मंद बुद्धि वाले पशु जगत को ही अगर प्रशिक्षण देने वाला मिल जाए तो उसमें भी प्रतिभा का निखार आ जाता है।वह भी अपनीयोग्यता का प्रदर्शन कर मानव जाति को हैरानी में डाल सकता है।यह काम वैज्ञानिक द्वारा निर्मित कोई भी मशीन नही कर सकती है।सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान से संपूर्ण विकास संभव नही है।जब तक की अनुभव का उसमे समावेश न हो।बाल्यकाल में जो प्रशिक्षण दिया जाए उसमे परिपक्वता आती है।वीर अभिमन्यु ने चक्रव्यू की रचना का प्रशिक्षण अपनी माँ के गर्भ में ही प्राप्त कर लिया था जिसकी पुष्टौ आज का विज्ञान कर रहा है।हर व्यक्ति जब स्वयं प्रशिक्षित हो तभी वह दूसरों का मार्ग दर्शन कर सकेगा।चरित्र निर्माण का प्रशिक्षण न तो वर्तमान के स्कूल कालेज का लक्ष्य है और नही माता पिता भी इसके लिए गंभीर है।शिक्षण पद्धति में अमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।यह अंग्रेजो के द्वारा लागू की गई शिक्षा का अंश है ।
अधूरा प्रशिक्षण भी खतरों से खाली नही है।अधूरा प्रशिक्षण दिशाहीन होता है।साथ मे अपने सहवास में रहने वाले को भी मझदार में डुबोता है।माता पिता और गुरुओं के चरणों मे रहकर लिया गया प्रशिक्षण आशीर्वाद पूर्वक प्राप्त होता है वह जीवन मे वरदान साबित होता है।ज्ञान मनुष्य के नेत्र है।इसके अभाव में आंखे वाला भी अंधे के समान है।ज्ञान वह ज्योति है जिसके द्वारा विश्व के कल्याण में सहयोगी बनती है।विश्व मे ज्ञानियों की पूजा होती है।ज्ञानी हर जगह सम्मानित होता है।अपने देश का नाम रोशन करता है।उससे समाज जीवन रूपी नैया को पार लगा देती है।
*कांतिलाल मांडोत सूरत*