कोई ऊंचा नीचा नहीं कोई छोटा बड़ा नहीं| सब पढ़ेंगे वेद सब सुनेंगे वेद| सबके आचरण शुद्ध होंगे
*स्वामी दयानंद सरस्वती*
*संक्षिप्त कथा*
स्वामी जी का प्रवचन हो रहा था बड़ा शास्त्रार्थ चल रहा था हजारों की संख्या में दर्शक और श्रोता गणमान्य पुरुषों से भरा हुआ पंडाल| सभी बड़े ध्यान मग्न होकर सुन रहे थे| उसी समय एक पुरुष जो बड़े ध्यान से स्वामी जी की बात सुन रहे थे| अचानक से उन्हें ध्यान नहीं रहा धीरे-धीरे सरकते हुए अग्रिम पंक्ति तक पहुंच गए| कुछ लोगों ने विरोध किया कुछ लोग जोर जोर से चिल्लाने लगे| कुछ व्यवधान उत्पन्न होगा कुछ हलचल मची थोड़ी भगदड़ और चीखने चिल्लाने की आवाज सुनकर स्वामी जी शांत हो गए| वे जानना चाह रहे थे क्या बात है|
जो लोग मारपीट पर उतारू थे जोर से बोले गुरुजी यह अछूत व्यक्ति है और देखिए धीरे-धीरे कहां आगे चढ़ा रहा है क्या सीधे आसन पर चढ़ने का इरादा है| जानता नहीं शूद्र इस सबके बीच आगे बैठने का अधिकार किसने दिया| देखा गुरुजी इसमें कितनी धृष्टता की है| अब आप ही बताइए इसे क्या सजा दी जाए|
स्वामी जी ने उन्हें पास बुला कर कहा छोड़ दो इस व्यक्ति को आने दो इसे मेरे पास ईश्वर ने जब हम सब पर कोई भेद नहीं किया तो भेदभाव करने वाले हम कौन हैं| इसके मन में वेट पढ़ने की इच्छा है वेदों में क्या लिखा है जानने की मंशा है| जिज्ञासा है| ललक है| यह आज हमारे आसन के पास बैठेगा| कोई ऊंचा नीचा नहीं कोई छोटा बड़ा नहीं| सब पढ़ेंगे वेद सब सुनेंगे वेद| सबके आचरण शुद्ध होंगे यह आर्य धर्म को मानेंगे|
*डॉ साधना शुक्ला*