यूपी में विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा के चुनाव सभी पार्टियों ने दलितों को वोटो के लिए लुभाने में कोई कसर नही छोड़ी है।चुनाव आते ही सभी दलों का झुकाव दलितों की तरफ हो जाता है।दलित वोटरों को लुभाने में सफल रही बीजेपी ने 2014 में लोकसभा में सभी 17 सीटे जीती।बीजेपी 2012 मे विधानसभा में 3 सीटे हासिल की थी।पूर्व में दलित वोट के लिए दलित को ही टिकट दिए जाने के अनेक उदाहरण मौजूद है।दलितों को लुभाने में कांग्रेस भी पीछे नही है।कांग्रेस 1996 से दलितों की मसीहा बन फिरती रही है लेकिन कांग्रेस को दो या तीन सीटों से आगे बढ़त नही हुई है।विधानसभा में दलितों ने 15 सीटे कांग्रेस की झोली में 1996 में डाली थी।नतीज़तन, कांग्रेस की स्थिति 1996 से ही दोनों विधानसभा और लोकसभा में पतली ही रही है।
कांग्रेस के बाद सपा ने भी दलितों के प्रति झुकाव रहा है।दलितों की गोलबंदी में चुनावो में जुटे राजनीतिक दलों को लुभाने बीजेपी ने भी कोई कसर बाकी नही रखी।सभी दलों की नजर दलितों पर रहती है।मायावती ने भी दलित को टिकट थमाने की अनेक बार दाव खेला है। 2014 में लोकसभा चुनाव में नतीजे आते ही मायावती को अपना दलित जनाधार खिसकने का अहसास हो गया था क्योंकि मायावती को 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नही मिली थी।लोकसभा चुनाव में दलित बीएसपी के साथ चट्टान की तरह खड़े थे।लेकिन अपर काष्ट विपक्षियों के बहकावे में आ गया।मायावती का दलित वोट अन्य पार्टी की तरह खिसका।क्योकि वोट तो लिया लेकिन दलितों का भला नही कर पाई।समाजवादी पार्टी भी दलितों का इस्तेमाल करने में पीछे नही है।सपा सरकार के कार्यकाल में कोई ऐसी प्रभावी कल्याणकारी योजनाए अमल में नही थी जिसका फायदा सीधा दलितों के घर तक पहुंचे।2014 में दलितों के मीले समर्थन में भाजपा ने 17 सीटे जित्ती।दलित वोटो के लिए बीजेपी ने भी घेराबन्दी की थी।जिसमे सफलता मिली।यूपी में रैदास,ज्योतिबा फुले और आम्बेडजर का जन्म दिवस मनाया जाता है।कांग्रेस ने भी डोरे डालने की शुरुआत की थी।कांग्रेस दलितों का समर्थन बटोरने के लिए जोर आजमाइश को चतुष्कोणीय बना दिया था।तो भी लोकसभा में दो तीन सीटे और विधानसभा में 1996 में सबसे ज्यादा सीटें मिली थी।
उसके बाद दलितों ने कांग्रेस को निकाल बाहर कर दिया।जब जब सरकारे दलितों और गरीब तब्बके के लोगो से वोट लेने के बाद उनकी देखरेख नही करती है उनके साथ धोखा करती है तो ये ही हाल होता है।2022 की चुनावी तैयारी में प्रियंका यूपी के दौरे पर है।महिलाओं को 40 प्रतिशत राजनीति की टिकट देकर सत्ता के गलियारों तक लाने के लिए तैयारी कर चुकी है।पीछले दिनों कांग्रेस ने 100 टिकट आवंटित किए, जिसमे 40 महिलाएं है।लोक लुभावन अभियान के अंतर्गत वोटरों को भारी लालच दी जा रही है।राजस्व की आय से तोहफा देने निकले राजनेताओं को विचार करने की जरूरत है।टेक्स की आय वोट के लिए पानी की तरह बहा देना गलत है।जो भी पार्टियां मतदाताओ को वोट के लिए मुफ्त में चीजे ऑफर करती है उनको अपनी पार्टी के फंड से देना चाहिए।सरकारी खजाने से नही।यूपी में दलितों की 66 उपजातियां है उसमें महज बहुत कम ही राजनैतिक मंचो पर जगह पाते है ।इस बार के चुनाव में दलित राजनीति और भी गंभीर उथल पुथल के संकेत दे रही है।
*कांतिलाल मांडोत *