श्रीमदभागवत कथा के क्रम में कथावाचक आचार्य अमरदेव ने भगवान की प्राप्ति के साधन श्रद्धा और विश्वास के महत्व का वर्णन किया बताया कि भगवान के प्रति
जितना अधिक विश्वास होगा उतनी ही बडी श्रद्धा होगी क्योंकि दोनों एक दूसरे से अलग नही रह सकते जब दोनों भावों का भक्त के ह्रदय में जितना प्रगाढ़ समन्वय होगा उतनी ही शीघ्रता से भक्त को भागवत भगवान का साक्षातकार होगा और उसे भगवान के मिलन की आनन्द की अनुभूति वैसे होगी जैसे प्यासे को पानी पीने पर ,भूखे को भोजन मिलने पर संतोष और आनन्द की अनुभूति होती है इसलिए काम,क्रोध आदि अन्दर बैठे हुए सभी शत्रुओं को पराजित कर मनुष्य को भागवत भगवान की चरण शरण में आना चाहिए इस प्रकार दुर्गुणों को त्याग कर भागवत कथा श्रवण करने से प्राणियों के पापों का शमन हो जाता है और भागवत की पावन कथा --श्रवण का अधिकारी बन जाता है।