बिहार SIR: चुनाव आयोग ने SC में दाखिल किया जवाब, आरोपों को किया खारिज

Update: 2025-07-22 05:33 GMT



बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के मामले पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है। आयोग ने राजनीतिक दलों की ओर से दायर याचिका में लगाए गए आरोपों को सिरे से खारिज किया है। इसके साथ ही SIR को लेकर चलाई जा रही भ्रामक खबरों पर भी सवाल उठाए हैं।

आयोग ने कहा कि फर्जी मतदाताओं को वोटर लिस्ट से हटाना उसकी जिम्मेदारी है और वह संवैधानिक जिम्मेदारी को निभा रहा है। आयोग का कहना है कि आर्टिकल 326 और जनप्रतिनिधत्व कानून के तहत आयोग की जिम्मेदारी बनती है कि वो सुनिश्चित करें कि सिर्फ भारतीय नागरिक के नाम ही मतदाता सूची में शामिल हो।

आधार के जरिए किसी की नागरिकता साबित नहीं हो सकती- आयोग

चुनाव आयोग ने कहा कि आधार कार्ड सिर्फ किसी व्यक्ति की पहचान का सबूत है। इसके जरिए किसी की नागरिकता साबित नहीं हो सकती। इसलिए उसे 11 डॉक्यूमेंट में शामिल नहीं किया गया। हालांकि SIR में दूसरे डॉक्यूमेंट को सप्लीमेंट देने के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल हो सकता है।

वहीं चुनाव आयोग ने कहा कि फर्जी राशन कार्ड की बहुतायत को देखते इसे 11 डॉक्यूमेंट में शामिल नहीं किया है। हालांकि SIR की प्रकिया में भी निवार्चक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी राशन कार्ड समेत सभी डॉक्यूमेंट को देखेगे। उस डॉक्यूमेंट को स्वीकार करना या ना करना निवार्चक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की संतुष्टि पर निर्भर करेगा।

याचिकाकर्ताओं की मंशा पर उठाया सवाल

अपने जवाब में आयोग ने कहा कि निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी हर केस में उपलब्ध तथ्यों के आधार पर फैसला लेंगे। इसके अलावा निर्वाचन आयोग ने याचिकाकर्ताओं की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास आरोप को स्थापित करने के लिए कोई ठोस मैटेरियल नहीं है। आयोग के पास SIR कराने का अधिकार है।

जवाब में आयोग ने कहा कि चुनाव आयोग और उसके अधिकारियों की ओर से वो हर संभव कोशिश की गई है जिसके जरिए यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी वाजिब मतदाता का नाम मतदाता सूची से बाहर ना हो। यही नहीं, इस प्रकिया में कई स्टेज पर वोटर लिस्ट को चेक किया जाएगा। इसके अलावा किसी भी मतदाता का नाम उचित प्रक्रिया को पूरा किए बगैर या न्याय के बुनियादी सिद्धांतो के तहत पूरा मौका दिए बगैर मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।

चुनाव आयोग राष्ट्रीय स्तर पर SIR कराएगा इसकी शुरुआत बिहार से इसलिए की गई है क्योंकि प्रदेश में इसी साल नवंबर में चुनाव होने हैं। इसका मकसद मतदाता सूची को दुरस्त करना और अयोग्य लोगों को इस सूची से बाहर करना है।

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