लगातार बदहाल होती आर्थिक स्थिति और सरकारी वादों से ना उम्मीद किसान उठ खड़ा हुआ और किसान यूनियन का निर्माण किया।किसान नेता महेन्द सिंह टिकैत ने 90 के दशक में दिल्ली प्रधानमंत्री की रैली तक की जगह बदलवा दी थी।उसी के पदचिन्हों पर चलकर किसान नेता राकेश टिकैत ने भी वो ही दोहराया था।दिल्ली कूच कर सरकार की व्यवस्था को चुनौती दी थी।किसान की समस्या को लेकर सड़क पर उतरे किसानों के मसीहा अब सरकार के साथ रहने की बात नही करते है।टिकैत की इस खांटी शैली ने संग़ठन को पूरे उत्तर भारत मे फैला दिया।इस संगठन ने कई बड़े आंदोलन किये है।किसानों के इस संगठन ने केंद्र और राज्य सरकारों को कई बार अपनी मांगे मनवाने के लिए मजबूर किया ।जिस तरह मोदी ने तिंनो कृषि कानून को वापस लेना पड़ा।किसान के साथ राकेश टिकैत की फायदेमंद सोच नही थी।
उनकी विचारधारा किसी अलग मुद्दे पर टिकी हुई है।किसानों के मसीहा बने राकेश टिकैत ने कभी भी यह नही कहा कि केंद्र सरकार ने हमारी मांगे मानी है उसके लिए किसानों की तरफ से हम केंद्र का आभार मानते है।किसानों की आत्महत्या का सिलसिला 1977 से चला आ रहा था।वर्तमान सरकारो ने अरबो रुपए किसानों के कृषि लोन माफ कर मुख्यधारा में चलने के लिए सरकार आगे आई है।कृषि लोन एवं किसान हितेषी कोई बदलाव नही हुआ होता तो आज भी किसान आत्महत्या करता दिखता।राकेश टिकैत हर बार सरकार पर उंगली उठाते रहते है।अब तो मीडिया पर भी सवाल खड़ा करने लग गए है।राकेश टिकैत टीवी शो में शामिल होने पहुंचे ।वहा उन्हें पीछे लगी स्क्रीन पर राम मंदिर की तस्वीर देखी।इसे देखते हुए भड़क उठे।टिकैत ने एंकर को पूछा कि आप किसके कहने पर मंदिर मस्जिद दिखा रहे है।राकेश टिकैत सेलिब्रिटी हो गए है।अब तो उन्हें राजनीति में प्रवेश कर देना चाहिए।
*कांतिलाल मांडोत सूरत*