ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार 19 को स्मार्त व 20 को वैष्णव मतावलम्बी मनाएंगे जन्माष्टमी
काशी धर्म परिषद के महासचिव प्रख्यात ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार सनातन धर्म भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत के रूप में माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र पद कृष्ण अष्टमी, बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्द्धरात्रि के समय वृषभ राशि के चंद्रमा में हुआ था। भगवान विष्णु के दशावतारों में सर्वप्रमुख पूर्णा अवतार अष्टमी तिथि द्वापर के अंत में 12.14 मिनट पर हुआ था।
भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि 18/19 अगस्त की अर्द्धरात्रि 12.14 मिनट पर लगेगी जो कि 19/20 की मध्य रात्रि 01.06 मिनट तक रहेगी। जबकि उदयाव्यापिनी रोहिणी मतावलंबी वैष्णवजन श्रीकृष्ण व्रत 20 अगस्त करेंगे। रोहिणी तिथि 20 अगस्त की भोर 04.58 पर लगेगी जो 21 अगस्त को प्रातः 7:00 बजे तक रहेगी। वहीं, जन्माष्टमी व्रत की पारन 20 अगस्त को प्रातः किया जाएगा।
यह सर्वमान्य और पापन व्रत बाल कुमार, युवा, वृद्ध सभी अवस्था के श्रद्धालुओं को करना चाहिए। इससे अनेकानेक पापों की निवृत्ति एवं सुखादि की वृद्धि होती है। जो इस व्रत को नहीं करते हैं उनको पाप लगता है। व्रति को चाहिए कि उपवास के पहले दिन रात्रि में अल्पाहार करें। रात्रि में जितेन्द्रीय रहे और व्रत के दिन प्रातः स्नानादि कर सूर्य, सोम, पवन, दिम्पति, भूमि, आकाश, यम और ब्रह्म आदि को नमस्कार कर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके हाथ में जल-अक्षत कुश व फूल लेकर मास, तिथि व पक्ष का उच्चारण करते हुए संकल्प लें। संकल्प में 'मेरे सभी तरह के पापों का शमन व सभी अनिष्टों की सिद्धि के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत करूंगा या करूंगी, यह संकल्प करें।
'मध्याहन के समय काले तिल के जल से स्नान करके देवकीजी के लिए सुतिकागृह नियत करें। उसे स्वच्छ व सुशोभित करके उसमें सुतिका उपयोगी समस्त सामग्री यथाकर्म रखे। सुंदर बिछौना पर अक्षत आदि का मंडल बनाकर उस पर कलश स्थापन करें। उसी पर श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें। फिर रात्रि में भगवान के जन्म के बाद जागरण व भजन इत्यादि करना चाहिए। इस व्रत को करने से पुत्र की इच्छा रखने वाली महिलाओं को पुत्र, धन की कामना रखने वालों को धन और यहां तक कि इस व्रत से सब कुछ प्राप्ति संभव है।