बार बार छुपते छुपाते फिरते हो

अपनी दरिद्रता

इन ढकोसलों के पीछे

मेरा जिस्म, आँखें, दिल

सबकी मालकिन मैं

इजाज़त नहीं चाहिए तुमसे

देखने, बोलने या प्यार करने की

मेरा जो है

क्यों मांगू तुमसे

खुद हासिल कर लूंगी

इज़्ज़त, रुतबा, प्यार सब

अब जाके तो प्यार हुआ है

खुद से

ख़ुदी से

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