इस बार घोड़े पर सवार होकर आएंगी मां जगदंबा, मनुष्य वाहन से करेंगी प्रस्थान
हिंदु धर्म के पावन पर्वों में से एक नवरात्र भी है। चैत्र माह की शुरुआत हो चुकी है और कुछ ही दिनों में चैत्र माह की नवरात्र भी शुरू होने वाली है। यह पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक 9 दिनों तक चलने वाला यह पर्व मां दुर्गा को समॢपत होता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की उपासना के साथ ही व्रत भी किए जाते हैं। एक वर्ष में बार नवरात्र आती हैं। इनमें से दो गुप्त नवरात्र होती हैं तो 2 सार्वजनिक।
चैत्र नवरात्र 13 अप्रैल से शुरू होने जा रहे हैं। इनका समापन 22 अप्रैल को होगा। इस नवरात्र मां दुर्गा का आगमन घोड़े पर हो रहा है। जबकि प्रस्थान मनुष्य वाहन से होगा। चैत्र नवरात्र पर कलश स्थापना प्रात:काल 6:20 से लेकर 9:59 बजे शुभ मुहूर्त है। अभिजीत मुहूर्त पूर्वाह्न 11.41 से दोपहर 12:32 तक रहेगा। 12 अप्रैल की सुबह 8:01 बजे से प्रतिपदा लगेगी जोकि दूसरे दिन 13 अप्रैल की सुबह 10:17 बजे तक रहेगी।
इसबार दुर्गा माता का आगमन घोड़े पर हो रहा है। क्षत्र भंग तुरंगमे ...। घोड़े पर जब-जब मां जगदंबा का आगमन होता है, राजनीतिक उथल-पुथल का योग बनता है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। जबकि माता का गमन (विदाई) नर वाहन यानी मनुष्य के कंधे पर होगा। माता का जाना सुखद फलदायी होगा। वैसे सभी श्रद्धालुओं समस्त देवी के उपासकों के लिए यह नवरात्र विशेष फलदायी रहेगा। नौ शक्तियों से युक्त रहने के कारण यह नवरात्र पर्व होता है।
नवरात्र में भगवती दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है। दुर्गा दुर्गति नाशिनी... अर्थात जो सृष्टि की दुर्गति का विनाश करे, वही दुर्गा है। नवरात्रि में हर दिन माता के विभिन्न स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती है। माता के अलग-अलग स्वरूप की कृपा से भक्तों के अलग-अलग मनोरथ पूर्ण होते हैं। माता की कृपा से भक्त सुख, शक्ति , धन, धान्य, वैभव व ऐश्वर्य से सम्पन्न होते हैं।
काशी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं ऋषि द्विवेदी के अनुसार माता का वाहन सिंह है, लेकिन तिथि के अनुसार हर साल माता का वाहन अलग-अलग होता है। यानी माता सिंह के बजाए दूसरी सवारी पर सवार होकर भी पृथ्वी पर आती हैं। सोमवार रविवार को प्रथम पूजा यानी कलश स्थापन होने पर माता दुर्गा हाथी पर आती हैं। शनिवार तथा मंगलवार को कलश स्थापन होने पर माता का वाहन अश्व यानी घोड़ा होता है।
गुरुवार अथवा शुक्रवार के दिन कलश स्थापन होने पर माता डोली पर चढ़कर आती हैं। बुधवार के दिन कलश स्थापन होने पर माता नाव पर सावर होकर आती हैं। माता जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार वर्ष में होने वाली घटनाओं का भी आंकलन किया जाता है। घोड़ा युद्ध का प्रतीक माना जाता है। घोड़े पर माता का आगमन शासन और सत्ता के लिए अशुभ माना गया है। इससे सरकार को विरोध का सामना करना पड़ता है और राजनीतिक उथल-पुथल का योग बनता है।
कब कौन से रूप का पूजन करें
प्रतिपदा- मां शैलपुत्री की पूजा और घट स्थापना
द्वितीया- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
तृतीया- मां चंद्रघंटा पूजा
चतुर्थी- मां कूष्मांडा पूजा
पंचमी- मां स्कंदमाता पूजा
षष्ठी- मां कात्यायनी पूजा
सप्तमी- मां कालरात्रि पूजा
अष्टमी- मां महागौरी
नवमी- मां सिद्धिदात्री
घट स्थापना मुहूर्त
घट स्थापना शुभ मुहूर्त - प्रात:काल 6:20 से 9:59 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त - पूर्वाह्न 11:41 बजे से 12:32 बजे तक
जाने नवरात्रि के नौ दिन किसकी पूजा, से, क्या है लाभ?
13 अप्रैल, मंगलवार: नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समॢपत है। इस दिन कलश स्थापना यानी घटस्थापना की जाती है। मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति पर मां का आशीर्वाद बना रहता है।
14 अप्रैल, बुधवार : नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समॢपत है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति में तप, त्याग, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।
15 अप्रैल, गुरुवार : नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समॢपत है। इनकी पूजा करने से वाणी मधुर होती है।
16 अप्रैल, शुक्रवार : नवरात्रि का चौथा दिन मां कुष्मांडा को समॢपत है।इनकी पूजा करने से रोग-शोक दूर होते हैं और आयु और यश में वृद्धि होती है।
17 अप्रैल, शनिवार : नवरात्र का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समॢपत है। इनकी पूजा करने से मोक्ष के द्वारा खुल जाते हैं।
18 अप्रैल, रविवार : नवरात्र का छठा दिन मां कात्यायनी को समॢपत होता है. इनकी पूजा करने से दुश्मन निर्बल हो जाते हैं।
19 अप्रैल, सोमवार : नवरात्र का सातवां दिन मां कालरात्रि को समॢपत होता है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
20 अप्रैल, मंगलवार : नवरात्र का आठवां दिन मां महागौरी को समॢपत होता है। इनकी पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और सुखों में वृद्धि होती है।
21 अप्रैल, बुधवार : नवरात्र का नौवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को समस्त नव-निधियों की प्राप्ति होती है।