रामराज्य नित प्रजा सुखाई, इसमें पण्डित दीनदयाल के अन्तोदय का भाव हैः कुलपति प्रो0 प्रतिभा गोयल

Update: 2023-09-25 14:10 GMT

अयोध्या। डॉ० राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के स्वामी विवेकानंद सभागार में सोमवार को पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर माल्यार्पण एवं पण्डित दीनदयाल उपाध्यायः जीवन एवं दर्शन विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि व वक्ता श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या के महासचिव चम्पत राय ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुष के बारे में मुझे बोलना अच्छा लगता है। आरएसएस 1925 से चल रहा है लेकिन मुझे नहीं लगता कि आरएसएस के संचालनकर्ता, संगठनकर्ता और चिंतक दीनदयाल जी को कभी 30 दिन में 60 समय भोजन मिला होगा। लेकिन उन्होंने एक विचार समाज को दिया जो आज एक वट वृक्ष बन गया है। उन्होंने बताया कि किसी ने संसद में ही कहा कि यह दैवीय पुरुष थे। किसी ने अवतारी कहा किसी ने कहा महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक और सुभाष चंद्र बोस इन तीनों के विचारों का एकात्मक सूत्र है तो वह है दीनदयाल उपाध्याय।

उन्होंने कहा कि अंत्योदय अर्थात अंतिम व्यक्ति का उदय। यह पंडित जी की सशक्त विचारधारा थी। उनका मानना था की सबसे गरीब आदमी, निचले पायदान के व्यक्ति के उत्थान की आवश्यकता है। आर्थिक उन्नति इसमें नहीं की अमीर आदमी कितना विकास कर रहा है कितना उन्नत हो रहा है बल्कि इसमें है कि गरीब व्यक्ति अपने बच्चों को पढ़ाने की स्थिति में है कि नहीं है। उन्होंने कहा कि विकास का पैमाना होना चाहिए कि निचले पायदान का आदमी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए सामथ्र्यवान हो। दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा कि इस मिट्टी में अरबपति भी पैदा होता है और मजदूर भी और इस मिट्टी को हम मां कहते हैं। अगर हमें स्वाभिमान से रहने का अधिकार है तो उसी स्वाभिमान से मजदूर को रहने का भी हक है। हम मानव जाति परमात्मा की उत्कृष्ट कृति हैं।

पंडित जी ने कहा था एक संस्था की भलाई की योजना बनाएं तो यह विचार करना चाहिए कि कहीं दूसरी इकाई को नुकसान तो नहीं हो रहा है। दीनदयाल जी ने अपने पूर्वजों के द्वारा लिखी गई बातों को दोहराया है उस पर अमल किया है। उनका मानना था जैसे आत्म संतुष्टि आत्मिक सुख है वैसे ही राष्ट्र की भी आत्मा होती है और उसकी भी आत्मिक संतुष्टि और आत्मिक सुख होता है। राष्ट्र अपनी आत्मा को दे वह भी उसी प्रकार मृत हो जाता है जैसे शरीर अपनी आत्मा को खो दे तो वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि वे ऐसे व्यक्ति थे जो किसी सुख सुविधा में नहीं पले थे परंतु जीवन में कभी रोए भी नहीं थे और न निराश हुए थे। उनके चिंतन पर जो भी किसी विश्वविद्यालय में या किसी संस्था में कहा जाए उसे लोग मनन करें। लिखें और उसका उपयोग देश की योजनाओं एवं विकास के लिए करें।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अवध विवि की कुलपति प्रो0 प्रतिभा गोयल ने राष्ट्र और मानव को दिशा देने वाले भारत के महान युगपुरूष कर्मयोगी पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ने मानव जीवन और सम्पूर्ण प्रकृति के एकात्मक सम्बन्धों का मौलिक विचार समाज के सामने रखा है। मानव विविधा आपसी एकता को अभिव्यक्त करती है। सभी शक्ति का समन्वय ही एकात्मकता है। कुलपति प्रो0 गोयल ने कहा कि हमारी सभ्यता और दर्शन के अनुसार पूरी व्यवस्था सद्भाव पर टिकी हुई है। प्राणी के चार पहलू होते है। शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा। इन्हीं रूपों का संकलन है मानव। इन चारों की जरूरतों के जीवन दर्शन में में पूरूषार्थ की आवश्यकता होती है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन सबका आपस में अटूट सम्बन्ध है।

इन चारों में सामजस्य कायम रखना किसी भी व्यक्ति के जीवन के आवश्यक होता है। कार्यक्रम में कुलपति ने कहा कि दीनदयाल जी का मत था कि व्यक्तिवाद, राष्ट्रवाद और अन्तरराष्ट्रवाद में किसी प्रकार का अन्तर विरोध नही होना चाहिए। व्यक्ति के आगे समाज है, समाज के आगे राष्ट्र है और राष्ट्र के आगे अन्तरराष्ट्र है। कुलपति ने कहा कि उपाध्याय जी का शिक्षा के प्रति दृढ निश्चय था। उन्होंने कहा कि अन्तोदय शिक्षा के माध्यम से हो सकता है। वर्तमान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भलीभांति जोड़ा गया है। अंतिम पायदान में खडे़ व्यक्ति को शिक्षा से जोड़ा जाए। शिक्षा के रास्ते विकास की ओर ले जाए। राष्ट्र को विश्वगुरू बनना है इसमें समाहित है। दीनदयाल जी के विचार ऐसी व्यवस्था को उजागर करता है जिनमें राष्ट्रीयता, मानवता, विश्व शांति की भावना उत्पन्न करके व्यक्ति परिपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है। कार्यक्रम में कुलपति ने कहा कि रामराज्य नित प्रजा सुखाई, इसमें अन्तोदय का भाव है। इसलिए आज भी पण्डित जी के विचारों को आत्मसात् करने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के समन्वयक प्रो0 आशुतोष सिन्हा ने अतिथियों को स्वागत करते हुए कहा कि दीनदयाल जी अपना सम्पूर्ण जीवन देश के लिए न्योछावर कर दिया है। ऐसे महापुरूष के प्रति आज सच्ची श्रद्धाजंलि होगी। विद्यार्थियों को उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व को जानने की जरूरत होगी। समन्वयक ने कहा कि पण्डित दीनदयाल के एकात्मवाद में हर समस्या का समाधान है। इसमें पूरे विश्व का उत्थान है। इसलिए भारत को विश्व गुरू बनने से रोक नही सकता है। कार्यक्रम में आईईटी के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ0 सुधीर श्रीवास्तव ने पण्डित दीनदयाल के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए समाज के विकास के बिना व्यक्ति का विकास संभव नही है। यहीं उपाध्याय जी जीवन और दर्शन है।

कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा पण्डित दीनदयाल जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं सरस्वती माॅ की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया गया। अतिथियों का स्वागत स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्रम भेटकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन अर्थशास्त्र एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रो0 विनोद कुमार श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर कुलसचिव डाॅ0 अंजनी कुमार मिश्र, प्रो0 एसएस मिश्र, प्रो0 चयन कुमार मिश्र, प्रो0 आरएन राय, प्रो0 आरके सिंह, प्रो0 मृदुला मिश्रा, प्रो0 के0के0 वर्मा, डाॅ0 प्रिया कुमारी, डाॅ0डीएन वर्मा, डाॅ0 संजय कुमार चैधरी, डाॅ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डाॅ0 अनिल कुमार मिश्र, डाॅ0 अनुराग पाण्डेय, डाॅ0 शैलेन वर्मा, डाॅ0 शिवांश कुमार, डाॅ0 सरिता द्विवेदी डाॅ0 सरिता सिंह, डाॅ0 कविता श्रीवास्तव सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी मौजूद रहे।

उद्घाटन सत्र के उपरांत तकनीकी सत्र का आयोजन अर्थशास्त्र विभाग में किया गया जिसमें शोधर्थिओं नें शोध पत्र प्रस्तुत किये। प्रथम तकनीकी सत्र का विषय पं. दीनदयाल उपाध्याय का जीवन और कृत्तित्व था जिसकी अध्यक्षता प्रो0 मृदुला मिश्रा ने की। द्वितीय तकनीकी सत्र का विषय प. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन था जिसकी अध्यक्षता प्रो. संजय चैधरी एवं सह अध्यक्षता डॉ0 प्रिया कुमारी ने की। कार्यक्रम में डॉ. अलका श्रीवास्तव द्वारा संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

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