भारत में पत्रकारिता शिक्षा की अगर बात करे तो सौ साल हो चले पर अभी भी पता नहीं की हम है कौन और जाना कहा है \ इसका सबसे ताजा उदाहरण अगर आपको देखना है तो यूजीसी केयर लिस्ट में आप पत्रकारिता और उससे सम्बन्ध रखने वाले विषयों पर इस लिस्ट में जर्नल का हाल देख लीजिये \ पत्रकारिता में बड़े जोर -शोर से पढाया जाने वाला विषय विज्ञापन और जन संपर्क है जिसमे इंडस्ट्री में काफी नौकरी मिलती है पर केयर लिस्ट में जब आप इस नाम से सर्च करते है तो आपको जर्नल की लिस्ट में शून्य दिखायी देगा \ इसी तरह अगर आप पत्रकारिता डालिए तो भी यही हाल है \
सिर्फ कम्युनिकेशन शब्द से कुछ जर्नल मिले पर उसमे भी विज्ञान के विषय से है कुछ ही पत्रकारिता से है \ अब इन जर्नल के केयर लिस्ट में चुनने की क्या प्रक्रिया है ये तो सभी को पता है पर यहाँ पत्रकारिता विषय एकदम साफ़ है जिससे इस क्षेत्र में उच्च श्रेणी के जर्नल की कमी स्पस्ट दिखायी देती है \
ले दे कर कुछ विदेशी जर्नल है पर वो भी इंग्लिश में और इतने नहीं की पुरे देश के पत्रकारिता पढ़ाने वाले लोगो का आर्टिकल या शोध पत्र उसमे जगह पा सके \ अब यूजीसी द्वारा इसमें छपने की अनिवार्यता ने शिक्षको के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है \
पत्रकारिता विषय के सामने सिर्फ यही चुनौती नहीं है \ अगर आप देखे कि हर विश्वविद्यालय में पढाये जाने के बावजूद ये देश के शीर्ष परीक्षा सिविल सर्विस में विषय के रूप में नहीं है \ वही कुछ ऐसे विषय जो बड़े कम जगह पढाये जाते है वो इस लिस्ट में है \ देश में पत्रकारिता पढने वाले छात्रो के सामने न सिर्फ ये एक चुनौती है बल्कि उनके अवसर को छिनने जैसा है \ भारत सरकार को जल्द से जल्द इस पर ध्यान देना चाहिए जिससे इस विषय को मुख्य धारा में जगह मिल सके \