भारतीय मनीषियों ने हमारी वाणी को वाकशक्ति बताया है।कहा गया है जब कोई बोलता है तो मनुष्य है और जब मौन हो जाता है तो देवता है।यानी वाणी मनुष्य की भाषा तो मौन देवताओं की भाषा है।वाणी में असीम शक्ति है।परंतु मौन में उससे भी प्रचंड शक्ति है।मनुष्य अपने अंतःकरण की शक्ति को ,प्राणों की शक्ति को बोलकर ही बिखेर देता है।मौन व्यक्तित्व को अधिक प्रभावशाली और लोकप्रिय बनाता है।जो जितना कम बोलता है
उसकी वाणी उतनीं ही प्रभावशाली होती है।मौन मनुष्य की सर्वप्रियता का एक अचूक साधन है।मौन रहने वाला कलह से,कटुता से बचता रहता है।मौन रहता है तो उसका वह गुण है,भूषण है और सत्य व्रत की रक्षा कर सकता है।लोकप्रियता को बचाये रख सकता है।लोग उसे समझदार समझते है।मूर्खता का ढक्कन है मौन।मौन कभी भी दूसरों को हानि नही पहुंचाता है।जबकि मनुष्य बोलकर कलह,विग्रह विद्वेष फुट और हिंसा को भड़कता है।दुसरो के दिलो में तीर चुभा सकता है।जिसे दंगे फसाद खून खराबा होता है।उसमें भड़कीले भाषण उतेजक शब्द ही ज्यादा काम करते है।पहली बोली चलती है फिर गोली चलती है।अंडे देने के बाद मुर्गी मूर्खता करती है कि वह चहचहाने लगती है।उसकी चहचहाट सुनकर कौआआ जाता है। उसके अंडे छीन लेता है।जो चीजे अपने भावी संतानों के लिए खाने के लिए रखी थी उसे भी वह चट कर जाता है।अगर वह चुप रहती तो दोनॉ की आफतो से बच सकती थी।यह बोलने का परिणाम!संसार का इतिहास उठाकर देख लो जितने भी अनर्थ हुए है।युद्ध हुए है।नर संहार हुए है।उसके पीछे सबसे बड़ा कारण वाणी रही है।बोलने से भी अनर्थ हुए है।द्रोपदी अगर कटुवचन नही बोलती तो महाभारत की विनाशलीला नही होती।कुरुक्षेत्र में खून की नदियां नही बहती।
विशाल सेना का युद्ध द्रौपदी के एक बोल से ही हुआ।दशरथ अगर कैकयी को वचन नही देते तो न तो राम की जगह भरत का राजतिलक होता, न राम वनवास जाते और न रावण के साथ युद्ध होता।आज भी परिवार समाज और राष्ट्र के किसी भी क्षेत्र में चले जाइये।जितने विग्रह संघर्ष होते है ।परिवार टूटते है उनके मुल में कही न कही बोलना ही मुख्य कारण रहा है।सास बहू के कलह अगर सासु मौन रख ले तो बहु अकेली कितनी देर बोल सकती है।अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता है।बिना घास की चिंगारी किसको जलायेगी।सुखी जगह पर गिरी आग अपने आप बुझ जाती है।अकेला व्यक्ति कलह नही कर सकता है।