कांग्रेस नेतृत्व ने हरीश रावत को उतराखण्ड का चुनाव कैम्पन जिम्मा सौंपा

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कांग्रेस नेतृत्व ने हरीश रावत को उतराखण्ड का चुनाव कैम्पन जिम्मा सौंपा
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कांग्रेस के नेताओ के बीच एक के बाद एक मनमुटाव की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है।पंजाब में अमरिन्दर सिंह ने कांग्रेस छोड़कर अपनी खुद की पार्टी बना ली गई।हरीश रावत का गुस्सा उतराखण्ड से लेकर हाईकमान तक नजर आया।रावत की नाराजगी साफ झलकी और हरीश रावत कांग्रेस नेतृत्व से मिलकर अपनी जवाबदारी सुनिश्चित कर दी।रावत को उतराखण्ड चुनाव कैंपेन का जिम्मा सौंपा गया।पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का ठीकरा हरीश रावत पर फोड़ा गया था।।हार के बाद हरीश रावत की पार्टी में कोई सुनता नही था।इस लिहाज से हरीश रावत ने पहलिया बुझाने शुरू किया।उससे बात बन गई।दरअसल,कांग्रेस भीतर से खोखली हो गई है।हरीश रावत के अलावा कोई भी कदावर नेता नही बचा है।पिछले चुनाव में कहा जाने लगा कि कांग्रेस की जीत हो या हार वह हरीश रावत के कारण होगी।

मुख्यमंत्री ने पूरे चुनाव में मोदी बनाम रावत नाम दिया था।लेकिन मोदी के सामने खड़े होने वाले हरीश रावत अपने ही गढ़ में चारो खाने चित हो गए।हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र से भाजपा ने उन्हें 12 हजार वोट से हराया।रावत को शायद अंदेशा था।लोकश्रुति थी कि हरीश रावत की वजह से न केवल सतपाल महाराज,विजय बहुगुणा,हरकसिह रावत,यशपाल आर्य जैसे पुराने कांग्रेसियों को पार्टी छोड़नी पड़ी बल्कि मुख्यमंत्री की कार्यशैली से पार्टी के अन्य नेता भी हैरान परेशान रहे।मुख्यमंत्री कार्यालय में उनके भाई,पुत्र,पुत्री की घुसपैठ को भी कांग्रेस के नेता पसंद नही करते थे।वसूली में भी हरीश रावत के पुत्रों के नाम सामने आया था।इसलिए हरीश रावत जड़ से कट गए।उन्हें अब जाकर पता चला है कि उनके नीचे की जमीन खिसक गई है।उतराखण्ड को विकास की ऊंचाइयों पर पहुंचाने और केंद्र की डबल इंजन सरकार ने विकास पहाड़ो तक पहुंचाया है।कांग्रेस नेतृत्व ने हरीश रावत को एक बार आगामी चुनाव को देखते हुए फिर से विश्वास जताया है।लेकिन हरीश रावत की राह आसान नही है।अंदरूनी झगड़े और नाराज कांग्रेस नेताओं के कारण रावत को विरोध का सामना करना पड़ेगा।कांग्रेस ने पहले बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया,फिर हरीश रावत को।इन दोनों गुटों से पांच साल तक जैसे एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास किया ,उससे राज्य का भारी नुकसान हुआ।विधायको को

साधने के लिए लाल बती रेवड़ियों की तरह बांटी गई और राज्य के खजाने पर भारी बोझ पड़ा।इसके बाद में कांग्रेस में विरोध हुआ।मामला अदालत तक पहुंचा।तब तो सत्ता बच गई।लेकिन इस गुटबाजी के लिए जनता ने सबक सिखा दिया।वैसे भी हरीश रावत को मोदी मन्त्र को कट कर पाना कांग्रेस के बश में नही है।

*कांतिलाल मांडोत *

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