अज्ञान के सघन अंधकार से बढ़कर अपने जीवन का और कोई खतरनाक शत्रु नही है।और नही हो सकता है।इसी कारण हम अनेकों इच्छाओ से वंचित रह जाते और बुराई को भी अच्छा मानकर उसे अपना कर अनमोल समय एवं मानव जीवन को व्यर्थ गंवा देते है ।ज्ञान के अभाव में की गई साधना,उपवास तप मात्र मुर्दे को श्रृंगार कराने समान है।विश्व के सभी महापुरुषों ने अलौकिक ज्ञान का मार्ग दिखाकर उस पर चलने का आह्वान किया है।हम सभी को मिलकर विश्व को ज्ञान के प्रकाश से जन जन को प्रकाशित करने के कार्यो को प्राथमिकता देनी है।ज्ञान एक ऐसा अनमोल खजाना है जो बांटने से बढ़ता है।इसे न तो कोई चुरा सकता है और न कोई बंटवारा कर सकता है।राजा अपने ही देश मे पूजा जाता है परन्तु विद्वान पूरे संसार का आदरणीय बनता है।
हम जो विश्व मे झगड़े और अशांति देख रहे है उसका मूल कारण ही अज्ञान है।खाने पीने जैसा व्यवहारिक ज्ञान तो पशुओ के पास भी है।यदि विधाध्यन का लक्ष्य मात्र जीवन यापन का बनाया तो पशु व हमारे में क्या अंतर रहेगा।सर्वोपरिय अध्यायात्मिक ज्ञान है और हमारा लक्ष्य महान होना चाहिए।हम यहा से अगर अगले जन्म में जाते है तो आत्मा में मात्र ज्ञान का संस्कार ही साथ जाता है।सुख दुःख का अनुभव करने वाली संवेदनशील आत्मा स्वयं ज्ञान व चेतना से युक्त हलचल व चलन की क्रिया स्वयं में हो रही हो तो भी आत्म तत्व को स्वीकार नही करना उस पर संदेह करना प्रत्यक्ष को ठुकराने के समान ही होगा।
विपरीत निश्चय या मिथ्या धारणा को भ्रम है और कारणवश कुछ न कुछ समझना भ्रम है।कविवर बनारसीदास ने खूब लिखा कि एक व्यक्ति पहाड़ पर जन्मा।वही पला बढ़ा और रहने लगा।वह कभी पहाड़ से नीचे नही उतरा।एक व्यक्ति पहाड़ से नीचे धरती पर जन्मा।वही पला बढ़ा, पर कभी पहाड़ पर नही चढ़ा।एक दिन धरती वाले ने ऊपर पहाड़ वाले को देखा और बोला-अरे ये मानव जैसा कीड़ा उपर कहा से आया?
*कांतिलाल मांडोत सूरत*