"भारतीय संस्कृति और वैश्विक समरसता: गाँधीवादी मूल्यांकन" विषय पर विचार गोष्ठी अयोजित की गई

Update: 2025-09-19 15:35 GMT

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी विचार एवं शान्ति अध्ययन संस्थान द्वारा 19 सितंबर 2025 को "भारतीय संस्कृति और वैश्विक समरसता: गाँधीवादी मूल्यांकन" विषय पर अयोजित की गई विचार गोष्ठी में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल मुख्य अतिथि के रूप में तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री अरुण भंसाली विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एम सी त्रिपाठी की विशिष्ट उपस्थिति थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो संगीता श्रीवास्तव ने की।

इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री अर्जुन राम मेघवाल जी ने अहिंसा परमो धर्मः और सत्यमेव जयते के सिद्धांतों को एक सूत्र में जोड़ते हुए कहा की गांधी ने आचरण तथा आत्मीयता के साथ समरसता स्थापित करने के के कई प्रयोग सफल प्रयोग किये। उनके चंपारण सत्याग्रह में महिलाओं को खुले में शौच की व्यवस्था सुधारने को इसी तरह का आचरण का आत्मीयता के साथ सुधार का प्रयोग बताते हुए उन्होंने कहा कि यह महात्मा गांधी का जनभागीदारी का पहला सफल प्रयोग था।


 



उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गांधी ने राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में इंग्लैंड में अपने सादे वस्त्रों के साथ जाकर प्रतिभागिता की और यह साबित किया कि आचरण शुद्ध हो तो बड़े-बड़े महाराज और महारानी झुक सकते हैं । उन्होंने कहा कि समकालीन वन अर्थ वन फैमिली वन फ्यूचर कार्यक्रम महात्मा गांधी के समरसता के दर्शन के समान ही हैं । महात्मा गांधी का पंचतत्व का सिद्धांत इसी ओर इंगित करता है कि जब सभी तत्व सभी मनुष्यों और प्रकृति में एक समान है तो सभी लोग भी समान हैं।

यही भारतीय संस्कृति में निहित एकरूपता का भाव विवेकानंद और महात्मा गांधी जैसे अनेक महापुरुषों ने विश्व में लेकर गए। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने व्यक्ति की गरिमा को सर्वोच्च रखा और साबरमती में अपना मल स्वयं साफ करने के उनके फैसला के केंद्र में यही व्यक्ति की गरिमा को सर्वोच्च रखने की बात थी । आचरण और नैतिकता से जीने पर महात्मा की उपाधि मिलती है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में जब हम यूक्रेन और रूस अब और इजरायल के संघर्षों को देखते हैं तो यह संदर्भ बहुत सम्यक हो जाता है कि हमको आत्मीयता के साथ नैतिकता और आचरण करना होगा और जब दूर स्थान पर हो रहे इन संघर्षों के विषय में भारत के इलाहाबाद शहर में समरसता के संदर्भ में विचार किया जाता है तो यह गांधी के विचारों को बहुत ही सामयिक बना देता है और यही गांधी के वैष्णव जन का सार भी है जो पराई पीर को समझता है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री अरूण भंसाली जी ने अपने विचार रखे और

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राष्ट्र निर्माण में योगदान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय का इलाहाबाद में एक साथ होना ज्ञान और न्याय का अद्भुत समागम है। उन्होंने कहा कि विश्व में संघर्ष और असमानता बढ़ रही है तो भारत की संस्कृति पथ प्रदर्शन कर सकती है क्योंकि सामने वाले को सुनना से अस्तित्व की मूल प्रेरणा है और यह भारतीय संस्कृति का मूल सिद्धांत भी है उन्होंने मानवता को एकजुट रहने का संदेश तभी मिल सकता है जब शांति के मार्ग से संघर्ष से

सह अस्तित्व की ओर बढ़ा जाए। महात्मा गांधी के सर्वोदय का सिद्धांत सिखाता है कि विकास तभी संभव है जब वह समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे । न्यूज़ के इस दौर में सत्य और संवाद हमको समरसता की ओर ले जाते हैं । आज एक सूर्य एक विश्व एक ग्रिड का विचार गांधीजी के समरसता और समता के विचारों का सार है और दर्शाता है कि गांधी आज भी सार्वभौमिक रूप से सार्थक हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो संगीता श्रीवास्तव ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि

मेघवाल जी द्वारा लिखी गई पुस्तक को अपनी पत्नी को समर्पित करना और उनकी पत्नी का जीवन की यात्रा में हर प्रकार से उनकी प्रेरणा और संबल बनना , महात्मा गांधी और बा के रिश्ते की याद दिलाते हैं। और जिस प्रकार महात्मा गांधी ने अपनी किताब "माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ " में अपने जीवन के अनुभव सार्वजनिक किए हैं इस प्रकार मेघवाल जी ने बड़ी सहजता से अपने जीवन की किताब खोलकर रख दी है। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय का महात्मा गांधी से पुराना नाता है महात्मा गांधी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रों को जब संबोधित किया तो यही सिखाया की असली स्वतंत्रता कटु सत्य को आसानी से कह देना होती है और किसी समाज में आम आदमी जब सुगमता से रोटी कमाता है तभी समाज समान होता है । उनकी हरी पोथी नाम की किताब का इलाहाबाद विश्वविद्यालय स्थित प्रेस से प्रकाशन हुआ और देश भर में उनके विचारों को पढ़ा और समझा गया। उन्होंने गांधी पर दुष्यंत कुमार की कविता "मैं फिर यहां आऊंगा" का पाठ करते हुए गांधी को हर दौर में सामयिक बताया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में पुनःअग्रणी स्थान प्राप्त कर रहा है। इस वर्ष यहां 26 राज्यों से छात्रों ने प्रवेश लिया है पिछले दो वर्षों में यहां 60 पेटेंट हुए हैं , 20 करोड़ के प्रोजेक्ट हैं, 1000 से अधिक शिक्षक तथा गैर शैक्षणिक नियुक्तियां हुई हैं और इसे 200 करोड़ से अधिक की संपत्ति प्राप्त हुई है। यह विश्वविद्यालय की नए दौर का प्रतीक है।

इस अवसर पर गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान द्वारा प्रकाशित जर्नल गांधीपथ का विमोचन भी किया गया।

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन गांधी संस्थान के निदेशक प्रो राकेश सिंह ने किया। उन्होंने आशा व्यक्त करी कि इस विचार गोष्ठी से गांधी के विचारों पर समसामयिक संवाद में महत्वपूर्ण योगदान दिया जाएगा। धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रो आशीष खरे ने किया और कहा कि मेघवाल जी ने बेहद सरलता से समरसता को जीवन से जोड़ आज अत्यंत महत्वपूर्ण बातें कहीं जो न्यायमूर्ति श्री औन भंसाली जी के सर्वोदय के संदर्भ को भी परिलक्षित करती हैं। दोनों अतिथियों के प्रशस्ति पत्र का वाचन तथा पूरे कार्यक्रम का संचालन विधि संकाय की डॉ सोनल शंकर तथा राजनीति विज्ञान विभाग की डॉ रितंभरा मालवीय ने किया।

ईश्वर टोपा ऑडिटोरियम में कार्यक्रम में आगमन से पूर्व ईश्वर टोपा कॉम्प्लेक्स में आगमन पर उनको विश्वविद्यालय के एनसीसी कैडेट्स द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।

कार्यक्रम में डॉ दीपाली पंत जोशी, श्री अमित सक्सेना, विश्वविद्यालय अन्य के अधिवक्तागण, प्रो हर्ष कुमार , प्रो अजय जेटली, प्रो कुमार बीरेंद्र अधिष्ठाता विधि संकाय प्रो आदेश कुमार, कुलसचिव प्रो आशीष खरे, अन्य शिक्षक एवं विधि संकाय के छात्र प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

कार्यक्रम डॉ ईश्वर टोपा भवन के ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया।

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