फिल्मों में नारी को सशक्त रूप को दिखाया जायेः कुलपति प्रो0 प्रतिभा गोयल
सिनेमा जनसंवाद का सशक्त माध्यमः प्रो0 संजीव भनावत
सिनेमा को रियल होना चाहिएः आलोक पराड़कर
आज फिल्मों के संवादों में गिरावट आई हैः अरूण त्रिवेदी
अयोध्या। डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय व बचपन एक्सप्रेस, लखनऊ तथा ख्वाजा मोइद्दीन चिस्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ और बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को सायं चार बजे ओ0टी0टी0 के दौर का सिनेमा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का शुभारम्भ किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अवध विवि की कुलपति प्रो0 प्रतिभा गोयल ने कहा कि सिनेमा समाज को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है।
दर्शकों को कंटेंट परोसते समय फिल्मकारों को इसका ध्यान देना चाहिए क्योंकि सिनेमा का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। कुलपति ने कहा कि समाज को ऐसी फिल्में दे जिसमें नारी के सशक्त रूप को दिखाया जाये। उन्होंने कहा कि आज ओटीटी से सिनेमा घरों तक पहुंच गया है। सिनेमा ऐसा हो जो महिलाओं के उत्तम चरित्र को दर्शाये। समाज से जुड़ी वास्तविकता को दिखाये।
निर्माता को ऐसी फिल्मे निर्मित करनी चाहिए जो समाज को नयी दिशा दें। उन्होंने कहा कि ओटीटी मनोरंजन उद्योग ने महिलाओं को केवल सहारे के रूप में इस्तेमाल नही किया है बल्कि उनकी प्रतिभा और रचनात्मकता दिखाने का अवसर भी प्रदान किया है।
वेबिनार के मुख्य वक्ता पूर्व प्रोफेसर डाॅ0 संजीव भनावत, पत्रकारिता विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, राजस्थान ने कहा कि सिनेमा जनसंवाद का सशक्त माध्यम है। साहित्य सिनेमा का गहरा रिश्ता रहा है। फिल्मकारों को आसपास के यथार्थ को कलाकारों के चरित्र के माध्यम से समाज को दिखाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओटीटी से फिल्मों के कंटेंट पर भी काफी असर पड़ा है। जहां पहले तीन घंटे की फिल्म दर्शकों का मनोरंजन करती थी, अब कई घंटों की वेब सीरीज लोगों का मन जीत रही है।
वेबिनार के विशिष्ट अतिथि कला समीक्षक व पत्रकार आलोक पराड़कर ने कहा कि स्त्री विमर्श के रूप में फिल्मों को दिखाना चाहिए। क्योकि हिंदी सिनेमा का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डालता है। सिनेमा को कला की भांति होना चाहिए। थियेटर के जो लोग रंगमंच से आये इन्होने अपनी अलग छाप छोड़ी। कला के बल पर ही सिनेमा नहीं चल सकता। इसलिए व्यवसायिकता आगे आयी। बहुत सी फिल्मो में स्त्रियों के अच्छे चरित्र को भी दिखाया गया है।
सिनेमा को रियल होना चाहिए। इसी क्रम में विशिष्ट अतिथि भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ के पूर्व निदेशक अरूण त्रिवेदी ने कहा कि सिनेमा जगत में पहले के समय और आज में समय में महिलाओं की भूमिका में बहुत फरक देखने को मिला है। 70 के दशक में कलाकारों की गरिमा होती थी।
आज उसमे गिरावट आयी है। संवादों में भी गिरावट आयी है। पाकीजा और मुगले आजम जैसी फिल्मो को परिवार के साथ भी देखना पसंद किया जाता है। गरिमामयी स्त्री की गरिमा को बना के प्रस्तुत किया जाना चाहिए। कार्यक्रम को डाॅ0 कौशल त्रिपाठी ने भी संबोधित किया।
वेबिनार में आयोजक प्रबंध निदेशक बचपन एक्सप्रेस की मीना पाण्डेय ने अतिथियों का स्वागत किया। दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार के संयोजक फिल्म समीक्षक एवं विभागाध्यक्ष पत्रकारिता विभाग के प्रो0 गोविन्द जी पाण्डेय द्वारा वेबिनार की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन सह संयोजक व अवध विवि के पत्रकारिता विभाग के समन्वयक डाॅ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी द्वारा किया गया। कार्यक्रम में वेबिनार के सह संयोजक डाॅ. रूचिता चैधरी, डाॅ0 मनीष जैसल, डाॅ0 योगेन्द्र पाण्डेय सहित बड़ी संख्या में शिक्षकगण एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।