भारतीय लोकतंत्र में गठबंधन का दौर चालू है।जनमत सर्वेक्षण में फिसड्डी साबित होने वाली पार्टी चुनाव में गठबंधन का सहारा लेती है।यूपी विधानसभा चुनाव में सपा के साथ अनेक पार्टियो ने गठबंधन किया है।भारतीय लोकतंत्र में गठबंधन का दौर 1977 के बाद से शुरू हो गया।पहले कांग्रेस का दबदबा हुआ करता थ।भाजपा भी गठबंधन की हैसियत में पहुंच गई।राज्यो में तो गठबंधन का दौर 1967 में ही आ गया था।मोदी ने अपने भाषण के दौरान गोरखपुर में सपा को लाल टोपीवाले पर कटाक्ष करते हुए कहा कि लाल टोपी वालो का लाल बती से ही मतलब रहा है।उधर,अखिलेश ने कहा कि किसानों का इंकलाब होगा और बाइस को बदलाव होने की बात पलट कर कह दी ।
2017 में अखिलेश और कांग्रेस का गठबंधन कोई गुल नही खिला सका।सपा अनेक पार्टियो के साथ गठबंधन कर भाजपा को हराने की ठानी है।जिसमे भाजपा और वाम मोर्चे को सहयोगी के रूप में शामिल किया गया।इसी क्रम में 1996 में दिल्ली में दो अल्पमत सयुंक्त मोर्चा सरकारो के प्रयोग हुए।एक एच डी देवगौड़ा के नेतृत्व में और दूसरा इंदरकुमार गुजराल के नेतृत्व में।दोनॉ दिग्गज नेताओ को प्रधामनंत्री बनाए गए।उस समय तक क्षेत्रीय पार्टियो की महत्वकांशाओ का उभार इतना हो चुका था कि चुनावी नजरिये में राष्ट्रीय पार्टियो को नजरअंदाज करना नामुमकिन था।उस समय कांग्रेस नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और बीजेपी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पिछले दो दशको से इन क्षत्रिय दलों ने एक को बांध रखा है पिछले दौर में गठबन्ध नाजुक दौर में रहा था कोई भी सरकार में कार्यकाल पूरा नही कर पाया।
इसमें पद को लेकर और मनमुताबिक मंत्री पद नही मिलने से सरकार गिराने की घटना सामने आई है।अटलजी की 13 दिन में सरकार गिरने के बाद 1998 के बाद से केंद्र में सत्ता में आए गठबन्धन टिकाऊ रहे और सभी ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।2014 के आम चुनावों में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को समर्थन मिला।अब यह लगने लगा है कि बीजेपी का रथ रोकना असंभव है।मोदी लोकप्रिय बने हुए है।राजनीति आकस्मिक संभावनाओं का दौर है।जब सारी पार्टियां बिखरी हुई थी।तब अटलजी के करिश्माई नेतृत्व और इनके शाइनिंग इंडिया अभियान के तहत एनडीए अजेय नजर आ रहा था।सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कमजोर मिलने जोड़ तोड़ करके बनाया गया गठबंधन चुनाव जीत गया था।
*कांतिलाल मांडोत सूरत*