कोरोनाकाल में अस्पतालों का बुरा हाल
कोरोनाकाल में अस्पतालों का बुरा हाल;
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच जहां एक ओर सरकार की तरफ से तरह-तरह की बंदिशें लगाई जा रही हैं। यात्रियों को मेट्रो व बसों में पूरी सीटों पर बैठ कर यात्रा नहीं करने दिया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर फुटपाथ पर बेहाल पड़े मरीजों के हालात उन दावों की पोल खोलते नजर आ रहे हैं।
यहां तक कि सरकार के दावों में जहां इस समय साफ-सफाई पर पूरा जोर दिया जा रहा है। वहीं अस्पतालों के बाहर शौचालयों के सामने खुले में बिकने वाले फल चाट, बिना धोए गिलासों में बिकने वाले पेय पदार्थ नाम मात्र की स्वच्छता न बरत पाने को विवश हैं। नगर निगम और अस्पताल प्रशासन इस ओर आंख मूंदें बैठे हैं।
एम्स के मुख्य गेट के सामने शौचालय के बाहर फ्रूट चाट की बिक्री हो रही है। गरीब तबके के मरीज यहां मेहनत की गाढ़ी कमाई या इलाज के लिए कर्ज के रुपयों पर इलाज कराने को विवश हैं। अपनी मां के इलाज के लिए आए राकेश ने कहा कि चिकित्सक ने ताकत के लिए फल खाने को कहा है। लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि इन फलों से वे कितनी बीमारियों को और निमंत्रण दे रहे हैं।
इसी तरह सफदरजंग अस्पताल के दोनों गेटों के बाहर फुटपाथ व सार्वजनिक शौचालय के गेट पर मरीजों व उनके तीमारदारों के छोटी-मोटी जरूरतों के सामानों की कई दुकानें हैं। एक तीमारदार ने वहां से स्वेटर खरीद कर अपने बीमार बच्चे को पहनाया। उसी के साथ ही फोन पर हाथ सैनिटाइज करने वाला संदेश एक भद्दा मजाक बन कर रह गया।
इन दोनों अस्पतालों के बीच अरविंद मार्ग के सब-वे में भी मरीज जमीन पर बेहाल पड़े हैं। मलमूत्र कि बेचैन करती दुर्गंध से भरे इस सब-वे में जमीन पर लेटे मरीज या तो कैंसर जैसी असाध्य बीमारी का इलाज करा रहे हैं या अपने इलाज की बारी आने या जांच की लंबी प्रक्रिया पूरी करने के इंतजार में लगे हैं।
लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के बाहर सर्दी के मौसम में जलजीरा बेच रहे सिद्धिनाथ की दुकान पर दो कांच के गिलास रखे हैं जिसे नाम मात्र के पानी से खंगाल कर उसमें आने जाने वाले मरीजों, तीमारदारों को जलजीरा पिला रहे हैं।