सन्1582 में दिवेर छापली का युद्ध हुआ ।जो राजस्थान के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है ।

Update: 2023-05-24 14:02 GMT

महाराणा प्रताप:-

ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की तृतीया रविवार संवत 1597 तथा अंग्रेजी तारीख के अनुसार

9 मई 1540 को उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था । उदयपुर मेवाड़ के सिसौदिया राजवंश के महाराणा उदयसिंह उनके पिता एवं कुम्भल गढ़ की राजकुमारी महारानी जयवन्ता बाई उनकी माता थी ।

वह उस राजवंशकुल मे जनमे थे जो राजस्थान में अपनी शूरवीरता ,पराक्रम त्याग। बलिदान और अपने प्रण के लिये दृढ़ प्रतिज्ञ थे । महाराणा प्रताप की माता जयवन्ता बाई पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी । शायद इसीलिए कुछ इतिहासकार उनका जन्म स्थान पाली मानते हैं ।उस समय मुगल साम्राज्य का विस्तार हो रहा था और वह राजपूतों के साथ संबंध स्थापित कर उनको अपने आधीन कर रहे थे । जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ उस समय उनके पिता उदय सिंह मुगलोंसे युद्ध कर रहे थे। मावली युद्ध में विजय श्री प्राप्त कर चितौड़ पर अधिकार कर लिया ।कुम्भल गढ़ भी उस समय असुरक्षित था। जोधपुर के शक्तिशाली राजा मालदेव राठौड़ी उस समय के सबसे शक्तिशाली राजा थे। अत:सभी ने जयवन्ता बाई को सुरक्षाकी दृष्टि से सोनगरा पाली भेजा था । राणा उदय सिंह वीर महाराणा राणा सांगा के पुत्र थे ।उनकी दूसरी रानी धीरबाई थी जो अपने पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थीं।किंतु सभी के मत से महाराणा प्रताप का उनकी शूरवीता और योग्यता के कारण 28फरवरी 1572 को उनका गोगुन्दा में राज्याभिषेक हुआ । इसके पश्चात दूसरा राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ दुर्ग में 1572 हुआ । इससे अप्रसन्न होकर जगमाल मुगलों के खेमा अकबर के पास चला जाता है‌।

महाराणा प्रताप का पूरा जीवन मुगलों के साथ युद्ध करते बीता। सबसे बड़ी बात मुगल सम्राट अकबर उनकी वीरता से प्रभावित होकर विना किसी युद्ध के ही अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर अपने आधीन लाना चाहते थे परंतु घास की रोटी खाकर भी जिसे अपनी स्वतंत्रता प्यारी हो वह दूसरों की आधीनता कैसे स्वीकार करे । जलाल खांं, राजा भगवानदास , राजा मानसिंह, एवं राजा टोडरमल सभी को सन्धि प्रस्ताव देकर भेजा किंतु कोई भी प्रलोभन उन्हें अपने दृढ़ संकल्प से झुका नहीं सका ।अंत में हल्दीघाटी का वह ऐतिहासिक युद्ध हुआ जिसकी गाथा आज भी हम सुनते हैं । 18जून 1576ई.में मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगलों के मध्य गोगुन्दा के पास हल्दी घाटी के संकरे दर्रा में यह युद्ध हुआ । जिसमें महाराणा प्रतापके साथ 3000घुड़सवार और 400 धनुर्धारी भील थे ।जब कि मुगलों का नेतृत्व कर रहे आमेर के राजा मान सिंह के साथ 10,000सैनिक युद्ध कर रहे थे ।इतनी विशाल मुगलों की सेना के साथ मुट्ठी भर राजपूत और भील कितनी देर टिकते ।अंत मेंमहाराणा प्रताप के घायल होने पर उनके साथियों ने युद्ध करते हुये उन्हें युद्ध स्थल से बाहर भागने का मौका दिया । कहते हैं इस युद्ध में झाला मानसिंह ने अपने प्राण देकर महाराणा प्रताप को युद्ध सथल छोड़ने पर विवश किया था मेवाड़ की रक्षा के लिये । उनका प्रिय घोड़ा चेतक की भी उनको उनके गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचा कर ही अपनी स्वामिभक्ति का परिचय देते हुये प्राण त्यागे । 12वर्ष तक अपने सैनिकों के साथ घने जंगलों में किसी प्रकार से नजीवन निर्वाह करते भामाशाह जैसे दानी के अनुग्रह से सैन्य सामग्री जुटा कर तैयारी करते हुये अपने पूर्ण मनोबल के साथ महाराणा प्रताप ने शक्ति अर्जित कर युद्ध के लिये तैयार हुये ।

सन्1582 में दिवेर छापली का युद्ध हुआ ।जो राजस्थान के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है ।इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त कर अपना खोया हुआ सम्मान और खोये हुये राज्यों पर जिनको मुगलों ने अपने आधीन कर रखा था विजय प्राप्त की ‌।इसके बाद मुगलों औरमेवाड़ के मध्य कई छिटपुट युद्ध होते रहे । इसीलिए कर्नल जेम्सटाॅड ने इसे * मेवाड़ का मैराथान कहा* ।

महाराणा प्रताप ने जिस समयसिंहासन पर बैठे उस समय मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था। बारहवर्ष के अपने शासन काल में अकबर उसमें कोई परिवर्तन नहीं कर सका ।बाद में भी मेवाड़ पर महाराणा ने मुगल सेना को हरा कर अपनाअधिकार प्राप्त किया यहमेवाड़ के लिये स्वर्णिम युग था जब 1585 में मुगल आधीनता से मुक्ति मिली । इसके11वर्षबाद 19जनवरी 1597में उनकी मृतयु होगई । इसतरह एक सच्चे राजपूत, शूरवीर,देशभक्त योद्धा मातृभूमि के लिये प्राण निछावर करने वाले मातृभूमि केदुलारे महाराणा प्रताप अपने पीछे अपनी यशोगाथा छोड़कर दुनिया सेविदा हुये ।।

।जै महाराणा प्रताप।

उषा सक्सेना

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