खिलाफत आंदोलन का महिमा मंडन सांस्कृतिक मंत्रालय की बड़ी भूल- दिव्य अग्रवाल
खिलाफत आंदोलन के नाम पर हिन्दुओं के नरसंहार को भूलकर आजादी के आंदोलन का हिस्सा बताना गांधी जी की गलती को दोहराना है । 1919 से 1924 का वह कालखंड जिसमें भारत के मुसलमान ब्रिटेन का विरोध इसलिए कर रहे थे की तुर्की में खलीफा की सत्ता को विस्थापित न किया जाए । खलीफा मुस्लिम धर्मगुरु की एक पदवी होती है जिसको लेकर मुसलमान चाहते थे कि समूचे विश्व की सत्ता उनके धर्मगुरु खलीफा के अनुसार चले । परन्तु गांधी जी ने इस इस्लामिक आंदोलन को भारत की आजादी से जोड़ दिया। गांधी जी ने भारत के हिन्दुओ को मुस्लिमो के साथ खड़े होकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने को कहा। हिन्दू समाज ने आँख बंदकर इस विश्वाश के साथ मुस्लिमो का साथ दिया की हम सब ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लड़ रहे हैं । जबकि मुस्लिम समाज तो अपने धर्म व् अपनी खलीफा व्यवस्था को तुर्की से लेकर भारत तक स्थापित करने हेतु लड़ रहे थे । इस खिलाफत आंदोलन का ब्रिटिश सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और तुर्की में खलीफा व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया । जिसके बाद भारत में खलीफा व्यवस्था हेतु मुस्लिम समाज ने भारतीय हिन्दुओ के प्रति हिंसात्मक कार्यवाही अपनाते हुआ हिन्दुओ का नरसंघार , बलात्कार , निर्ममहत्या आदि अमानवीय बर्बरता अपनांनी शुरू कर दी । इतना सब देखते हुए भी गांधी जी मौन रहकर हिन्दुओ को अहिंशा का पाठ पढ़ाते रहे ।
मुस्लिम समाज ने मालाबार , मोपला आदि में जमकर नरभेद किया, महिलाओ को शीलभंग किया परन्तु मुस्लिमो को हिन्दुओ के साथ मिलाने व् मुस्लिमो को शांत करने हेतु गांधी जी हिन्दुओ को आपसी सद्भाव की शिक्षा देते रहे । यदि भारत का सभ्य समाज मालाबार , मोपला के संघार को पढ़ ले तो समझ आएगा की खिलाफत आंदोलन के नाम पर क्या हुए था । शक्तिशाली लोगो ने कठमुल्लो के समक्ष समर्पण कर दिया था । अतः आज इससे भी बड़ा दुःख यह है की राष्ट्रवादी भारत सरकार का सांस्कृतिक मंत्रालय आजादी के अमृत महोत्सव आयोजनो में इस खिलाफत आंदोलन की सत्यता को उजागर करने के स्थान पर इस नरभेद आंदोलन का महिमामंडन कर रहा है अब यह बड़ा प्रश्न है की क्या यह विषय भारत सरकार व् नेताओ के संज्ञान में नहीं है , क्या किसी षड्यंत्र के चलते कुछ लोगो द्वारा ऐसा किया जा रहा है या जो कुछ भी हो रहा है वह सर्व सम्मत्ति से हो रहा है ।
दिव्य अग्रवाल