आज 14 फरवरी को पूरा विश्व वेलेंटाइन डे मना रहा है।हमारे देश मे एक वर्ग इसे पाश्चात्य की अपसंस्कृति मानकर इसका विरोध करता रहा है।इस विरोध के पीछे उसके अपने कारण हो सकते हैऔर सही भी होंगे,पर इस विरोध के पीछे हम उस संत की शहादत को नजरअंदाज नही कर सकते जिसका नाम वेलेंटाइन था और जिसने अपने प्रेम अपराध के लिए मृत्युदंड स्वीकार किया था।भारतीय वांगमय में भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र तो प्रेम का जीवंत उदाहरण है।पत्नी रुकमणी के होते हुए भी राधा से उनका प्रेम किसी से छिपा नही है। तो क्या हम कृष्ण और राधा को खारिज कर सकते है?शायद नही?इसलिए प्रेम एक पवित्र और उदात्त भावना का नाम है जिसमे वासना नही है।इसलिए प्रेम को ईश्वर को दूसरा रूप कहा गया ।वैसे वेलेंटाइन डे के आसपास ही भारत मे वसन्त ऋतु का आगमन होता है।हम भारतीय संस्कृत साहित्य को देखे , तो वहाँ भी संस्कृत साहित्य का वर्णन प्रेम की ऋतु के रूप में किया गया है।इन साहित्यिक ग्रंथो में जब नायक नायिका के चरित्र का अथवा मिलन का वर्णन उनके प्यार को बढ़ाने के रूप में ही होता है ,तभी तो बसंत ऋतु को कामदेव की ऋतु कहा गया है।
वेलेंटाइन डे भी इस ऋतु के पूर्व आगमन का सूचक है।भारत मे सूफी संतों ने वसन्त उत्सव को नया आयाम दिया है।करीब आठ सौ वर्ष पूर्व सूफी संत सरस्वती वंदना गाकर वसन्त पंचमी का उत्सव मनाते थे।उंन्होने सरसो और फूलों की चादर दरगाहों पर चढ़ाने की परम्पराओ की नींव डाली।बसंती चोला का शब्दावतार संतो की ही देन है।हजरत निजामुद्दीन औलिया को भगवान कृष्णजी के दर्शन होते थे।मोहे सुहागन,रंग दे ,ख़्वाजाजी,आओ सूफियों संग होली खेलो जैसे होली गीत खुसरो के वसंतोत्सव को एक अलग ऊंचाई प्रदान करते है।
बसंत के आगमन के साथ ही चारो तरफ कामदेव अपने बाण छोड़ने के आतुर हो जाते है।भविष्य पुराण के अनुसार बसंत काल मे कामदेव और रति की मूर्तियों की स्थापना और पूजा अर्चना की जाती रत्नावली नामक पुस्तक में मदनपुजा का विषय है।हर्ष चरित्र में भी मदनोत्सव का वर्णन मिलता है।पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी ने प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद नामक पुस्तक में मदन पूजा का वर्णन किया है।इस त्योहार पर राजा और आम नागरिक सब बराबर है।संस्कृत की पुस्तक कुटनीमतम में भी गणिका और वेश्याओं के साथ मदनोत्सव मनाने का विशद वर्णन है।मदनोत्सव का वर्णन कालिदास ने भी अपने ग्रंथो में किया है।ऋतु संहार के षष्ट वर्ग में कालिदास ने बसंत का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है।
मदनोत्सव का वर्णन केवल साहित्यिक कृतियों में ही हो ऐसा नही है।मूर्तिकला,चित्रकला,स्थापत्य के माध्यमो में भी कामोत्सव का वर्णन किया जाता था।ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ही इस प्रकार की मूर्तियों के निर्माण की जानकारी है।राधा कृष्ण के चित्र और बसंतोत्सव के चित्र मन को मोहते है।इसी प्रकार बाद के काल मे मुग़ल के दौरान भी चित्र कला ओ में श्रृंगार प्रदान विषय रहा है। उस जमाने मे हर रात बसंत थी और वह सब चलता रहा,जो अब जाकर होलिका या होली बन गया।वास्तव में काम संपूर्ण पुरुषार्थों में श्रेष्ठ है।प्रत्येक नर कामदेव और प्रत्येक नारी रति है।सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय वांगमय काम की सत्ता को स्वीकार करता है और जीवन मे इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को मानकर जीवन जीने की सलाह देता है।शरदोत्सव में काम और रति की पूजा का विधान है।उपनिषदों, वेदों,पुराणों में भी काम के प्रति सहजता का एक भाव पाया गया है।इस सम्पूर्ण साहित्य में काम की अभिव्यक्ति बहुत ही सहज है।प्राचीनकाल में बसन्तोसव के दिन कामदेव के पूजन का दिन होता था।