कल से शुरू होंगे वासंतिक नवरात्रि , पूजा के लिए सिर्फ ढाई घंटे का मुहूर्त

Update: 2022-04-01 15:59 GMT

 

लखनऊ : शक्ति की उपासना का महापर्व नवरात्रि कल से प्रारंभ हो रहा है । वर्ष में प्रमुख रूप से 2 नवरात्रि मनाए जाते है पहला वासंतिक और दूसरा शारदीय ।चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक वासंतिक नवरात्र मनाए जाते हैं । इस वर्ष यह पर्व 2 अप्रैल से 10 अप्रैल तक मनाया जाएगा । चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा इस बार 1 अप्रैल को 11.29 बजे लग रही जो 2 अप्रैल को 11.29 तक रहेगी ।अतः उदया तिथि के अनुसार कलश स्थापना 2 अप्रैल को की जाएगी ।इस बार पूरे नौ दिन नवरात्र के मिल रहे लेकिन पूजन के लिए सूर्योदय के बाद मात्र ढाई घंटे ही मिलेंगे ।

प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि घट स्थापना के लिए प्रातः काल का मुहूर्त सबसे शुभ होता है ।

इस बार 2 अप्रैल को प्रातः 8.22 बजे के बाद वैधृति योग आ रहा है । शास्त्रों में कहा गया है कि वैधृति पुत्र नाशिनी.... अतः वैधृति योग में घटस्थापना नही करनी चाहिए । अतः घटस्थापना का शुभमुहूर्त प्रातः 5.52 से 8.22 तक रहेगा ।शास्त्रों के अनुसार महानिशा पूजन सप्तमीयुक्त अष्टमी में किया जाएगा ।इसके लिए मध्यरात्रि में निशीथ व्यापिनी अष्टमी योग आठ अप्रैल को मिल रहा इसमें महानिशा पूजन किया जाएगा । 10 अप्रैल को महानवमी के दिन प्रभू श्रीराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा । महाष्टमी व्रत का पारण 10 अप्रैल को और नव दिवसीय व्रत का पारण 11 अप्रैल को होगा ।

*अश्व पर आगमन महिष पर विदाई*

नवरात्रि पर इस बार पराम्बा का आगमन अश्व पर होगा तो विदाई महिष पर होगी ।ऐसे में माता का आगमन शुभ नही है । इसका फल देश पर विपत्ति बड़े नेताओं का निधन ,प्राकृतिक आपदा दुर्घटना आदि हो सकता है ।

*ध्वज पताका लगाएं बंदनवार सजाएं*

नवरात्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की प्रातः नित्य क्रिया से निवृत्त हो तैलाभ्यंग स्नान और फिर ब्रह्मा का पूजन करना चाहिए ।पंचांग श्रवण नवसंवत्सर के राजा मंत्री आदि का फल श्रवण के साथ घर को ध्वज पताका बंदनवार तोरण आदि से सजाकर नवरात्रि व्रत का संकल्प लेना चाहिए ।गणपति और मातृका पूजन कर नौदुर्गा या सिंहवाहिनी नवदुर्गा की प्रतिमा लकड़ी के पटरे पर स्थापित करनी चाहिए ।पीली मिट्टी की डली पर कलावा लपेटकर कलश के ऊपर गणपति के रूप में स्थापित करवाएं ।जौ का पात्र रखकर वरुण पूजन ,षोडश मात्रक स्थापना और फिर मां पराम्बा का पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए ।इसके अतिरिक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना चाहिए ।

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