पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए रूस और यूक्रेन युद्ध को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। इसने दुनिया को बहुआयामी संकट में डाल दिया है। युद्ध क्षेत्र यूक्रेन के आसपास का पर्यावरण बुरी तरह से प्रदूषित हो रहा है। कारण इस युद्ध में अभी तक परमाणु हथियारों को छोड़कर दोनों ओर से सभी प्रकार के घातक हथियारों का उपयोग यथा - गोले, बारूद, बम, मिसाइल, मशीनगन, लड़ाकू हेलीकॉप्टर, सुपर सोनिक वायुयान, रॉकेट लॉन्चर, ग्रेनाइट आदि का उपयोग बड़ी तादाद में किया गया है - जिससे पेड़ -पौधे और वन- क्षेत्र जल रहे हैं, कृषि क्षेत्र नष्ट हो रहे हैं, जमीनी जीव -जंतु - जानवर और निर्दोष मनुष्य मारे जा रहे हैं। लाशों को अंतिम संस्कार का अवसर तक नहीं मिल रहा है।जैव- विविधता संकट में है। जल -स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। मलबे और कचरे का ढेर बढ़ता जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण चरम पर है। तेल के कुओं, इमारतों, कारखानों में आग लगी हुई है- आग की लपटें और जहरीला धुआं आकाश क्षेत्र में विस्तार ले रहा है। हवा में विषाक्त गैस घुल रही है। प्राण वायु की गुणवत्ता कम हो गई है। पर्यावरण सहित विभिन्न कारणों से नागरिकों का पलायन यूक्रेन से निरंतर आसपास के देशों में बढ़ रहा है। शरणार्थियों की समस्याएंँ- यथा खाना, पानी, आवास, चिकित्सा, स्वच्छता आदि का सही समय पर उचित तरीके से निराकरण नहीं किया गया तो संक्रामक रोगों के साथ साथ प्रदूषण का और बढ़ना तय है और फिर अभी विश्व से कोरोना संकट भी नहीं टला है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं इस युद्ध ने सृजन प्रक्रिया को मंद कर , विनाश प्रक्रिया की गति बढ़ा दी है। मानवता संकट में है, मानवीय संवेदनाएं कराह रही हैं, पर्यावरण प्रदूषित होकर दम तोड़ रहा है।
अतःकिसी भी तरह से इस युद्ध को सतत विकास और पर्यावरण के लिए उचित नहीं ठहराया जा सकता। पूर्व में भी अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, यमन, सोमालिया, दक्षिणी सूडान आदि देशों में हुए युद्ध पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित कर चुके हैं। पहले से ही पर्यावरण की समस्याएं विश्व के सभी देशों को चिंतित कर रही हैं और अब इस युद्ध ने उनकी चिंताओं को और बढ़ा दिया है। वैज्ञानिकों का विश्लेषण संकेत देता है युद्ध ने प्रभावित देशों के आसपास की हवा को तकरीबन 10 वर्षों के लिए प्रदूषित कर दिया था। क्योंकि युद्ध से प्रदूषित पर्यावरण को अपने मूल स्वरूप में लौटने में लगभग इतना ही समय लगेगा। जितने लोग मारे जा रहे हैं, उससे कई गुना ज्यादा लोग प्रदूषण, संक्रमित बीमारियों के शिकार होंगे । अतः मानवता और प्रकृति की खातिर रूस, यूक्रेन और नाटों के देशों को अपने स्वार्थ और अहंकार से ऊपर उठकर विश्व हित में, पर्यावरण की रक्षा हेतु अतिशीघ्र युद्ध को विराम देना ही चाहिए।
डॉ मनमोहन प्रकाश ,