डिजिटल दुनिया में बदलते कला के आयाम, प्रो. गोविन्द जी पाण्डेय, संकायाध्यक्ष , मीडिया एवं जनसंचार विद्यापीठ , बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी , लखनऊ
मानव सभ्यता में कला का आगमन संभवतः आग की खोज के बाद हुआ होगा | जब मनुष्य ने आग पर अधिकार बनाया तो उसका इस्तेमाल कर शेर को न सिर्फ गुफा से बाहर का रास्ता दिखाया बल्कि अपने खान पान में भी बदलाव लेकर आ गया | हमारे पूर्वजो का जीवन सूरज के उगने और ढलने तक होता था उसके बाद अँधेरे का साम्राज्य स्थापित हो जाता था | जीवन शिकार के इर्द गिर्द सीमित था |
उस समय मादा और नर दोनों समान थे और दोनों ही शिकार पर जाते थे | आग के अविष्कार ने न सिर्फ गुफाओं में मनुष्य को जगह दिलाई बल्कि सुरक्षा का भी अहसास कराया | अब आग जलाने की कला संभवतः लोगो को आ चुकी थी और मनुष्य ने शिकार को पका कर खाना शुरू कर दिया | यही पर एक निर्णय हुआ होगा की आग कौन जलाएगा और शिकार पर कौन जाएगा | मादा मनुष्य अपने शारीरिक संरचना के कारण बच्चे को जन्म देती होगी और उसका पालन पोषण भी उसी की जिम्मेदारी थी| किसी भी पशु की तरह नर मनुष्य सिर्फ बच्चे पैदा करने का काम करता रहा होगा और देखभाल मादा के हिस्से आ गया | माँ चाहे पशु की हो या मनुष्य की दोनों ही अपने बच्चे से रक्त सम्बन्ध से जुड़े होने के कारण शारीरिक और मानसिक रूप से एक तरह होते थे |
नर को अपने बच्चे से उस तरह का मानसिक जुड़ाव नही होगा जैसा आज है क्योंकि विवाह और परिवार के संस्कार वैदिक काल की देन है | यही पर निर्णय हुआ होगा की नर शिकार के लिए जाएगा और मादा गुफा में रहकर अपने शरीर से जनित बच्चे का ख्याल रखेगी और भोजन को पका कर खिलाने की जिम्मेदारी भी उनको मिली | अगर ये निर्णय विपरीत होता यानि मादा शिकार पर जाती और नर खाना पकाता तो आज इतिहास अलग होता |
जैसा की हम सब जानते है कि इस भूमिका के कारण मादा का लगातार शारीरिक छरण होता रहा और एक समय शारीरिक रूप से बराबरी वाली मादा धीरे धीरे कमजोर होती गयी | अब मनुष्य की दिनचर्या में बदलाव आया और खाना मिलने के बाद समूह के पास आग की रौशनी में एक दुसरे के साथ बैठने और विचार करने का मौका मिला |
इस क्रम में सर्वप्रथम गुफा में चित्र बनाये मिले जो आज भी हमें उस काल की याद दिलाते है \ जब मनुष्य का दिन ढला और रात में आग की रौशनी मिली तो उसे विचार के लिए समय मिल गया और वही से कला का जन्म हुआ |
माइकेल एन्जेलो के मतानुसार सच्ची कलाकृति दिव्यता पूर्ण प्रतिकृति होती है ''The true work of art is but a shadow of divine perfection''
मनोवैज्ञानिक फ्राइड के अनुसार, ''कला हृदय में दबी हुई वासनाओं का व्यक्त रूप है'' अर्थात हम जिन बातों को संकोचवश व्यक्त नहीं कर पाते हैं, उन्हें कला के माध्यम से नि:संकोच व्यक्त कर देते हैं।
महान चित्रकार पिकासो का कथन है, ''I put all the things, I like in my picture''
पी0 बी0 शैली ने कहा है कि - ''Art is the expression of Imagination''
इस तरह से हम देखते है की कला एकान्तिक चिंतन से जुड़ा होता है और कलाकार की रचना सबसे पहले स्वयं के लिए होती है | अगर वो स्वयमं संतुष्ट होता है तो फिर उसे समाज में लेकर आता है और समाज उसकी कला पर अपना विचार रखता है | जितने भी कवि , चित्रकार , संगीतकार , मूर्ति कार , व् अन्य साहित्यकार थे वो पहले एकान्तिक चिंतन कर निर्माण करते थे और अपनी कल्पना में अपने हिसाब का रंग भरते थे | कला पहले स्वांत सुखाय थी और कलाकार के हिस्से में सम्मान आता था , और फिर जैसे जैसे समाज संगठित होता गया राजा का संरक्षण मिला \
जहाँ अच्छा राजा रहा या फिर जिस काल में लोग कला के प्रेमी थे वो काल कला के लिए स्वर्ण काल हो गया \ पर कला का बाजारीकरण नही था | कला ईश्वर से मिलन का साधन होता था | कला एक साधना थी और कलाकार साधक | पर साधक की साधना में विघ्न तब पड़ा जब कलाकार को राजा का सरंक्षण मिलना बंद हो गया और कला भूखी रहने लगी | किसी भी तरह की कला के बिकने का पहला प्रमाण हमें महाभारत में मिलता है जहाँ युद्ध कला में पारंगत आचार्य द्रोणाचार्य मज़बूरी में अपनी कला को कुरु वंश को बेचने को तैयार हो जाते है | इसके पहले तक कला सबकी थी और सब उसको गुरु से ग्रहण कर सकता था |
पर अपने बच्चे अस्वथामा की भूख न मिटा पाने के कारण और पूरी तरह दरिद्रता में जीवन आ जाने के कारण आचार्य द्रोणाचार्य को अपनी युद्ध कला का ज्ञान कुरु वंश को बेचना पड़ता है | कला उसकी हो जाती है जो उसको खरीदता है इसी कारण एकलव्य को गुरु द्रोणाचार्य शिक्षा नही दे पाते क्योंकि वो कुरु वंश के कॉन्ट्रैक्ट (वचन ) से बंधे हुए थे | अब कला सार्वजनिक न होकर सीमित हो गयी |
भारत का प्राचीन इतिहास मूर्तिकला के उदाहरण से भरा पड़ा है | अजंता एल्लोरा की गुफाये , खजुराहो के मंदिरों पर उकेरी गयी मूर्तियां, दक्षिण से लेकर उत्तर तक और पूरब से पश्चिम तक लाखो मंदिरों में मूर्ति कला का बेजोड़ प्रदर्शन है | इसके अलावा वो स्थापत्य कला का भी नमूना है जिसमे हजारो सालो से बनी इमारते आज भी आश्चर्य का विषय है |
भारतीय कला के प्रतीक भगवान शंकर जहाँ हमें नृत्य और मुद्राओं की जानकारी देते है वही विष्णु के रूप, राधा स्वामी , यशोदा के लाल भगवान श्रीकृष्ण हमें अपनी बांसुरी से संगीत के स्वरों की जानकारी देते है | विद्या की देवी सरस्वती माँ हमें वीणा के सुरों से अवगत कराती है | वही तीनो लोक में घुमने वाले नारद भी वाद्य यंत्र के साथ ही दिखते है |
सनातन पद्धति में कला का स्थान भगवान की साधना की तरह है | कलाकार किसी का उपासक और उसकी पूजा का आधार उसकी कला होती है | अब कला और कलाकार दोनों बदल चुके है | कला जहाँ साधना हुआ करती थी वो अब कई क्षेत्र में आय उपार्जन का आधार बन गयी है | जहाँ कला पहले राजाओं और राजमहलो तक सीमित थी अब वो आमजन के बीच आ गयी है |
कलाकार को सिर्फ राजा का सहारा होता था | राजा अच्छा तो कला का विकास अगर राजा बुरा हो तो कला का विनाश \ हमने औरंगजेब के काल में देखा था की किस तरह मुग़ल कालीन कला को उसने बर्बाद कर दिया और देश में कट्टरता ले आया | उसके पहले जहाँगीर और शाहजहाँ और दारा शिकोह तक कला और कलाकारों को सम्मान मिला पर औरंगजेब ने अपने भाई का क़त्ल किया और पिता को जेल में डाल कर कला और कलाकारों पर सम्पूर्ण विराम लगा दिया |
इस्लाम धर्म में संगीत , नृत्य , और चित्रकारी से दुरी ने इसे करीब सौ साल तक बर्बाद करके रख दिया | यह काल मंदिरों का विध्वंश और कला के पतन के लिए भी जाना जाता है | १८५७ के बाद देश अंग्रेजो की गुलामी में होता है भारतीय कला को संरक्षण नही मिलता | गुलामों के देश की अच्छाई भी अंग्रेजो को नही भायी | आधुनिक भारत में स्वतंत्रता के बाद कला को पुनः आधार मिला और भारतीय कला के क्षेत्र में कई नए प्रयोग हुए |
अब इक्कीसवी सदी जो डिजिटल युग है उसने कला को बहुआयामी बना दिया | अब कलाकार ऑनलाइन अपनी कला का प्रदर्शन कर न सिर्फ सराहना पा रहा है बल्कि वो रातो रात अपनी कला के दम पर पुरे विश्व में अपनी पहचान बना पा रहा है |
डिजिटल युग में कला में निम्न बदलाव दिखाई देते है _
अब पेंटिंग को संरक्षित करना आसन हो गया | उसकी फोटो लेकर कई कॉपी बना कर उसे संरक्षित किया जा रहा है जिससे की वो ख़त्म न हो |
पुरानी कलाकृतियों को डिजिटल फॉर्म में लोगो तक पहुचाया जा रहा है |
डिजिटल माध्यम ने कला , कलाकार और उनकी कृतियों को देश , काल से आगे ले जा कर वैश्विक मंच प्रदान कर दिया है | पहले जो कलाकृति एक देश, स्थान तक सीमित रहती थी अब डिजिटल माध्यम से दुनिया के कोने –कोने में पहुच रही है |
कला का संरक्षण आसन हो गया |
कलाकार को आय के अन्य मंच भी मिल गए और उसका प्रचार –प्रसार भी बढ़ गया |
आधुनिक कला में फिल्म और फोटोग्राफी जैसे माध्यम का शुमार हो गया है हालाकि कई विद्वान अभी भी कला के मूल रूप में इसे स्वीकार नहीं करते पर धीरे धीरे अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि कर ये दोनों माध्यम भी कला के रूप में स्वीकारे जाने लगे है |
आधुनिक कला में डिजाईन में अभूतपूर्व बदलाव आया है | अब हमें एक्स्प्रेस्सिनिस्टिक आर्ट फॉर्म हो या इम्प्रेसिनिस्टिक सब कुछ उपलब्ध है | रंग और स्ट्रोक में इतने डिजिटल चॉइस है की उससे कमाल के चित्र बन रहे है \ अब थ्री दी प्रिंटिंग ने कला को नए आधुनिक दौर के उच्चतम शिखर पर पंहुचा दिया है |
कला आज राजा , महाराजा और धनी व्यक्तियों के घर से निकल कर जन – जन में व्याप्त है और सभी को उपलब्ध है |
प्रो. गोविन्द जी पाण्डेय,
संकायाध्यक्ष , मीडिया एवं जनसंचार विद्यापीठ , बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी , लखनऊ