भारत में जब सिन्धु घाटी और मोहन जोदाडो की बात होती है तो उससे सम्बंधित प्रतीक और चिन्हों को भी समाज में स्थापित करने का समय आ गया है | भारत में हिन्दू धर्म के प्रतीक को कहीं भी प्रमुखता से जगह नहीं मिली है | जब भी भारत की बात आती है तो हमें ताजमहल , लाल किला और कुतुबमीनार याद आता है | पर एक तरफ तो हम इसे अपने मुगलो के गुलामी का प्रतीक मानते है वही पुरे विश्व में भारत की छवि में यही चिन्ह परोसे जाते है |
ऐसा लगता है कि भारत की स्थापत्य कला के प्रतिको में इनसे इतर कोई चिन्ह या और कुछ नहीं है | ताजमहल और लालकिला गुलाम भारत के प्रतीक है और हमने इसे अपना लिया पर हमें अपनी नजर दौड़नी होगी जिससे हमें हमारी पुरानी ताकत का पता चल सके |
दक्षिण भारत में एक से बढ़ कर एक मंदिर है जो स्थापत्य कला के आश्चर्य है पर उनको सरकारी और गैर सरकारी दोनों जगह एक जैसी उपेक्षा झेलनी पडती है | हम भारत के सुनहरे कल को अपने लोगो के सामने लेकर नहीं आ पा रहे है | अयोध्या का राम मंदिर हो या सोमनाथ का मंदिर इन सभी की रचना कल्पना से भी बड़ी होनी चाहिए और हमें पुराने भारत के कला और संस्कृति की झलक दिखानी चाहिए |
हम बातें तो बड़ी -बड़ी करते है पर आजादी के बाद एक भी ऐसी ईमारत नहीं बना पाए जिसे देखने के लिए पुरे विश्व से लोग भारत आये | हम ले दे कर उन्ही पुरानी इमारतो को लोगो को दिखाना चाहते है जिसे हम अपना नहीं मानते |
अगर आप सांस्कृतिक रूप से अपने आप को श्रेष्ट मानते है और आपके अंदर पुनः विश्व गुरु बनने का साहस है तो हमें विश्व को दिखाने वाले प्रतीक का भी पुनःनिर्माण करना होगा | सबसे सुंदर और श्रेष्ठ चिन्ह के लिए हमें अयोध्या , मथुरा और काशी को विश्व के सबसे खुबसूरत शहरो में से एक बनाना होगा और उन्हें सभी संस्कृति के मेल -मिलाप का केंद्र भी विकसित करना होगा जिससे सबका साथ और सबका विकास की भावना का भी निर्माण हो सके |