स्थानापन्न मातृत्व ,किराये की कोख़ (सरोगेसी) कानूनों में बदलाव के बावजूद उसका पालन मुश्किल

Update: 2021-06-25 16:24 GMT


प्रो. गोविन्द जी पाण्डेय

संकायाध्यक्ष , मीडिया एवं संचार विद्यापीठ ,

बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी , लखनऊ

माँ शब्द भारत में ही नही किसी भी सभ्य समाज के लिए एक पवित्र पहचान है | हमे इतिहास में कई बार इस तरह के उदाहरण मिलते है जिसमे माँ न होते हुए भी स्त्री किसी बालक के लिए अपने जीवन को अर्पित कर देती है | यशोदा मैया का उदाहरण इस शब्द का प्रतीक चिन्ह है | पर तकनीकी ने माँ शब्द को न सिर्फ चोट पहुचाई बल्कि लोगों की मज़बूरी का नाजायज फायदा भी उठाया |

हालाकि इस तकनीक का इस्तेमाल शुरुआत में उन लोगो के लिए किया गया जो शारीरिक रूप से अक्षम थे और बच्चा पैदा करने में उन्हें परेशानी थी | हम सब उस दिन को आज तक नही भूले जब कोलकाता में १९७८ में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल कर बच्चे को जन्म दिया गया |

डॉ सरोज कान्त भट्टाचार्य ने जब कनुप्रिया उर्फ़ दुर्गा का आईवीऍफ़ तकनीकी से जन्म कराया तो ये विश्व भर में दूसरा ऐसा उदाहरण था | आज कनुप्रिया ४३ साल की है और एक नॉर्मल जिन्दगी जी रही है | उन्होंने एक स्वस्थ बच्चे को भी जन्म दिया है जो तकरीबन आठ साल की है |

ये तस्वीर का उजला पक्ष है | इसी तस्वीर के दूसरी तरफ अनेको ऐसे उदाहरण है जहाँ पर सरोगेसी के माध्यम से बच्चे पैदा हुए और उनको लेने वाले आये ही नहीं | या फिर लड़के को ले गए और लड़की को छोड़ दिया | इतना ही नही इस तकनीक का इस्तेमाल लड़का पैदा करने में होने लगा और भारत में लैंगिक विषमता की चुनौती और गंभीर हो गयी |

एक ऑस्ट्रलियन दम्पति भारत में कोख किराये पर लेकर बच्चा पैदा करते है और उसमे से एक बच्चा ले जाते है और दुसरे को छोड़ देते है | आज भी देव नाम का वो बच्चा कहाँ , किस हालत में है किसी को नही पता |

गरीबी से जूझते लोगो की कोख किराये पर लेना आसान  साबित हुआ और ये गैरकानूनी रूप से फलने फूलने लगा | सिर्फ बच्चा पैदा करने तक होता तो शायद एक बार समाज उसको स्वीकार कर लेता पर अब ऐसे बच्चे पैदा होने के बाद जो लोग उन्हें लेकर जाते है उसको ट्रैक करने का कोई मजबूत तंत्र सरकार ने नही विकसित किया है |

कई विकसित देशो में ऐसे बच्चे लेजाकर मानव अंग की तस्करी के भी केस सामने आये है | कई बार जब लोग ऐसे बच्चे पैदा कर लेते है और उनके अपने बच्चे भी हो जाते है तो ऐसे बच्चों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है |

लोग सरोगेसी को आईवीऍफ़ से जोड़ कर देखते है पर दोनों की प्रकृति अलग है | आईवीऍफ़ तकनीक में निषेचन , भ्रूण का विकास , और उसे वापस माँ की कोख में पलने के लिए डाल दिया जाता है | यहाँ पर एग और स्पर्म किसी और का भी हो सकता है उसे माँ ही अपने कोख में पालती है | पर अगर किसी कारण से माँ इसे करने में सक्षम नही है तो वो कोख किराये पर ले सकते है और वो औरत उनके लिए बच्चे को जन्म देती है | बच्चा पूरी तरह से क़ानूनी रूप से दम्पति का होता है |

पर भारत सरकार ने इसके बढ़ते दुरूपयोग को देखते हुए सरोगेसी रेगुलेसन बिल २०१९ ले आई जिसमे इसके गैर क़ानूनी इस्तेमाल पर कुछ रोक लग सकी है पर अभी भी किराए की कोख का बाजार फल फूल रहा है | सरोगेसी बिल के अनुसार वो लोग या दम्पति ही इसका इस्तेमाल कर सकते है जो बच्चा पैदा करने में अक्षम है |

इस तकनीक का इस्तेमाल तभी किया जाएगा जब आप परिवार को आगे बढाने में सक्षम नही है और इसका कमर्शियल इस्तेमाल पूरी तरीके से प्रतिबंधित है | अगर इस तरह से पैदा बच्चे को कोई बेचते हुए , या फिर भीख मंगवाने के काम या वेश्यावृत्ति या फिर इस तरह के किसी भी कार्य में लिप्त देखा जाता है तो उसके ऊपर क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी |

सरोगेट माँ बनने के लिए भी इस बिल में प्रावधान है जिसका पालन करना अनिवार्य है | वही औरत सरोगेट माँ हो सकती है जो २५ से ३५ साल के बीच की हो और शादीशुदा हो | दम्पति के नजदीकी रिश्तेदार सरोगेट माँ हो सकते है | एक महिला अपने जीवन काल में सिर्फ एक बार सरोगेट माँ बन सकती है अगर कोई मेडिकल कारण से सरोगेसी फेल न हुई हो | इसके अलावा सरोगेट माँ को अपने शारीरिक और मानसिक रूप से फिट होने का भी प्रमाण देना होगा |

अगर किन्ही कारण से इन नियमो का पालन नही किया गया तो शिकायत होने पर जुर्माना और जेल दोनों का प्रावधान इस बिल में है \ पर कुकरमुत्ते की तरह उग रहे आईवीऍफ़ सेंटर शहरो में चिंता का विषय ही नही है बल्कि उनके उपर किसी तरह का कानून को पालन करने का दबाव भी नहीं दिखाई देता |

अगर सरकार सरोगेसी से बच्चा पैदा करने वालो का रिकॉर्ड रखे तो इसमें होने वाली गडबडी को पकड़ा जा सकता है और उसे समय रहते समाज के लिए इसका सही इस्तेमाल किया जा सकता है | भारत में स्पर्म डोनेसन के सेंटर खुल रहे है और उसका सरकारी आंकड़ा भी ज्ञात नहीं है | इस तरह के सेंटर का संचालन करने के लिए किस तरह के नियम होने चाहिए इसमें भी स्पष्टता की जरुरत है |

हालाकि सरकार के इस कानून का कुछ विरोध भी हो रहा है | द वायर में शोनोत्र कुमारी लिखती है कि भारत के ४०० मिलियन डॉलर का बाजार और औरत का अपने शरीर पर हक़ इस बिल से ख़त्म हो जाएगा | वो कहती है की ये सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ है जहाँ वो कहता है कि स्त्री के शरीर पर पहला हक़ उसका है और ये बिल उसको  इससे दूर करता है |

 सरोगेसी का उदभव समाज के भले के लिए था पर इसमें आई विकृत को दूर कर इसे समाज के उन लोगो के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए जिनको इसकी जरुरत है पर ये भी देखना होगा की किसी गरीब को माँ बनाने के बाद अगर कोई परेशानी होती है तो उसका भी निवारण इस कानून में होना चाहिए |


Similar News