योग हमें हमारे आंतरिक शरीर और बाह्य जगत से जोड़ने का काम करता है: प्रो. गोविन्द जी पाण्डेय
योग का मतलब जोड़ना होता है | योग हमें हमारे आंतरिक शरीर और बाह्य जगत से जोड़ने का काम करता है | बाह्य जगत में होने वाली घटनाओं का हमारे शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है और जिसके कारण हमारे शारीरिक तत्व वात, पित्त और कफ़ में बदलाव आता है | इन बदलाव के कारण हमारे शरीर में कई तरह के विकार पैदा होते है और हमे अस्वस्थ मान लिया जाता है | सनातन मान्यताओं में योग और आयुर्वेद का मिलन हमें स्वस्थ रखने का आधार था | आयुर्वेद में वैद्यो के द्वारा हमारे शरीर में बढे वात, पित्त और कफ की मात्रा को नियंत्रित कर हमें पुनः स्वस्थ कर देते थे |
योग के आदि गुरु भगवान् शंकर है जो प्रकृति से अपने जुडाव, नृत्य, हठ, योगनिद्रा के लिए हमारे संस्कृति के केंद्र में हमेशा रहे है | उनकी छवि हमें हमारे प्रकृति के साथ जुडाव को प्रदर्शित करती है | योग सिर्फ एक शारीरिक मार्ग नही है बल्कि ये भक्ति योग, ज्ञान योग और कर्म योग का मिश्रण है जो हमें संसार के कल्याण के लिए प्रेरित करता है |
योग की उत्पत्ति के बारे में कोई स्पष्ट तिथि नही बतायी जा सकती है क्योंकि जिसमे अनंत काल से योग मुद्रा में लीन आदियोगी शंकर हो उसकी तिथि के बारे में विज्ञान तथ्यों के आधार पर जो भी कहे हमारा मन उसे एक अनंत काल से चलने वाली क्रिया मानता है |
वैसे सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त मुद्राओं पर यौगिक क्रियाओं की कई मुद्रा चिन्हित है और इसे वैज्ञानिक योग के बारे में पहला साक्ष्य मानते है | भारत के विभिन्न मंदिरों की दीवारों पर योग मुद्रा प्रदर्शित की गई है जिसे हम आज भी देखते है और कई बार ये निश्चित नहीं कर पाते की बिना वैज्ञानिक उपकरणों से किस प्रकार इतनी सफाई से इनका निर्माण किया गया है |
जब भारत में राजा दाहर के पराजय के बाद से आक्रमण होने लगे और पंद्रहवी शताब्दी तक आते आते लोदी काल खात्मे की ओर होता है, इसी समय बाबर ने सोलहवी शताब्दी की शुरुआत में मुग़ल साम्राज्य की नीव रखी | १८५७ में अंग्रेजो के साथ युद्ध होने के बाद मुग़ल राज ख़त्म होता है और रानी विक्टोरिया का शासन भारत में शुरू हो जाता है |
मुग़ल काल का तीन सौ साल हमें भक्ति योग के बारे में ज्ञान देता है जहाँ जनता में सनातन पद्धति को जीवित रखने और उनके अंदर स्वाभिमान और सामर्थ्य पैदा करने का काम किया | अगर सनातन पद्धति या फिर हिन्दू धर्म इस काल में जीवित रहा तो उसके पीछे भक्ति योग के उपासक तुलसी, सूर , कबीर , और अन्य साधु संत रहे जिन्होंने भारत और भारतीयता को जीवित रखा |
आधुनिक भारत में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्म सम्मलेन में जब शून्य को परिभाषित किया तो उसमे भारतीय दर्शन और योग ही था जिसने पुरे विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया | महर्षि पतंजलि ने योग की महिमा बताते हुए कहा कि ये एक साधना है | उन्होंने योग सूत्र में योग को चार पदों में बाट दिया है –
१) समाधी पद
२) साधना पद
३) विभूति पद और
४) कैवल्य पद
इन सभी पदों में और भी भेद है पर जो सबसे चर्चित है यो साधना पद में दिया हुआ अष्टांग योग सूत्र हे | इसमें निम्न बातों का वर्णन है –
यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि॥२९॥
१) यम (दुसरो की इज्जत और आचरण, व्यवहार के नियम )
२) नियम (अपने लिए इज्जत, नियम संयम और शुद्धिकरण )
३) आसन (विभिन्न मुद्राये और अपने शरीर के साथ सम्बन्ध )
४) प्राणायाम (स्वसन क्रिया पर नियंत्रण और शारीरिक स्वास्थ्य )
५) प्रत्याहार (इन्द्रियों पर नियंत्रण )
६) धारण (ध्यान और विचार के बीच समन्वय )
७) ध्यान (चिंतन )
८) समाधि (विश्व और समस्त ब्रहमांड से सम्बन्ध )
यम :
यम समाज में नियमो के संचालन में धर्म और अधर्म के ज्ञान को बताता है जो आपके आचरण के शुद्धि के लिए होता है | समाज के नियम से किस तरह हम पाने मानव शरीर को नियंत्रित रूप से रख सकते है इसके विचार यहाँ मिलता है –
अहिंसा – इसके अंतर्गत किसी भी प्रकार की हिंसा वर्जित है चाहे वो शारीरिक हो या मानसिक | अपने पर यो या किसी और के उपर | अहिंसा का ये पाठ आगे चलकर हमें ज्ञान की ओर लेकर जाता है |
सत्य : कहा जाता है की सनातन धर्म हमेशा से ही सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने को प्रेरित करता रहा है | इसको मानने वाले इसी लिए कट्टर नही होते और वो सर्वे भवन्तु सुखानः के सिद्धांत पर चलते रहते है |
ब्रह्मचर्य : हमारे शास्त्रों में जीवन के चार चरण है जिसमे ब्रह्मचारी रहना एक महत्वपूर्ण भाग है |
परिग्रह : भौतिक चीजो को जमा न करना और उसके लिए लालच न करना हमेशा से हमे सिखाया जाता रहा है | संतोषम परम सुखं के सिद्धांत पर चलते हुए हमारा जीवन खुशहाल रहे यही सनातन धर्म की शिक्षा है |
नियम
शौच : शारीरिक , मानसिक पवित्रता हासिल करना ही लक्ष्य है और उसके लिए सात्विक भोजन का ग्रहण करना होता है | तामसिक भोजन से शरीर में तामसिक प्रवित्ति का प्रभाव बढ़ता है | अतः मन और शरीर के लिए इस तरह का खान पान होना चाहिए जो हमें शारीरिक और मानसिक शांति प्रदान करे |
संतोष : हमें संतोष का पालन हर हाल में करना चाहिए, लालच हमें मानसिक और शारीरिक स्तर पर हानि पहुचाता है |
तपस : शब्द तपस्वी के निकट है जो अपने शरीर की उतनी ही देखभाल करता है जिससे इसका पोषण हो सके | उसी तरह हमें भी अपने शरीर और मन का उतना ही ख्याल करना चाहिए जिसमे उसका पोषण हो सके और अपने मन पर हम नियंत्रण कर भौतिक सुखो से दूर रहे |
स्वाध्याय :
जिस बात पर हमारे ऋषि , महर्षि ने ध्यान दिलाया वो स्वाध्याय है | अगर हम पढ़े तो न सिर्फ अपना ज्ञान बढ़ाते है बल्कि विभिन्न विचारो को पढ़कर और सुनकर हम दुसरो के ज्ञान से भी परचित होते है | एक ज्ञानी व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी साबित होता है |
ईश्वर प्रणिधान या आत्मा और परमात्मा का एकीकरण :
अपने आप को अपने भगवान् को समर्पित करना ही इसका मुख्य हिस्सा है जहाँ भक्त और भगवान् के बीच कोई दुरी नही रहती |
आसन: ये हमारे शरीर के विभिन्न भागो के बीच सामंजस्य बनाते है और ध्यान के लिए अपने आप को तैयार करना है | इससे हमारे शारीरिक स्वास्थ के स्तर को बढ़ा सकते है |
प्राणायाम : इस के माध्यम से हम अपने श्वास पर नियंत्रण स्थापित करते है | कहा जाता है कि अगर हम अपने स्वांसो की गति पर नियंत्रण कर ले तो हम न सिर्फ अपने शरीर पर नियंत्रण कर पाते है बल्कि नाड़ी शोधन के लिए ये सबसे अच्छा तरीका है |
प्रत्याहार : इस के माध्यम से हम अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण स्थापित कर अपने विचार पर भी नियन्त्रन स्थापित कर सकते है |
ध्यान : अपने अन्तःमन को ध्यान के माध्यम से जानना और अपने अंदर से अहम का त्याग इसका अहम हिस्सा है और हमें ध्यान के उच्चतम स्तर तक पहुचकर आत्मा और परमात्मा का एकीकरण ही इसका अहम् योग है |
समाधि : ध्यान के बाद जो अवस्था होती है वो समाधि की है जहाँ पर व्यक्ति अपने शरीर के बाहर और भीतर उसी तरह विचरण करता है जैसे हम एक जगह से दूसरी जगह जाते है |
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से योग को पुरे विश्व में जगह मिली और २१ जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाया जाता है |