“Introduction to Human-Centered Design (HCD)” पर एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न
कानपुर, 15 नवम्बर 2025 – छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (CSJMU), कानपुर के स्कूल ऑफ आर्ट्स, ह्यूमैनिटीज़ एंड सोशल साइंसेज़ एवं IQAC के संयुक्त तत्वावधान में “Introduction to Human-Centered Design (HCD)” पर एक दिवसीय क्षमता निर्माण कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। यह कार्यशाला ज्ञान-विनिमय, सहभागिता और co-learning आधारित मॉडल पर केंद्रित रही, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य के विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्ण भागीदारी दर्ज की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे डॉ. उमेश पालीवाल, प्रबंध निदेशक, पालीवाल डायग्नोस्टिक सेंटर, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री प्रतीक तिवारी, प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर—हेल्थ सिस्टम स्ट्रेंथनिंग (विटामिन एंजेल्स) उपस्थित हुए।कार्यक्रम में सह-पैट्रन प्रो. संदीप कुमार सिंह तथा सह-पैट्रन एवं निदेशक डॉ. किरण झा की गरिमामयी उपस्थिति रही।
उद्घाटन एवं स्वागत संबोधन में प्रो. संदीप कुमार सिंह ने कहा कि “Human-Centered Design आज के दौर की अत्यंत आवश्यक कार्यपद्धति है, जो हमें केवल समस्याओं को देखने के बजाय वास्तविक उपयोगकर्ताओं की ज़रूरतों को समझने और संवेदनशील समाधान विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ाती है। छात्रों द्वारा इस प्रकार की कार्यशाला का आयोजन उनकी नेतृत्व क्षमता और शैक्षणिक परिपक्वता का परिचायक है।”
सत्र के दौरान श्री प्रतीक तिवारी ने HCD के सिद्धांतों, उसके चरणों और स्वास्थ्य प्रणाली में इसकी प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा, “HCD हमें यह सिखाता है कि किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य समाधान का केंद्र—हमेशा इंसान होना चाहिए। जब हम उपयोगकर्ता की परिस्थितियों, सीमाओं और अनुभवों को समझते हैं, तभी टिकाऊ समाधान संभव हो पाते हैं।”
डॉ मुख्य अतिथि डॉ. उमेश पालीवाल ने रोगी-केंद्रित स्वास्थ्य सेवाओं और नवाचार की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “स्वास्थ्य सेवाओं का भविष्य निर्भर करता है उन प्रणालियों पर, जिन्हें हम मानव-केंद्रित बनाते हैं। HCD न केवल स्वास्थ्य प्रणाली को संवेदनशील बनाता है, बल्कि नवाचार और दक्षता को भी बढ़ाता है। ऐसे प्रशिक्षण युवाओं में व्यवहारिक समझ और नई दृष्टि विकसित करते हैं।”
धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए डॉ. किरण झा ने कहा, “इस प्रकार की सहभागी और कौशल-विकास आधारित कार्यशालाएँ छात्रों को समुदाय-आधारित तथा नवाचारपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समाधान विकसित करने के लिए प्रेरित करती हैं।”
कार्यशाला की मुख्य विशेषताएँ
कार्यशाला के दौरान विद्यार्थियों को HCD की मूल अवधारणाएँ, समस्या-पहचान, उपयोगकर्ता-समझ, विचार-सृजन एवं समाधान-विकास की इंटरैक्टिव प्रक्रिया से अवगत कराया गया। समूह गतिविधियों, brainstorming sessions और real-life case discussions ने सत्र को अत्यंत सहभागितापूर्ण बनाया।
विशेष रूप से “Mental Health in the Digital Age” पर आयोजित समूह गतिविधि में छात्रों ने डिजिटल युग में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े जटिल मुद्दों पर चर्चा की, जिनमें शामिल थे:
प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ:
• डिजिटल ओवरलोड, बर्नआउट एवं टेक्नोलॉजी पर निर्भरता
• सोशल मीडिया दबाव व तुलना की प्रवृत्ति
• नींद में गड़बड़ी और भावनात्मक असंतुलन
• भावनात्मक एकाकीपन और घटती संवाद क्षमता
• बढ़ती एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन और पारिवारिक तनाव
• शिक्षा में एकाग्रता की कमी
• सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बढ़ता मानसिक स्वास्थ्य भार
• भविष्य की पीढ़ियों पर दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
छात्रों द्वारा सुझाए गए मानव-केंद्रित समाधान:
• डिजिटल वेलनेस और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना, ताकि युवाओं को स्वस्थ डिजिटल व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सके।
• स्क्रीन टाइम कम करने के लिए आसान और व्यवहारिक उपाय अपनाना, जैसे डिजिटल रूटीन, ब्रेक-रिमाइंडर और टेक-फ्री समय।
• सोशल मीडिया के दबाव को कम करने हेतु व्यावहारिक रणनीतियाँ विकसित करना, जिससे तुलना की प्रवृत्ति, चिंता और आत्मसम्मान से जुड़ी समस्याओं में कमी लायी जा सके।
• डिजिटल आदतों में सुधार के लिए नवाचारपूर्ण समाधान तैयार करना, जैसे ऐप-आधारित मॉनिटरिंग, समय-सीमा निर्धारण और सकारात्मक डिजिटल व्यवहार को बढ़ावा देने वाली तकनीकें।
• मानसिक स्वास्थ्य को केंद्र में रखते हुए नीतिगत सुझाव देना, जिससे संस्थागत और सामुदायिक स्तर पर मानसिक कल्याण को बढ़ावा मिल सके।