आज जब सभी लोग कानपुर में आठ पुलिस वालों के शहीद हो जाने पर गमगीन है और इसे पुलिस व्यवस्था पर बड़ा हमला मान रहे है उन लोगो को इस बात की तसदीक भी करनी चाहिए की विकास दूबे के विकास में कौन लोग है और कौन है जो उसे अभी भी बचाने का काम कर रहे है |
विकास दूबे का गैंग एक दिन में तो नहीं बन गया इसके पीछे एक लम्बी कहानी है और उस कहानी के सूत्रधार कौन लोग है अगर उसका पता सरकार नहीं लगाती है तो इस तरह के विकास को मिटा पाना सरकार के बस की बात नहीं है |
ये सिर्फ एक पार्टी की कहानी नहीं है हर पार्टी ऐसे गुंडों से पटी पड़ी है \ राजनीति में अच्छे लोगो का कोई काम नहीं है उनकी संख्या गिनी चुनी होगी | आज ये देखने की जरुरत है की देश को चलाने में अहम् योगदान देने वाला मध्यम वर्ग का आदमी चुनावों से क्यों दूर रहता है |
कारण वही है अगर कमजोर चुनाव लडेगा तो मरेगा और ये बात जनमानस में बैठी है की पोलिस भी समय पर सहायता नहीं करती | आज पोलिस विभाग को अपनी छवि को सुधारने का काम करना होगा |
इस पुरे प्रकरण का सबसे दुखद पक्ष ये था की विकास दूबे के लोगो ने खोज -खोज कर घायल पोलिस वालों को मार डाला और मारने से पहले उनको बेइज्जत भी किया जो उसके दुस्साहस को बताता है |
अब बात ये है कि किसी क्रिमिनल को पोलिस की पार्टी को खोज -खोज कर मारने की जरुरत क्यों पड़ी और उसने ये क्यों किया ? पीछे के कारण बहुत महत्वपूर्ण है | पोलिस को मारना मतलब खुद की मौत \ क्या ये बात किसी ने विकास को बता दी थी की पोलिस पार्टी उसका एनकाउंटर करने जा रही है |
कोई भी व्यक्ति इस तरह का दुस्साहस तभी करेगा जब उसके सामने कोई राश्ता नही होगा \ इसका मतलब साफ़ है कि पोलिस का कोई भेदिया जिसने पोलिस पार्टी के न सिर्फ जाने बल्कि उनके द्वार विकास के एनकाउंटर की भी बात की होगी तभी विकास बौखलाहट में ये जघन्य काण्ड कर बैठा |
उस पोलिस वाले की भूमिका भी उतनी ही इस हत्या काण्ड में गंभीर है जितनी विकास दुबे के गैंग द्वारा आठ पोलिस वालो को शहीद करना | जिसने भी मुखबिरी की है उसको भी फांसी पे चढ़ाया जाना चाहिए नहीं तो इसी प्रकार पोलिस की बलि चढ़ती रहेगी |