उर्दू भाषा भारत की साझा तहज़ीब की बुनियाद में गहराई तक रची-बसी है: अहमद इब्राहीम अलवी
लखनऊ, 13 नवम्बर 2025: ख़्वाजा मुईनुद्दीन भाषा विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में आज ‘यौमे उर्दू’ और ‘यौमे तालीम’ के अवसर पर एक भव्य और गरिमामय समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भाषा और शिक्षा के संवर्धन के संदर्भ में अनेक महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम की शुरुआत नदा परवीन, महजबीन, आमिना और महक परवीन ने उर्दू भाषा पर आधारित एक सुरीला गीत प्रस्तुत करके की। इसके बाद ग़ुलाम वारिस, शमा फिरदौस, अब्दुल कादिर और हसन अकबर (रिसर्च स्कॉलर) ने मशहूर उस्ताद शायरों की ग़ज़लों के साथ-साथ अपनी रचनाएँ भी सुनाईं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध पत्रकार, साहित्यकार और रोज़नामा आग के पूर्व संपादक अहमद इब्राहीम अलवी उपस्थित रहे।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा भारत की साझा तहज़ीब की बुनियाद में गहराई तक रची-बसी है। इस भाषा ने हमेशा दिलों को जोड़ा है और विभिन्न धर्मों एवं संस्कृतियों के बीच एक मज़बूत रिश्ता कायम किया है। उन्होंने कहा कि उर्दू केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं बल्कि एक एहसास, एक विचार और मुहब्बत की भाषा है जो दिमाग़ को रौशन और दिल को नरम बनाती है। अहमद इब्राहीम अलवी ने छात्रों से कहा कि उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार के बिना हम अपनी तहज़ीबी विरासत को सुरक्षित नहीं रख सकते। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे उर्दू को केवल एक विषय के रूप में न पढ़ें बल्कि इसे अपनी सोच और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बनाएं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अजय तनेजा ने कहा कि उर्दू भाषा वास्तव में भारतीय गंगा-जमुनी तहज़ीब की ज़िंदा निशानी है, जिसमें मुहब्बत, रोहदारी और एकता के रंग समाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि यौमे तालीम हमें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की शैक्षणिक दृष्टि और उनके क्रांतिकारी विचारों की याद दिलाता है जिनकी नींव ज्ञान, समानता, स्वतंत्र चिंतन और राष्ट्रीय एकता पर आधारित थी। प्रो. तनेजा ने आगे कहा कि आज शिक्षा का उद्देश्य केवल रोज़गार प्राप्त करना नहीं होना चाहिए बल्कि एक बेहतर इंसान बनना होना चाहिए,यही मौलाना आज़ाद की शिक्षा का मूल संदेश है। उन्होंने विद्यार्थियों को सलाह दी कि वे ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भाषा और संस्कृति के मूल्यों को भी समझें और संरक्षित रखें।
पूर्व अध्यक्ष, उर्दू विभाग प्रोफेसर फ़ख़र आलम ने अपने व्याख्यान में अल्लामा इक़बाल की उर्दू और फ़ारसी शायरी के पारस्परिक संबंध पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इक़बाल की शायरी ज्ञान, खुदी और रूहानियत का वह सुंदर संगम है जो इंसान को फिक्री बुलंदी (विचार की ऊँचाई) प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि इक़बाल ने फ़ारसी में सार्वभौमिक चिंतन को और उर्दू में राष्ट्रीय चेतना को स्वर दिया। उनकी शायरी यह सिखाती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना नहीं बल्कि इंसान के भीतर सपने देखने और उन्हें साकार करने की शक्ति पैदा करना है।
कार्यक्रम के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सौबान सईद ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद न केवल भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे, बल्कि वे एक उच्च कोटि के लेखक, क़ुरआन के व्याख्याकार, अद्वितीय वक्ता और दूरदर्शी समाज सुधारक भी थे।
उन्होंने कहा कि मौलाना की रचनाओं में ज्ञान और साहित्य का ऐसा सुंदर संगम है जो आज भी नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक है। प्रो. सईद ने कहा कि मौलाना आज़ाद की विद्वता और उर्दू से उनकी गहरी निष्ठा हमें यह सिखाती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल पेशेवर उन्नति नहीं बल्कि विचारों की रोशनी और मानवीय मूल्यों का प्रसार भी होना चाहिए। उन्होंने छात्रों से आह्वान किया कि वे मौलाना आज़ाद और अल्लामा इक़बाल जैसे महान चिंतकों के विचारों से प्रेरणा लें और भाषा व शिक्षा दोनों को अपनी व्यक्तित्व की बुनियादी विशेषताएँ बनाएं, क्योंकि यही दो स्तंभ किसी भी क़ौम की फिक्री और तहज़ीबी इमारत का असली सहारा हैं।
इस अवसर पर राशिदा ख़ातून (रिसर्च स्कॉलर) ने विभाग की साहित्यिक संस्था की वार्षिक रिपोर्ट “बज़्म-ए-अदब: तख़लीकी व तनक़ीदी इज़हार का प्रभावी मंच” के शीर्षक से प्रस्तुत की।
इसके साथ ही उर्फ़ी ख़ानम (रिसर्च स्कॉलर) ने “उर्दू भाषा: परंपरा और आधुनिकता के संगम पर”, उम्मे ऐमन ने “आधुनिक युग के युवा और इक़बाल की सोच”, तस्मिया ख़ातून ने “उर्दू के प्रचार में सरकारी और जनसहभागी प्रयास” और सुम्बल फ़ातिमा ने “इक़बाल की शायरी में शाहीन की अर्थगर्भित दिशाएँ” शीर्षक से शोधपत्र प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन सलमान साजिद (रिसर्च स्कॉलर) ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. वसी आज़म अंसारी ने दिया। इस अवसर पर उर्दू विभाग के शिक्षकों और विद्यार्थियों के साथ-साथ अन्य विभागों के शिक्षक और छात्र भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।