मेरी कहानी भाग बारह : मनोविज्ञान विभाग और विधि के प्यार में उलझा रहा साल
देहरादून में जो असफलता मिली और पैर में चोट के साथ बनारस वापसी अपने आप में काफी दुख देने वाला था| पर कहा जाता है कि हौसलों से जंग जीती जाती है तो...
देहरादून में जो असफलता मिली और पैर में चोट के साथ बनारस वापसी अपने आप में काफी दुख देने वाला था| पर कहा जाता है कि हौसलों से जंग जीती जाती है तो...
देहरादून में जो असफलता मिली और पैर में चोट के साथ बनारस वापसी अपने आप में काफी दुख देने वाला था| पर कहा जाता है कि हौसलों से जंग जीती जाती है तो उन्हीं हौसलों को फिर से अपनाकर जुट गए फाइनल ईयर के एग्जाम के लिए।
फाइनल ईयर का एग्जाम काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि पहले दो साल में प्रथम श्रेणी नंबर आ चुके थे और अगर अंतिम साल में भी प्रथम श्रेणी आता तो मास्टर्स में एडमिशन होना पक्का हो जाता।
हुआ भी वही ग्रेजुएशन में फर्स्ट डिवीजन आया और एम् ए . साइकोलॉजी में एडमिशन लिस्ट में अपना नाम आ गया ।
हमारे मित्र सुनील पांडे दोनों जगह लटके हुए थे विश्वविद्यालय के विधि विभाग में भी वो वेटिंग लिस्ट में थे और मास्टर्स में भी उनका वेटिंग लिस्ट में था।
सुनील भाई का पूरा जीवन हम लोगों के ऊपर निर्भर हो चुका था उसी साल एक और घटना घटी जो सुनील पांडे के लिए वरदान साबित हो गई।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने तय किया कि वह पहले उन विद्यार्थियों को मास्टर्स में प्रवेश देंगे जो बैचलर्स काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ही किए हुए हैं |
सुनील भाई की लॉटरी निकल आई बहुत कम नंबर होने के बावजूद भी वह वेटिंग लिस्ट में दूसरे नंबर पर आ गए मैं और मेरे मित्र आनंदेश्वर शर्मा अगर मास्टर्स में एडमिशन ले लेते सुनील पांडे का मास्टर्स में एडमिशन लेने का सपना पुरा ना हो पाता |
वैसे तो हम लोगों के सामने दुविधा की घड़ी थी क्योंकि मास्टर्स की सीनियर लड़कियों ने हमारी रैगिंग पहले ही कर ली थी और उन लोगों को लगा कि यह लोग मास्टर्स में एडमिशन जरूर लेंगे।
उस समय बीएचयू में मनोविज्ञान विभाग काफी अच्छा माना जाता था पढ़ाई भी अच्छी होती थी और साथ ही साथ आप बहुत सारी लड़कियों के बीच होते और वो सुनील पाण्डेय जैसे लडको के लिए प्रेरणा का काम करता था|
हम लोगों का पूरा ध्यान अपने सीनियर्स पर था और उनमें से कई लड़कियों से हम लोगों की बात होती थी | कई के तो हम सपने देख रहे थे कि आने वाले समय में हम लोग इन्हीं के साथ रहने वाले हैं घूमने वाले हैं |
एक लड़की जिसे हम और मेरे कई दोस्त चाहते थे उसने जब मुझसे पूछा की तुम क्यों एडमिशन नही ले रहे हो , मनोविज्ञान से मास्टर्स करने के लिए मौका बार –बार नही मिलता | अब उनको हम लोग क्या बताते की आप ने जो कप्तान साहेब से अपनी दोस्ती जाहिर कर दी उसके बाद से कईयों का दिल टूट गया | क्या रखा है मनोविज्ञान में , और हमे मास्टर तो बनाना नही है इसलिए हम विधि विभाग में प्रवेश ले रहे है |
अश्विनी को इस बात का मलाल था कि वह अगर एडमिशन नहीं ले पाया तो जिसके वह ख्वाब देख रहा है वह पूरा नहीं हो पाएगा। मुझे और आनंदेश्वर शर्मा को उसके सपनों का पूरा पता था हम लोगों ने सोचा चलो इसको जी लेने दो हम लोगों को कौन सा मास्टर बनना है चलते हैं विधि विभाग में और आगे चलकर एल एल एम कर जज बनेंगे।
हम लोगों के निर्णय से कई लड़कियों को निराशा हुई पर वह वक्त प्यार मोहब्बत का नहीं बल्कि हमारे अपने सपने का था जिसमें जज बनना सबसे बड़ा सपना था |
अब वह दिन भी आ गया जब हम लोग फ्रेशर्स पार्टी के लिए तैयार होकर आ गए अपने हाजिर जवाबी से मैंने अपने सीनियर्स का दिल जीत लिया पर राजनीति हर जगह होती है इसलिए मैं अपने साथ पढ़ने वाली एक खूबसूरत सहपाठी के साथ मिस्टर फ्रेशर का टैग न लगा पाया मुझे उपविजेता घोषित कर दिया गया और जिसे विजेता घोषित किया गया वहां की लोकल राजनीति का शिखर पुरुष था |
हालाकि मुझे आज भी इस बात का दुख होता है कि मैं मिस्टर फ्रेशर अगर बना होता तो हमारी फोटो तो जरूर होती और वह जिंदगी भर काम आती है |
खैर मिस्टर फ्रेशर तो नहीं बना पर मिस फ्रेशर हमारे ही अंग्रेजी वाली क्लास में विधि पढने लगी | मैं और मेरे साथ अब एक माननीय न्यायधीश बन गए साथी दोनों ही दूसरी सीट पर बैठ कर किसी के सुगंध का आनंद उठाने लगे |
समय कब बीत गया पता नहीं चला और एक दिन ऐसा आया कि साल भर के बाद जब एग्जाम शुरू हुआ तो नकल होने लगी और इस कारण से वाक आउट होने लगा | कुछ लोगों ने निश्चित किया कि हम लोग बिना नकल एग्जाम देंगे और दुर्भाग्य से उसमें मैं भी था जो बिना नकल एग्जाम देने के पक्ष में था |
इतने में पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया अब एग्जाम देने के लिए जाते हुए भागना पड़ा अच्छा था कि मेरे साथ वहीं मिस फ्रेशर थी जिन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पुलिस से पीटने से बचा लिया |
वह अपनी लूना मोपेड के पास गई और मैंने अपनी यामाहा गाड़ी जो बगल में ही खड़ी थी उसको स्टार्ट किया और बरसते पत्थर के बीच किसी तरीके से वहां से निकल गए | अब हम दोस्त की तरह थे और मेडिकल की कैंटीन में साथ में बैठ कर मिस फ्रेशर और , संगीता , साथ में अब एक जज बन गयी अपनी साथी के साथ गप शप चलने लगी | पर प्यार जैसी चीज से वास्ता अपना पड़ा नही | वही मेर मित्र किसी को चिट्ठी देने के लिए मेरा सहारा मांग रहे थे पर मैंने उसे निर्दयतापूर्वक ठुकरा दिया |
यह साल भी काफी धमाकेदार था पहले मनोविज्ञान में प्रवेश न लेकर विधि में प्रवेश लेना फिर फ्रेशर्स पार्टी में उपविजेता होना ,उसके बाद अपने दोस्त का पुलिस के लाठीचार्ज के बाद डिप्रेशन में जाते हुए देखना |
किसी के मरने का मजाक नही उडाना चाहिए पर विधि में मिस्टर फ्रेशर बने सख्स की मौत हो गयी | अब मै इस बात पे हंसू या रो दू की मै टेक्निकली मिस्टर फ्रेशर हो गया |