अयोध्या सभी धर्मों के लिए महत्वपूर्ण स्थलः प्रो0 अमर सिंह

Update: 2025-02-24 13:30 GMT

अयोध्या में जन्मे भगवान श्रीराम ने सम्पूर्ण विश्व को पाठ पढ़ायाः प्रो0 अजय प्रताप सिंह

अयोध्या। डॉ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित श्री ऋषभदेव जैन शोध पीठ में ‘अयोध्या महात्म्य (तेरहवीं शताब्दी ई0 से इक्कीसवीं शताब्दी ई0 तक) शीर्षक पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की शुरूआत मुख्य अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो0 अमर सिंह, विशिष्ट अतिथि अंतर्राष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय के पूर्व निदेशक प्रो0 एस0 एन0 उपाध्याय, प्रो अनूप कुमार, विभागाध्यक्ष प्रो0 अजय प्रताप सिंह, ऋषभदेव जैन शोध पीठ के सह आचार्य डॉ0 देव नारायण वर्मा, प्रो0 कविता सिंह, डॉ0 संजय चैधरी, डॉ0 रवीन्द्र कुमार वर्मा, डॉ0 अनूप पांडेय, डॉ0 राजेश सिंह, डॉ0 अवध नारायण, डॉ0 दिवाकर त्रिपाठी, डॉ0 सतीश कुमार सिंह आदि ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो0 अमर सिंह ने सर्वप्रथम अयोध्या का ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व को बताते हुए अयोध्या महात्म्य में जैन धर्म के विभिन्न पहलुओं को किया। उन्होंने कहा कि अयोध्या सभी धर्मों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है न केवल सनातन धर्म के लिए बल्कि जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी यह अत्यन्त पवित्र स्थल है। उन्होंने बताया कि अयोध्या में ही जैन धर्म के पाँच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। तीर्थंकर ऋषभदेव, अजीतनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ, अनन्तनाथ तथा धर्मनाथ ने अयोध्या में जन्म लेकर इस नगरी को जैन धर्मावलम्बियों के लिए पूज्यनीय बनाया। उन्होंने बताया कि तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव ने अयोध्या की धरती से ही सम्पूर्ण विश्व को विकसित करने का मूलमन्त्र दिया।

संगोष्ठी में इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 अजय प्रताप सिंह ने अपने उदबोधन में कहा कि भगवान राम के नाम के बिना अयोध्या के महत्व की चर्चा प्रारम्भ ही नहीं हो सकती। अयोध्या में जन्मे भगवान श्रीराम ने सम्पूर्ण विश्व को मर्यादा और आचरण का पाठ पढ़ाया जिसे आज हम सभी को आत्मसात करना है। उन्होंने भगवान श्रीराम के द्वारा जीवन के सभी पहलुओं पर स्थापित किए गए सिद्धांतों के बारे में विस्तार से बताया। प्रौढ़ शिक्षा विभाग के प्रो0 अनूप कुमार ने अयोध्या के महात्म्य के अंतर्गत अयोध्या की त्याग, तपस्या, वैराग्य तथा पुरातन संस्कृति के बारे में बताया। उन्होंने रामायण से जुड़े सभी पात्रों के त्याग और समर्पण की चर्चा की। संगोष्ठी में श्री रामकथा संग्रहालय के पूर्व निदेशक प्रो0 एस0 एन0 उपाध्याय ने कहा कि अयोध्या और भगवान श्रीराम एक दूसरे के पर्याय हैं। बिना श्रीराम के अयोध्या की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।

उन्होंने श्री राम के आदर्शों को पर चलने के लिए सभी का आह्ववाहन किया। साकेत महाविद्यालय की प्रो0 कविता सिंह ने अयोध्या में जैन धर्म की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अयोध्या नगरी सभी धर्मों के लिए पवित्र है। यहाँ सनातन धर्म के अलावाँ जैन एवं बौद्ध धर्म का भी विकास हुआ है। जैन धर्म के 6 तीर्थंकरों ने अयोध्या नगरी में जन्म लेकर अयोध्या को अनादितीर्थ के रूप में प्रतिपादित किया।

प्रो0 सिंह ने अयोध्या में स्थित जैन धर्म के विभिन्न मंदिरों एवं टोंक के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने सभी जिनालयों की वास्तुकला तथा उसमे स्थापित तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को मूर्तिकला के अनुसार व्याख्या कर उनके महत्व को बताया। इसी क्रम में रमाबाई राजकीय महिला महाविद्यालयए अम्बेडकरनगर के सहायक आचार्य डॉ0 रविन्द्र कुमार वर्मा एवं डॉ0 अनूप पांडेय द्वारा भी अयोध्या महात्म्य से जुड़े अपने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये गए।

संगोष्ठी में ऋषभदेव जैन शोध पीठ के सह आचार्य डॉ0 देव नारायण वर्मा द्वारा उपस्थित सभी अतिथियों का अंगवस्त्र एवं स्मृति चिह्न देकर स्वागत किया गया। उन्होंने अपने संबोधन में ऋषभदेव जैन शोध पीठ की प्रगति आख्या प्रस्तुत की। संगोष्ठी का संचालन महिला अध्ययन केन्द्र की डॉ0 स्नेहा पटेल द्वारा किया गया। अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 आलोक कुमार मिश्रा ने किया। इस अवसर पर डॉ0 अवध नारायण, डॉ0 राजेश सिंह, डॉ0 श्याम बहादुर, डॉ0 प्रतिभा देवी, डॉ0 प्रतिभा सिंह, प्रो0 मनीष सिंह, डॉ0 नवीन तिवारी सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ मौजूद रही।

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