सहकारी समितियों में खाद न आने से किसान हो रहे मायूस, प्राइवेट दुकानों की कट रही चांदी
भारत देश किसानों का देश कहा जाता है, हमारे देश की तरक्की भी किसानों की तरक्की पर ही निर्भर है । किसानों के लिए जय जवान जय किसान जैसे नारे लगाए जाते हैं । हमारे देश में किसानों को अन्नदाता भी कहा जाता है । सरकारों द्वारा समय-समय पर किसानों की उन्नति और तरक्की के लिए अनेकों घोषणाएं की जाती है । सन् 2014 में जब मोदी की सरकार सत्ता में बनी तो किसानों के लिए कई तरह के महत्वकांक्षी कदम उठाए गए और सरकार के द्वारा दावा किया गया कि हम किसानों की आय को दोगुना कर देंगे । इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के उपरांत किसानों को लेकर तरह-तरह के वादे और घोषणाएं की गईं, उनको मिलने वाली कई तरह की सहूलियतों का बढ़ चढ़कर बखान किया गया । किंतु क्या वास्तव में किसानों की हालत में कोई सुधार अभी तक आया है यह अभी भी बहुत बड़ा सवाल बना हुआ है ।
किसानों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं पर आज भी सरकार का रुख व रवैया बड़ा ही ढुलमुल होता है, इसका जीता जागता क्षेत्र में ही देखने को मिल जाता है। विकासखंड की समितियों पर ताले लटक रहे हैं जिसके परिणाम स्वरुप क्षेत्र के संपूर्ण किसान बड़े-बड़े साहूकारों द्वारा संचालित की जा रही निजी खाद की दुकानों से यूरिया लेने को मजबूर हो रहे हैं । बताते चलें कि जहां सरकारी समितियों में डीएपी खाद का रेट सामान्य रेट से मिलता है वहीं क्षेत्र के निजी दुकानों पर खाद का रेट ज्यादा होता है जिससे किसानों को अतिरिक्त बोझ उड़ा उठाना पड रहा है जहां एक और सरकार किसानों की आमदनी दुगनी करने की बात कर रही है। वहीं क्षेत्र के किसानों को खाद के लिए दर-दर भटकना पड़े व अपनी जेब निजी दुकानदारों द्वारा कटवाने पड़े। इससे अपने आप की सरकार द्वारा किसानों के प्रति किए जा रहे बड़े-बड़े वादों व दावे पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।