पत्रकार मंगल ग्रह के प्राणी है, वो कोरोना मुक्त है
भारत में एक बार अखबार और टीवी को दो -तीन दिन के लिए बंद कर दिया जाय और सोशल मीडिया की स्पीड स्लो कर दी जाए तो कोरोना की पैनिक वाली खबरे जरुर कम हो...


भारत में एक बार अखबार और टीवी को दो -तीन दिन के लिए बंद कर दिया जाय और सोशल मीडिया की स्पीड स्लो कर दी जाए तो कोरोना की पैनिक वाली खबरे जरुर कम हो...
भारत में एक बार अखबार और टीवी को दो -तीन दिन के लिए बंद कर दिया जाय और सोशल मीडिया की स्पीड स्लो कर दी जाए तो कोरोना की पैनिक वाली खबरे जरुर कम हो जायेंगी - सारी दुनिया पर ऊँगली उठाने वाले मीडिया ने अपने पत्रकारों और कर्मचारियों की संख्या क्या सरकार के निर्देशों के अनुसार कम किया |
क्या पत्रकार मंगल से आया है उसे कोरोना नहीं होगा | या अखबार के मालिको ने कोरोना से सेटिंग कर ली है की उनके लोगो के पास वो नहीं आएगा | पत्रकार देखते ही कोरोना मुह मोड़ लेगा | कितने अखबार ने घर से काम करने के लिए अपने पत्रकारों को कहा - सारी दुनिया को नसीहत देने वाले ही अपनों की जान जोखिम में डाले हुए है |
वास्तविकता तो ये है की जो सबसे ज्यादा रिस्क उठा रहा है वो पत्रकार ही है | चाहे कनिका कपूर की तस्वीर हो या उन इलाको की तस्वीर जहाँ वो रहती है उसे लेने जाने वाला फोटोग्राफर भी उतना ही बड़ा रिस्क हो सकता है जितना बड़ा कनिका - अब अखबार के मालिको की सत्ता से करीबी उनको नियमो के साथ खिलवाड़ करने के लिए जरुरी ताकत दे देती है |
अख़बार आवश्यक वस्तु में नहीं है और दुनिया बिना अखबारों के भी चलती है | जरुरत है ऐसे नियमो की जहाँ पर पत्रकारों को इन पैसे के चाहत में लगे रहने वाले मालिको से मुक्त कराने की | अगर हम भारत में अच्छी और सच्ची पत्रकारिता के लिए लालसा रखते है तो हमें उसका खर्च स्वयं वहन करना होगा |
भारत सरकार द्वारा जैसे सिविल सर्वेंट नियुक्त किये जाते है उसी तरह एक स्वतंत्र संस्था का गठन करना चाहिए जो विभिन्न शहरो में अख़बार और टीवी चलाये | हालाकि दूरदर्शन हमें उतना अच्छा नहीं लगता पर इस सनसनी खेज जीवन से तो अच्छा है | अगर हम चाहते है की इस संस्था से सरकार का कोई कण्ट्रोल न हो तो जिस तरह शिक्षा के लिए सेस लगाया गया है उसी तरह पत्रकारिता के लिए भी सेस लगाकर एक ऐसी पीढ़ी तैयार की जाए जो सच की लड़ाई के लिए तैयार हो |
ये हम सभी को पता है कि जिस तरह सिविल सर्वेंट सरकार के पिछलग्गू हो जाते है उसी तरह इस तरह के पत्रकार भी सरकार के पीछे -पीछे चलने लगेंगे- पर अगर एक भी पत्रकार टी एन शेषन की तरह इमानदार निकल गया तो पुरे सिस्टम को हिला देगा और हमारी सोच इसी उम्मीद पर कायम है की कभी तो इस तरह के पत्रकार आयेंगे जो सरकारों को अपनी हद में काम करने के लिए कह पायेंगे |