विश्व प्रसिद्ध पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा का प्रारंभ आज से हो रहा है. इस वर्ष कोराना काल में बाहर से लोगों को इस रथ यात्रा में शामिल होने पर प्रतिबंध है. पूरे क्षेत्र में एक दिन पहले से ही कर्फ्यू लगा दिया गया है. हालांकि पारंपरिक तरीके से आज भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा पर निकलेंगे. वर्ष में एक बार भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं. वे तीनों जगन्नाथ पुरी मंदिर से अपनी मौसी के घर गुण्डीचा तक यात्रा करते हैं और फिर सात दिन बाद वहां से वापस आते हैं.
पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है. पुरी को पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है. राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं. यानी राधा-कृष्ण को मिलाकर उनका स्वरूप बना है और कृष्ण भी उनके एक अंश हैं. ओडिशा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की काष्ठ यानी लकड़ियों की अर्धनिर्मित मूर्तियां स्थापित हैं. इन मूर्तियों का निर्माण महाराजा इंद्रद्युम्न ने करवाया था.
माना जाता है कि इस रथ यात्रा के दर्शन करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. 144वीं रथयात्रा का आयोजन सादे तरीके से कम समय में हो जाएगी. इस बार 12 घंटे के स्थान पर चार-पांच घंटे में यात्रा समाप्त हो जाएगी, हालांकि यह पहले की तरह 19 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. पारंपरिक तौर पर रथों के नेतृत्व में यात्रा, चार सौ साल पुराने मंदिर से सुबह सात बजे शुरू होती है और रात आठ बजे लौटकर समाप्त होती है. इस बार केवल 60 युवाओं को अनुमति दी गई है जिसमें से प्रत्येक रथ को 20 युवा खींच रहे हैं.