काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की कथा

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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की कथा
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मेरी

तीन कहानिया भाग सात

दुनिया

उजड़ चुकी थी जिस माँ के लिए डॉक्टर बनना चाहते थे वो इस दुनिया से जा चुकी थी |

बार –बार इस बात का एहसास सोते समय होता था | कभी डर कर रात में नींद खुलती तो अगल

–बगल माँ नहीं नजर आती थी | अब घर उतना अपना नहीं लगता था | कहीं दूर जाने का मन

पर कहाँ ऐसे में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश मानो जीवन में एक नयी सांस

भर गया |

कुछ

पता नहीं था कि क्या पढना है पर एंट्रेंस में इतने नंबर आ गए थे कि जो भी पढना

चाहे वो मिल सकता था | वहाँ मुलाकात एक शख्स से हुई जो आगे चलकर मेरा अच्छा मित्र

हो गया | घर के पास से ही शशांक जयसवाल और मै अपनी- अपनी साइकिल से यूनिवर्सिटी से

नौ बज कर पांच मिनट पर निकलते थे और ठीक 9 बजकर 35 से 40 मिनट पर यूनिवर्सिटी में

हाजिर हो जाते थे |

हमने

अपना ऑनर्स मनोविज्ञान लिया और अर्थशास्त्र और इतिहास विषय को सब्सिडियरी पेपर के

रूप में लिया | हमारे मित्र ने सोशियोलॉजी ऑनर्स और अर्थशास्त्र और इतिहास लिया -

अब हम दोनों का काम सिर्फ पढना था | पर स्कूल से निकल कर इतने बड़े शिक्षा के

समुद्र में आप तैर तभी पायंगे जब आप थोडा अच्छे तैराक हो जाए | पर हम लोगो के पर

बड़ी जल्दी निकल आये | यहाँ तैरना कौन कहे हम लोगों ने तो उडान भर दी |

अर्थशास्त्र

की कक्षा अच्छी लगती थी और जो मैडम पढ़ाती है उनके बारे में भी जानने की रूचि आ गयी | कहीं से पता

चला कि उनका तो तलाक हो गया है तो हम यही चर्चा करते रहे की इतनी सुंदर मैम को कोई

तलाक कैसे दे सकता है |

पर अपनी यात्रा यही पर नहीं रुकी दोस्त मिलते गए और गैंग बड़ा हो गया | इसमें होस्टल के छात्र भी थे और सिटी स्कॉलर | अब हमे भी लगा कि हास्टल में रहा जाय और ये वो दौर था जब काशी हिन्दू यूनिवर्सिटी में काफी सख्ती होने लगी थी और एक बड़े चर्चित कुलपति के कार्यकाल का समय था | पढना और टेनिस खेलना दो रूचि थी और उम्र के लिहाज से जो अन्य बीमारियाँ लोगो को लगती थी उससे थोडा दूर था |

हमारे मित्र को इस उम्र की पहली बीमारी लगी और उनका साथ देना मै अपना कर्तव्य मानता था | हमारे मित्र काफी लम्बे चौड़े और स्मार्ट थे और हमें ये लगता था की कोई भी लड़की उनको न नही कर पाएगी | हम लगातार अपनी कोशिश जारी रखे हुए थे और हमारे मित्र की दूरियाँ भी नजदीकी में बदल रही थी |

पर एक दिन मै टेनिस कोर्ट में खेल रहा था तभी मित्र के साथी को किसी और के साथ देख आश्चर्य हुआ कि ये क्या हुआ | तुरुन्त अपने मित्र को बुलाया और घटना से अवगत कराया - पर देर हो चुकी थी |

उस घटना से एक बड़ी सबक हम लोगो को जीवन मै पहली बार मिली की बेटा सोशल साइंस पढ़ कर लड़की से इश्क लड़ाने के खाब न देखो क्योंकि लड़की को वहाँ के आई आई टी और मेडिकल के लडको से फुरसत नहीं है |

सोशल साइंस तो उनके शब्दकोष में टाइम पास है | मित्र का दिल टूटा था पर क्या किया जाय यात्रा तो चलती रहनी चाहिए अब हमारे फैकल्टी के नीचे राजनीति शास्त्र की क्लास चलती थी और वहां इस बार हमारे मित्र को एक मृगनयनी भा गयी |

शेष

अगली कड़ी में

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