पंजाब चुनाव तिकोना हो गया है।पंजाब56 साल पहले बना।राज्य पुनर्गठन में भाषाई आधार पर अस्तित्व में आया।अकाली आंदोलन की बड़ी सफलता थी।तब से एक क्रम चला आ रहा है अकाली हारते थे तो कांग्रेस जीतती थी।फिर अकाली जीतकर आते थे।2012 में एक नया इतिहास रचा।इसे पंजाब की जनता ने ही अपने निर्णय से रचा।अकाली भाजपा गठबंधन दूसरी बार निर्वाचित हुआ।उसकी सरकार बनी ।अकाली नेता और वयोवृद्ध नेता प्रकाशसिंह बादल मुख्यमंत्री बने।चुनाव प्रणाली जैसी है वह एक वोट से भी करिश्मा दिखा देती है।हार जीत के लिए एक वोट काफी है।2017 में कांग्रेस को बहुमत मिला कांग्रेस ने सरकार बनाई।चार साल तक कैप्टन अमरिन्दरसिंह बतौर मुख्यमंत्री रहे।चार साल के बाद पद की लालसा ने पार्टी में विरोध हुआ।अंततः मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह को हाईकमान के आदेश पर इस्तीफा देना पड़ा।कांग्रेस के दो गुटों ने पार्टी में बिखराव पैदा कर दिया।इस संघर्ष के पीछे नवज्योतसिह सिधू की कोमल मानसिकता थी।नवज्योतसिह पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए।लेकिन तब भी संतुष्ट नही हुए।उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी का मोह था।लेकिन भाग्य किसी ने खोलके नही देखा है।गरीब परिवार से आने वाले चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया।जो दलित समाज से है।
नवज्योतसिह सिधू की अड़ंगे बाजी आज भी चल रही है।कांग्रेस ने अमरिन्दरसिंह को खो कर पार्टी को बहुत बड़ा नुकसान किया है।नवज्योतसिह सिधू का गुस्सा सातवें आसमान पर है।नवज्योतसिह ने मीडिया के सामने गाली गलोज किया।उनकी निंदा की जा रही है।पंजाब में 2022 का चुनाव रस्साकशी भरा होने की संभावना है।केजरिवाल ने पिछले चुनाव में अपना भाग्य आजमाया था लेकिन कुछ हासिल नही हुआ।पंजाब की राजनीति में सत्ता की दावेदारी में वही वजनी माना जाता है जिसका चेहरा सिख का हो।केजरिवस्ल ने अपना नाम बढ़ाकर अपनी संभावनाओं को खारिज कर दिया।यह धारणा पंजाब में आम है।इस बार भी मुकाबला सिर्फ अकाली भाजपा और कांग्रेस के बीच ही नही है।अब तो कैप्टेन भी मैदान में है।उनकी लोक कांग्रेस पार्टी भी चुनावी मैदान में होंगी।
*कांतिलाल मांडोत सूरत*