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कोरोना महामारी की वजह से हम सबकी जिंदगी प्रभावित हुई है। कोरोना काल में ऐसे भी कई लोग सामने आए है। जिन्होंने ने अपने से पहले दूसरों के लिए सोचा और हर परिस्थिति का सामना किया।महाराष्ट्र के नंदुरबार की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रेलू वासवे रोजना 18 किमी तक नाव चलाकर जाती हैं ताकि 6 साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओ को भोजन मिल सके।
27 साल की रेलू वासवे खुद दो बच्चों की मां है। उनका कहा है कि रोजाना इतनी दूर जाना कठिन है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे और गर्भवती महिलाएं पौष्टिक भोजन खाएं और स्वस्थ रहें। उनका ये जज्बा सलाम करने लायक है। दरअसल, गांव तक पहुंचने का सड़क मार्ग नहीं है जिसके कारण रेलू को नाव के जरिए आदिवासी बच्चों व गर्भवती महिलाओं तक पहुंचना पड़ता है।
रेलू बताती है कि कोरोना महामारी से पहले आदिवासी महिलाएं, गर्भवती व बच्चे हमारे केंद्र पर आते थे। लेकिन कोरोना के डर से सब ने आना बंद कर दिया। इसलिए उन्होंने ये फैसला लिया किया वो अब खुद उन लोगों तक पहुंचेगी और साथ में भोजन भी ले जाएगी।
दरअसल, पूर्व में क्षेत्र की गर्भवती महिलाएं आंगनबाड़ी आया करती थीं, और स्वयं की तथा 6 वर्ष के कम उम्र के बच्चों के पोषण की जांच और खुराक आंगनबाड़ी से लिया करती थीं। किंतु काेरोना महामारी के डर के कारण क्षेत्र की गर्भवती महिलाएं आंगनबाड़ी तक नहीं पहुंच पाईं तो रेलू ने स्वयं उन लोगों महिलाओं और उनके नवजात शिशुओं तक पहुंचने की ठानी।
शिवांग