वरुण जिस तरह से भाजपा के खिलाफ मुखर हो रहे है।उससे मेनका गांधी की सियासी भविष्य पर भी ग्रहण लग गया है।अपनी ही पार्टी भाजपा का हर समय विरोध करने वाले वरुण को दोबारा सोचना चाहिए।वरुण उस लकड़हारा की तरह है जो पेड़ की उस डाल को ही काट रहा है जिस पर वह खड़ा है।भाजपा में मेनका की हैसियत है।उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद दिया गया है।जबकि मोदी ,अमित शाह और योगी के खिलाफ भाषण बाजी करके पार्टी में किरकिरी कर रही है।लखीमपुर खीरी की दुर्घटना पर भाजपा पर आरोप लगा दिया।योगी और मोदी की बुराई करते है।भाजपा पर आरोप मढ़ते है।तब पार्टी में कोई क्या पद दे सकता है।शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा की अंगुली पकड़ राजनीति के गलियारों तक पहुंचे आज उनकी क्या स्थिति बन गई है।मजबूरन पार्टी छोड़नी पड़ी।वरुण यह कहना चाहते है कि मैं गांधी परिवार से हूँ और मेरी हैसियत बड़ी है तो पहले पार्टी वफादार बनना पड़ेगा।जिस तरह से भाजपा में वे बर्ताव कर रहे है उससे मेनका गांधी की भाजपा में इमेज खराब हो रही है।एक तरफ पुत्र मोह और दूसरी तरफ अपनी पार्टी है।एक तरफ कुआ तो दूसरी तरफ खाई है।एक समय था कि भाजपा को इन दोनों सांसद माँ बेटे की जरूरत थी।लेकिन अब भाजपा के साथ करिश्माई नेता मोदी है।जिससे इनकी जरूरत नही रही है।भाजपा को ही खड़ी खोटी सुनाने वाले को पार्टी क्यो अहमियत देगी।जो व्यक्ति उसी परिवार की बुराई करता है उसे उस परिवार में जगह नही मिलती है।वरुण ने कांग्रेस में जाने की ठानी थी।ये कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रियंका से भी कुटुम्बिक मुलाकात की है।बीच मे मीडिया में अटकले लगाई गई थी कि यूपी चुनाव में वरुण कांग्रेस पार्टी में शामिल होंगे।लेकिन उनके जमीर ने साथ नही दिया।अंततोगत्वा कांग्रेस का पूरे देश मे खराब प्रदर्शन रहा।जिससे वरुण का कांग्रेस में शामिल नही हुए।लेंकिन गत दिनों संजय राऊत से मुलाकात के बाद कुछ अंदेशा जताया जा रहा है।वरुण भाजपा को अलविदा करते है या अभी समय बाकि है।इसका कोई ठोस सबूत नही है।फिर भी वरुण भाजपा को छोड़ देते है तो मेनका के लिए मुसीबतें बढ़ सकती है।समय आने पर ही पता चलेगा।
*कांतिलाल मांडोत *