बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय बना अखाड़ा , क़िस्सा कुर्सी लपकने का जारी
भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में आज कल छुट्टी का माहौल है । हर तरफ़ क़िस्सा कुर्सी का चल रहा है। जब से कार्यकारी कुलपति प्रो एन एम पी वर्मा ने कुलसचिव अश्विनी सिंह को पद से हटा कर होम साइंस विभाग की प्रो यू वी किरण को कुलसचिव का कार्यभार सौपा तब से विश्वविद्यालय पढ़ाई की जगह लड़ाई का अखाड़ा बना हुआ है । कुलसचिव ने हाई कोर्ट का रास्ता देखा तो लगा कि कोर्ट ने उनके पक्ष में फ़ैसला कर दिया । पर अभी तो फ़िल्म की शुरुआत हुई थी, इंटरवल से पहले अपनी जॉइनिंग को लेकर काफ़ी हाथ -पैर मारने के बाद भी कुल सचिव को जगह नहीं मिल पायी ।
इंटरवल होने वाला था कि शिक्षा मंत्रालय ने एन एम पी वर्मा को कुलपति पद से हटा कर प्रो शिव कुमार द्विवेदी, पर्यावरण विभाग को कुलपति बना दिया, लगा कि ये प्रो वर्मा के रिटायर होने के बाद पद सम्भालेंगे । पर मंत्रालय के दबाव और पुनः चिट्ठी भेजने के कारण प्रो वर्मा को अपने सेवा निवृत्त होने से पहले कार्यकारी कुलपति के पद से हटना पड़ा । वैसे विश्वविद्यालय के एक्ट में कार्यभार सबसे वरिष्ठ प्रोफ़ेसर को ही देने का रिवाज है पर इसे पूर्व के कुलपति ने कई बार कुलसचिव और जूनियर प्रोफ़ेसर को चार्ज दे कर रास्ता खोल दिया था ।
१२ हज़ार ग्रेड पे और सीनियरिटी का मसला भी इसी में उलझा हुआ है । अगर कुछ पुराने शिक्षकों की माने तो उन्होंने बचपन एक्सप्रेस संवाददाता से बात करते हुए नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कुछ चहेते शिक्षकों को १२ हज़ार का ग्रेड पे दिया गया और उनको सीनियर मान लिया गया । अब इस कड़ी में जो पहले वरिष्ठ थे वो नीचे आ गये । अब इस ग्रेड पे के लिए पूरी योग्यता रखने वाले शिक्षक इस प्रक्रिया को जल्द पूरा कर उनको भी १२ हज़ार ग्रेड पे देने और उनकी सीनियारिटी बहाल करने की माँग कर रहे है । वैसे विश्वविद्यालय की वेब साईट पर या कही भी किसी पब्लिक प्लेटफार्म पर शिक्षकों की सीनियारिटी का कोई भी आँकड़ा उपलब्ध नहीं है ।
बहुत सारे कर्मचारी अब इस भ्रम में है कि किसके साथ जाये, यहाँ आगे कुआँ तो पीछे खाई है । शिक्षकों के दो गुट में बटे इस विश्वविद्यालय में अगर सूत्रों की माने तो सब खेल वर्चस्व को ले कर है।
ठेकेदारी और ठेका है मुख्य वजह : इस विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार एक ठेकेदार के ऊपर इल्ज़ाम लगा और उसने भी पूर्व कुलपति पर संगीन इल्ज़ाम लगाए जिसमें उनको कुछ में न्यायालय से राहत मिली और ठेकेदार को तो जेल की हवा खानी पड़ी । अब ठेकेदार और ठेका जिसमें करोणों का खेल है अगर सूत्रों की माने तो मूल वजह है ।
शिक्षा मंत्रालय का इस विश्वविद्यालय को लेकर रवैया काफ़ी उदासीन रहा है । जब से मोदी जी गो बैक का नारा इस विश्वविद्यालय के छात्रों के एक वर्ग ने लगाया तभी से इस विश्वविद्यालय को ग्रहण लग गया । कुलपति का लिफ़ाफ़ा पिछले कई महीनों से बंद होने के कारण कई विश्वविद्यालयों में नियुक्ति नहीं हो पायी है, जिसके चलते शैक्षणिक माहौल पूरा ठप पड़ा है।
पढ़ने और पढ़ाने वाले शिक्षक और विद्यार्थी बेहाल है । विभागों में कुर्सी नहीं है और पत्रकारिता जैसे विभाग बिना कंप्यूटर के चल रहे है । पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो गोविंद पांडेय से जब बचपन एक्सप्रेस के संवाददाता ने हालत जानने के लिए संपर्क किया तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया। विश्वविद्यालय में विज्ञान हो या कला सभी में पढ़ाई करने वालों का हाल बेहाल है और इधर क़िस्सा कुर्सी का चल रहा है ।