जयभीम' पुलिसिया जुल्म और जाति की पीड़ा के बीच स्त्री के संघर्ष की नायाब कहानी

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जयभीम पुलिसिया जुल्म और जाति की पीड़ा के बीच स्त्री के संघर्ष की नायाब कहानी
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कई बार आप फिल्म नाम देख कर शुरू करते है , ऐसा ही मेरे साथ शुरू हुआ | उत्तर भारत में जय भीम एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का नारा है पर दक्षिण में भी ये उतना ही प्रभाव रखता है ये देखने की चाहत के साथ जब ये फिल्म देखने बैठे तो रात कब भोर में बदल जाती है पता ही नहीं चलता | इस फिल्म के निर्देशक और कलाकारों को जितना आप सराहें कम है | जाति के नारे पर बनी ये फिल्म कभी भी आपको समाज में व्याप्त कटुता के उस स्तर तक लेकर नही जाती है जहाँ आप अपनी जाति में बदल जाते है |

फिल्म सेंगिनी और राजकंनु , दोनों ही एक घुम्मकड जनजाति के लोग है जो एक गाँव में बाहर की ओर जगह पा कर अपनी दुनिया बसा कर रहते है | उनकी दुनिया कुछ न होने पर भी इतनी हसीन है कि सबकुछ होने वालों को उनपर रस्क हो | पूरी फिल्म शुरू के करीब चालीस से पैतालीस मिनट तक जाति के विभिन्न रूपों को दिखाती है | फिल्म की शुरुआत जाति की गड़ना से है जहाँ पुलिस वाले कमजोर जाति के लोगो को एक लाइन में और मजबूत जाति के लोगो को दूसरी लाइन में लगाते है और अपना कई केस निपटाने और प्रमोशन पाने के लिए इन कमजोर जाति के लोगो पर कई तरह के आरोप लगा कर उनको जेल में डाल देते है |

सेंगिनी और राजकंनु दोनों अपनी बेटी के साथ खुश है और अब उनकी चाहत एक इट से बने पक्के मकान की है | चाहत कितनी दुर्लभ चीज है जो व्यक्ति के साथ बदलती है , एक व्यक्ति के लिए जो इट और पत्थर का घर है वो किसी का ख्वाब है | इसी ख्वाब के साथ दोनों काम करते है | दोनों सांप पकड़ने और उनका जहर मिटाने के काम में भी पारंगत है जिसके कारण उनको लोगो द्वारा बुलाया जाता रहा है |

सांप पकड़ना और उनको न मारना बल्कि ये कह के छोड़ देना की मनुष्य के पास फिर मत आना , इसके अलावा कई दृश्य में कई जानवरों को बचाना उनकी प्रकृति के साथ चलते जीवन को भी दिखाता है | खेत में उनका चूहों को पकड़ना और अपने घर ले जाने का दृश्य हमें उत्तर भारत की मुसहर जाति का भी भ्रम देता है पर ये अलग जनजाति है जो सालो से भारत में रहते है पर उनकी कोई पहचान नही है |

एक दृश्य बड़ा ही जबरदस्त है जहाँ ये अपना जाति का प्रमाणपत्र बनवाने जाते है और उनसे उनकी पहचान के लिए कई तरह के प्रमाणपत्र मांग लिए जाते है | उनमे से एक व्यक्ति जब ये कहता है की हम तो उनसे एक प्रमाणपत्र मांगने गए थे और उन्होंने हमसे इतने सारे प्रमाण मांग लिए , एक काम करते है एक सांप पकड कर उनके केबिन में डाल देते है तो उनको पता चल जाएगा की हम कौन है | ये संवाद सिस्टम के असफलता की कहानी बयां कर रहा है | जिसके लिए सारी योजना बन रही है वो ही उस योजना का लाभ नही ले सकता क्योंकि उसके पास कोई प्रमाण पत्र नही है कि वो इसी देश का नागरिक है | अब वो प्रमाण लाये तो कहाँ से , न अपनी जमीन, न पढाई या स्कूल का सर्टिफिकेट और न ही जन्म का तो वो साबित कैसे करे की भारतीय है | ये प्रश्न हमें इस बात की ओर इशारा कर रहा है की इसको ठीक करना चाहिए |

उनकी दुनिया तब उजड़ जाती है जब वो सांप पकड़ने के लिए एक प्रधान के घर में जाता है और सांप पकड कर छोड़ देता है | पर उस दौरान तिजोरी का खुली होना और उसमे से सांप के निकलने के कारण राजकंनु का हाथ का निशान तिजोरी और उसके इर्द -गिर्द बाद में मिलता है | गहने चोरी हो जाते है और जो सबसे पहला दोषी दिखाई देता है वो इसी जाति के लोग है | सब को पकड़ के थाने में लाने और उनपर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल रोंगटे खड़े कर देता है | सेंगिनी के गर्भवती होने के बावजूद उस पर पड़ रहे डंडे सिस्टम में बैठे ऐसे क्रूर लोगो की कहानी है जो अपने प्रमोशन और केस को हल करने के लिए बेकसूर लोगो को जान से मार देते है |

इस पुलिसिया अत्याचार में राजकंनु की मौत हो जाती है पर चालक पुलिसवाले उसको फरार घोषित कर ऐसी नायब कहानी और गवाह तैयार कर लेते है कि सब को उस पर विश्वास हो जाता है | यही पर एक शिक्षक जो इन लोगो को एडल्ट एजुकेशन में पढ़ाती है इनकी काफी मदद करती है और ये सेंगिनी को फिल्म के हीरो चंद्रू के पास ले कर आती है |

चंद्रू हेबियस कार्पस नाम की रिट उच्च न्यायालय में डालता है और उसके बाद जो कोर्ट रूम ड्रामा है वो आपको फिल्म से एक मिनट भी नजरे हटाने नही देगा | कोर्ट रूम के दृश्य और जिरह कमाल के है और कई जगह लाल झंडा आपको मार्क्सवाद की भी याद दिलाएगा | हर जगह सिस्टम का गरीब को परेशान करना पर उसी सिस्टम में अच्छे लोगो का भी होना फिल्म का उजला पक्ष है | पर इस फिल्म में एक कमाल का दृश्य है जहां पर पुलिस का सबसे उच्च अधिकारी अपने विभाग की इज्जत बचाने के लिए संगिनी को बुलाता है और उसको पैसे और सपोर्ट की पेशकश करता है पर इस स्त्री का उस गरीबी में भी ये कहना की उसका पेट में पल रहा बच्चा जब ये पूछेगा की ये पक्का मकान या ये ऐशो आराम कहा से लायी तो क्या वो ये जवाब देगी की उसके पिता के कातिलों से समझौता कर सब लायी है | वो उनके ऑफर को ठुकराती है और स्वाभिमान और गरीबी को अपने अभिमान के उच्चतम स्तर तक ले जाकर लोगो की तालिया बटोरती है |

चंद्रु का एक आध बार ये पूछना की गाँधी , नेहरू तो है पर आंबेडकर कहाँ है ये उसके झुकाव को बताता है पर जुल्म से लड़ने का रास्ता उसे अम्बेडकर के बनाये संविधान से ही मिलता है | कानून की मदद और पुलिस के ऊपर अदालत का प्रभाव और जज के द्वारा मानवता को बचाने की ये कहानी न तो हमे राजनितिक संघर्षो की ओर मोडती है न समाज में जातीय द्वेष को बढ़ावा देती है | अपने अधिकार के लिए हर जुल्म सहते संविधान के राश्ते दुष्टों के विनाश की ये कहानी आने वाले समय में एक मील का पत्थर साबित होगी |

फिल्म में सीआरपीसी के इस्तेमाल करते चंद्रू अपने हर जवाब के लिए कोर्ट में पहले के सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के वर्डिक्ट को पेश करता है | हेबियास कार्पस में क्रॉस एग्जामिनेशन को लेकर जब वकील सवाल करते है तो चंद्रू का पहले के केस में दिया गया निर्णय सबके सामने लाना बताता है की एक वकील की निगाह कितनी तीक्ष्ण होनी चाहिय और केस के लिए कितना पढना चाहिए | वकील के रूप में सूर्या का अभिनय जबरदस्त है |

इस फिल्म के कलाकार सब वास्तविक लगते है और सूर्या का स्टारडम उसके पात्र को मजबूत बनाता है | पर दुर्भाग्य की हिंदी में न होने के कारण ये एक बड़े वर्ग से दूर रहेगी |

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