उषा सक्सेना:-
विषय:- *पंछी*
पर कतर आजाद पंछी के
पिंजरे में कैद कर रखा
जब मन भर गया तो,
यह कहकर कि -
अब तुम आजाद हो।
खोल कर पिंजरा
उसे आजाद कर दिया
यह कहते हुये कि -
जा सकते हो अपनी
मन चाही जगह जहां भी
जाना चाहो वहां पर ।
पंछी ने पिंजरे से निकल
खुली हवा में सांस ले
देखा ऊंचा आकाश था ।
उड़ने के लिये क्या करे
वह चाह कर भी तो
उड़ा नहीं ,कैसे उड़े ?
पर विहीन पंछी
बेबस लाचार था
पर कतर तुमने उसे
पिंजरे में कैद किया,
वह पंछी केवल तुम्हारा था ।
आकर फिर बैठ गया
उसी में होकर उदास
फिर यही ज़िंदगी है ।
उषा सक्सेना :-स्वरचित