अंबेडकर विश्वविद्यालय में चल रहा डबल रोल, फ़िल्मो जैसी कहानी सच साबित हो रही
अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ में जब से कुलसचिव अश्विनी सिंह को पूर्व कार्यकारी कुलपति प्रो एन एम पी वर्मा ने सस्पेंड किया और फिर शिक्षा विभाग ने जितनी तत्परता के साथ हाई कोर्ट के ऑर्डर के बाद अश्विनी सिंह और वर्तमान कार्यकारी कुलपति प्रो शिव कुमार द्विवेदी की जॉइनिग के लेटर निकाले उतनी तत्परता इस बार नहीं दिखायी दे रही है ।
प्रो एन एम पी वर्मा को मिला स्टे इसी आधार पर था कि उनके ख़िलाफ़ कोई चार्ज नहीं था और सीवीओ का कार्यकाल ख़त्म हो चुका था अब ये कहानी वीसी के कार्यकाल में भी दुहराई जा रही है । कुलसचिव को तो हाई कोर्ट के कहने पर पुनः जॉइन करा लिया गया पर पूरा पॉवर नहीं दिया गया और इस समय विश्वविद्यालय में दो कुलसचिव कार्य कर रहे है । इतिहास में ऐसा कभी हुआ है इस पर भी देखने की ज़रूरत है ॰
एक रजिस्ट्रार के होते दूसरे को जॉइन करा पूरा चार्ज न देना और दूसरे रजिस्ट्रार को भी बनाये रखने पर क्या शिक्षा विभाग की सहमति है ? क्या विश्व विद्यालय के बोर्ड ऑफ़ मैनेजमेंट ने इसे सही मान कर दोनों को कार्य करने की इजाज़त दी है ? अगर ऐसा नहीं है तो किस नियम के तहत एक विश्वविद्यालय में दो रजिस्ट्रार काम कर रहे है।
अब यही स्थिति कुलपति के लिये भी है कि वर्तमान कार्यकारी कुलपति अगर चार्ज नहीं देते और प्रो एन एम पी वर्मा भी दावा ठोक देते है तो फिर वस्तु स्थिति क्या होगी । स्थिति बड़ी ही दिलचस्प बनती जा रही है और आने वाले समय में कई तरह के केस का बैकग्राउंड तैयार हो रहा है ।
ये सारी स्थिति इसलिए है कि विश्वविद्यालय के वीसी का पद ख़ाली है और उसका चयन पिछले मई से अटका पड़ा है । लोग रोज़ क़यास लगा रहे है कि आज नया वीसी आएगा कि कल नया वीसी आएगा पर जो भी स्थिति है उसे शिक्षा मंत्रालय को ध्यान दे कर इसे जल्द से जल्द हल करना चाहिए नहीं तो ए प्लस प्लस विश्वविद्यालय में इसी तरह की अराजकता फैली रहेगी ॰