राष्ट्रपति की महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के 45वें दीक्षांत समारोह में गरिमामयी उपस्थिति
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु की आज वाराणसी में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के 45वें दीक्षांत समारोह में गरिमामयी उपस्थिति रही और उन्होंने उसे संबोधित किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि दो-दो भारत रत्न का इस संस्थान से जुड़ना महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की गौरवशाली विरासत का जीवंत प्रमाण है। भारत रत्न डॉ. भगवान दास इस विद्यापीठ के पहले कुलपति थे और पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री इस संस्था के पहले बैच के छात्र रहे थे। उन्होंने कहा कि इस संस्थान के छात्रों से यह अपेक्षा है कि वे अपने आचरण में शास्त्री जी के जीवन मूल्यों को अपनायें।
राष्ट्रपति ने कहा कि इस विद्यापीठ की यात्रा जो हमारे देश की स्वतंत्रता से 26 साल पहले गांधीजी की परिकल्पना के अनुसार आत्मनिर्भरता और स्वराज के लक्ष्यों के साथ शुरू हुई थी। यह विश्वविद्यालय जो असहयोग आंदोलन से जन्मी संस्था के रूप में स्थापित हुआ था, हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम का जीवंत प्रतीक भी है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के सभी छात्र स्वतंत्रता संग्राम के हमारे राष्ट्रीय आदर्शों के ध्वजवाहक हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि काशी विद्यापीठ का नाम महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ रखने के पीछे रखने का उद्देश्य हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान व्यक्त करना है। उन आदर्शों का अनुसरण करके अमृत काल में देश की प्रगति में अपना प्रभावी योगदान देना ही विद्यापीठ के राष्ट्र-निर्माण संस्थापकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि वाराणसी प्राचीन काल से ही भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र रही है। आज भी इस शहर की संस्थाएँ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दे रही हैं। उन्होंने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के छात्रों और शिक्षकों से ज्ञान के केंद्र की परंपरा को बनाए रखते हुए अपने संस्थान के गौरव को लगातार समृद्ध करते रहने का भी अनुरोध किया।