''प्रशांत किशोर के विचार किस ओर ?''

Update: 2021-12-12 13:27 GMT

राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत किशोर ने कहा कि ''पूरे विपक्ष का मतलब कांग्रेस नहीं दूसरी पार्टियां भी हैं, इन्हें मिलकर लीडर तय करना चाहिए''. १९७७ में आपातकाल के बाद सशक्त लीडर जयप्रकाश नारायण रहे जिन्होंने सभी राजनीतिक पार्टियों को एक किया और भारी बहुमत से केंद्र में ''जनतापार्टी'' की सरकार दीर्घ अनुभवी कुशल नेता मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी. पर ढाई साल भी न चल पायी. उस वक्त तो आपातकाल के दुष्प्रभाव ने परिणाम बदले. लेकिन आज तो जब आप ही कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों की बात सुनते हैं. मतलब लोग भी बहुत ज्यादा नाराज नहीं हैं उनसे. बड़े जोरशोर से पिछले समय २१ पार्टियों का ''महागठबंधन'' और चुनाव आते-आते ही छिन्न-भिन्न हो गया. शरद पवार और ममता बनर्जी का नाम कुछ दिनों से सामने आ रहा है उनके नेतृत्व में सभी पार्टियों को एकजुट करके भाजपा से २०२४ में मुकाबला करने के लिए.

जबकि ममता बनर्जी ने पहले ही कांग्रेस से दूर रहने की बात कह दी. तब बताइये कैसे मजबूत महागठबंधन बन पायेगा और माना कि बन भी गया तो कैसे वह चुनाव तक टिक पायेगा, ऐसा हो भी हो गया तो कैसे वो केंद्र की सत्ता में काबिज हो कर देश को स्थायी और मजबूत सरकार दे पायेगा। जब कि मजबूत नेतृत्व और वाली जनता पार्टी ही ढाई साल ही सरकार नहीं चला पायी ''मैं-मैं-मैं'' पीएम बनूँ की तू-तू-मैं-मैं ... में. एक सच्चाई यह है कि कांग्रेस में ही एक-दूसरे की छोडो सुप्रीमों की बात को ही नहीं मान रहे हैं और कहीं जी-२३ नराज हैं तो कहीं पंजाब में उसके ही प्रदेशाध्यक्ष मुख्यमंत्रियों को चैन से नहीं रहने दे रहे हैं. वहीँ राजस्थान में गेहलोत-पायलट व छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल-टीएस सिंहदेव विवाद किसी से न छुप रहा न रुक रखा. पहले प्रशांत किशोर के फार्मूले जरूर कामयाब हो गए हो किन्तु विपक्ष के विघटन के दौर में यह अभी बरसों ''न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी'' जैसी स्थिति विपक्ष की बनी हुई है. पर हाँ धर्म और जातिय के इस राजनीतिक समीकरणीय युग में टुकड़े-टुकड़े गैंग में कुछ नए विपक्षी दल उभरकर आ सकते हैं लेकिन जुड़ना संभव नहीं. .......


शकुंतला महेश नेनावा

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