कभी विदेशों में हुआ करता था नाम अब अस्तित्व बचाने की कशमकश में पॉटरी उद्योग
लखनऊ। राजधानी के चिनहट इलाके में स्थित पॉटरी फैक्ट्री का कभी देश दुनिया में काफी नाम था। इतना ही नहीं सामान यूरोप समेत अन्य देशों में एक्सपोर्ट किया जाता था। लेकिन, अब अपनी अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। कोई भी इस क्षेत्र में अपने बच्चों का कैरियर नहीं चाहता है।
कस्बा इलाके में रहने वाले माता छुहरिया के पुजारी बाबा लालता प्रसाद प्रजापति बताते हैं कि वर्ष 1958 में कुम्हार बिरादरी के उत्थान के लिए चिनहट पॉटरी फैक्ट्री लगाई गई थी। तब चिनहट की क्राकरी और टेराकोटा के सामान यूरोप, बेल्जियम, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और न्यूयॉर्क समेत अन्य दुनिया के अन्य स्थानों पर लोकप्रिय था। इतना ही नहीं कारीगरों ने अपनी कार्य कुशलता के दम पर खूब नाम कमाया। कारीगरों ने सरकार के राजस्व को भी बढ़ाने में मदद की। इस दौरान ना सिर्फ मिट्टी से बने सामान खूब बिकते थे बल्कि क्राकरी यानी चीनी मिट्टी से बने कप-प्लेट के अलावा डिनर सेट और अचारदानी जैसे अन्य सामानों की खूब मांग थी। इसके अलावा चिनहट की फैक्ट्री में बने टेराकोटा यानी चिकनी व काली मिट्टी से बने घोड़ा हाथी जैसे खिलौने और गमले का कोई तोड़ नहीं था। पॉटरी फैक्ट्री में बने सामान एक्सपोर्ट होने से कारीगरों को भी मुनाफे का काम दिख रहा था। उनकी मानें तो वर्ष 2005 हस्तशिल्प कारीगरों के लिए सबसे बेहतरीन समय था। लेकिन, वर्ष 2015 के बाद से हालात बेहद नाजुक होते चले गए।