कांग्रेस की पांच राज्यो में पराजय के बाद समीक्षा बैठक में नए कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की कवायद तेज
पांच राज्यो में हार के बाद कांग्रेस का मंथन शुरू हो गया है।कांग्रेस की बैठक में हार के कारणों का पता लगाने के लिए विचार विमर्श किया गया।भारत की राजनीति में सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी की दशा पर पार्टी के दिग्गज नेताओं ने विचार किया।कांग्रेस के नेताओ ने पार्टी के कमजोर पहलुओ पर भी ध्यान आकृष्ट किया।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फिर से कांग्रेस अध्यक्ष के लिए राहुल के नाम की मांग की है।उन्होंने जोर देते हुए कहा कि पिछले तीस साल से गांधी परिवार से कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष नही बनाया गया है।कांग्रेस के खोए जनाधार के लिए पार्टी स्वयं जिम्मेदार है।कांग्रेस मुक्त भारत का सपना आगे बढ़ते हुए भाजपा देख रही है।खोई राजनीति के बड़े वादे करने वाले नेताओं की भरमार है।पार्टी मे बोलने के लिए हर नेता और कार्यकर्ता आजाद है।यह बहुत बड़ी कमजोरी है।तलवार के घाव भर जाते है लेकिन बोली के घाव पूरी जिंदगी भर याद रहता है।पार्टी के प्रवक्ता नॉमिनेट किया जाता है।उसके बाद कड़वे बोल हर व्यक्ति के जुबान पर होते है।कन्येयाकुमार,जिग्नेश और हार्दिक पटेल जैसे युवाओ को बोलने की खुली छूट दे रखी है।उनकी जुबान पर मर्यादा की कोई सीमा नही है।कन्येया कुमार तो इस तरह बात करते है कि वे ही दुनिया के बड़े लीडर है।मीडिया के सवाल पर मीडिया और पत्रकारों के झगड़े की शैली में प्रश्न करने वाले लोकतंत्र की गरिमा का ख्याल क्यो नही रखते है।एक पत्रकार को किसी भी विषय पर सवाल करने का पूरा पूरा अधिकार संविधान ने दिया है।उसके बाद गरिमा खंडित करने के लिए ये अग्रसर रहते है।कांग्रेस के प्रति जनता की धारणा कमजोर हुई है।कांग्रेस पार्टी का नाम आते ही तुष्टिकरण की राजनीति की याद ताजा हो जाती है।कांग्रेस को फिर से सत्ता में आने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।कांग्रेस ने जातिवाद के बीज बोए है।कांग्रेस का परिवारवाद आज भी जनता की आंखों की किरकिरी बना हुआ है।रविवार की कांग्रेस बैठक में भी अध्यक्षता के लिए राहुल के नाम की मांग की है।अशोक गहलोत की विकासलक्षी योजनाओ से आम जनता के घर तक सुविधाएं पहुंचाने की शुरुआत सराहनीय है।लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मन मे अवसरवादी भाव आज भी विधमान है।कांग्रेस के अंदरूनी हालात पर ध्यान देना होगा।पार्टी की बगावत ने कांग्रेस की हार का कारण बना है।पंजाब में कांग्रेस की नैया डुबाने वाले हार गए।
अब भी उनके तेवर नरम नही हुए है।कांग्रेस की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष की बात की गई थी,लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के बदलने या बदल देने से कांग्रेस जीत जाती है यह सत्य नहीं है।सोनिया गांधी ने 1998 में पार्टी अध्यक्ष का पदभार संभाल रही है।उसके बाद दो टर्म तक कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही है।भाजपा के इन राज्यो में परचम लहराने का असली मकसद भाजपा का सबका साथ और सबका विकास का मुद्दा था।बीजेपी के कार्यकाल में देश के जटिल प्रश्नों का निराकरण लाया। है।जिसमे राममंदिर,कश्मीर की धारा 370 और तीन तलाक मुख्य रहा था।उस पर भी कांग्रेस ने संसद में आपत्ति जताई थी ।पंजाब की राजनीति में कड़वी भाषा और पिछले छह महीने तक एक दूसरे पर शाब्दिक प्रहार से पार्टी की यह दशा हुई है।पंजाब में विकास के नाम पर कुछ खास नही रहा था।
उसका खामियाजा कांग्रेस को भोगना पड़ा।उतराखण्ड में पराजय नेता को ही वापस कांग्रेस ने बागडोर सौंप दी थी।जिससे दुबारा हार का मुंह देखना पड़ा।हरीश रावत को उतराखण्ड की जवाबदेही महंगी पड़ी।जिससे कांग्रेस को ही ले डूबे।यूपी में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका ने ही तिड़कम बैठाया।किसी नेता को नही बुलाया।प्रियंका ने अकेले प्रचार किया और मुख्यमंत्री के दावेदार की घोषणा भी स्वयं प्रियंका ने ही की थी।कांग्रेस के जनाधार को फिर से हासिल करने के लिए घर घर अलख जगानी होगी।जिसमें अच्छे कार्यकर्ताओ को शामिल किया जाना चाहिए।व्यक्ति नही विचारधारा को बदलना होगा।
*कांतिलाल मांडोत *