भारतीय समाज में ख़ासकर सनातन में 'राम नाम सत्य है ' एक ऐसा सत्य है जिससे ज़्यादा तर लोग दूर भागना चाहतें है, पर ये हर किसी के अंतिम क्षण में विश्वास की पुकार है। कहाँ जाता है कि जब तुलसीदास जी काशी में रहकर राम चरित मानस की रचना में लगे थे तो उस समय आस - पास के लोग उनको संत के रूप में मानने लगें थे। हालाकि उन्होंने अपने आप को हमेशा ही राम भक्त माना है।
लोगों की माने या फिर बनारस की गलियों में घूमते हुए लोगों से जानने की कोशिश करे कि ये राम नाम सत्य है का सत्य क्या है ? क्यों शिव की नगरी में अंतिम यात्रा में राम नाम सत्य गूंजता है ? इसके पीछे का विश्वास क्या है ? इस बात पर लोगों की माने तो एक बार किसी का जवान बेटा मर गया था और लोग उसको घाट पर ले जा रहें थे। रोते हुए माता -पिता को किसी ने बताया कि यहाँ एक चमत्कारी राम भक्त संत रहते हैं जो तुम्हारे बेटे को जीवित कर देंगे। वो अपने बेटे के जीवन की आस लेकर तुलसी दास के पास जाते है तो वो उनको बताते है कि वो कोई चमत्कार नहीं करते है ये तो प्रभु राम है जो जीवन और मृत्यु के पार हमें लेकर जातें हैं। ये राम ही है जो सत्य है मेरे लिये और बाक़ी सब मिथ्या।
उनकी बात सुनकर लोगों ने अर्थी उठायी और चमत्कार के आस में राम नाम सत्य है कहते हुए आगे बढ़ते है । जब वो दाह संस्कार स्थल के पास पहुँच कर लाश को चिता के हवाले करने जाते है तो लाश में हलचल होती है और उनका पुत्र उठ कर खड़ा हो जाता है। इस चमत्कार को राम नाम सत्य के प्रभाव को मान कर काशी में आज भी चिता पर लाश के दाह संस्कार के पहले राम नाम सत्य है का उद्घोष करते हुए लोग अग़ल -बग़ल चलते है और आशा करतें है कि उनका भी प्रिय उठ खड़ा होगा।
जिस समय ये घटना घटी उस समय अकबर का शासन था और उस तक जब ये खबर पहुँचती है तो वो अपने सैनिकों से तुलसीदास को उनके दरबार में हाज़िर करने के लिए कहता है। जब सिपाही तुलसी दास को लेने आते है तो तुलसी दास कहते है कि उन्होंने कोई चमत्कार नहीं कियाँ है ये तो सब राम की महिमा थी। अकबर के बार बार कहने और उनको नव रत्नों में शामिल करने की बात पर भी तुलसी दास का जवाब यही था कि वो तो राम भक्त है और जो भी चमत्कार है वो राम नाम में है।
तुलसी दास को न मानता देख अकबर उनको क़ैद में रखने को कह कर फ़तेहपुर सीकरी चला जाता है और वहाँ वो तुलसीदास को लगभग भूल जाता है। वही जेल में तुलसी दास जी प्रभु श्री राम का नाम लेकर हनुमान चालीसा की रचना करतें है। उनके जेल में रहते हुए जब महीना बीत जाता है तो एका एक पूरे फ़तेहपुर सीकरी में जंगल से निकल कर बंदरों में हंगामा खड़ा कर दिया। वो पूरे शहर में निकल कर लोगो का जीना मुश्किल कर देते हैं। अकबर को जब पता चलता है कि बंदरों ने उत्पात मचा रखा है और लाखों की संख्या में वो लोगों का सामान से लेकर हर चीज तोड़ -फोड़ कर रहें हैं।
उनको कोई सूचित करता है कि जिस संत को बंदी बनाया है वो राम भक्त है और ये बंदर सभी उनके भक्त हनुमान के सिपाही है। लंका युद्ध में वानरों ने प्रभु श्री राम के सेना के साथ युद्ध लड़ा था। अकबर लोगों की सलाह मान कर तुलसीदास जी को क़ैद से मुक्त कर देता है।
तुलसीदास जी पुनः काशी आतें है और कुछ दिनों के बाद वो एक बार फिर रामलीला की शुरुआत कर राम कथा के मंचन का काम कर प्रभु श्रीराम के नाम की महिमा को जन जन में पहुँचाने का काम करने लगते हैं।