मेरी तीन कहानियां भाग दस
ब्रोचा हॉस्टल का वो कमरा
प्रमोद के घर से आते हुए जो दुर्घटना हुई उसमे कई मिनट तक मौत से सामना रहा , कुछ लोगो ने बताया की "तोहार माई जुतिया, एक व्रत , का अच्छे से पालन किया था इसलिए तुम बच गये नही तो इतने व्यस्त हाई वे में इतनी देर में तो कोई भी वाहन उपर से चढ़ कर निकल सकता था |" खैर माँ को याद कर और भगवान को धन्यवाद अदा किया की मेरी जान बख्स दी पर मेरी माँ की जान इतनी जल्दी क्यों ले ली , क्या उनकी माँ ने जुतिया की पूजा ठीक से नही की थी | पर ऐसा होना तो संभव नही क्योंकि भारत में कोई भी माँ अपने बच्चे के लिए क्या कर सकती है उससे पूरा इतिहास भरा पड़ा है | मैने ये माना की भगवान् के पास मेरी माँ के होने का फायदा मुझे मिल गया , माँ के उनके पास होते उसके बच्चे का बाल भी बांका करना भगवान् के भी बस का नही है और यही एक विश्वास आज तक जिन्दा रखे है कि माँ है तो क्या फिकर है |
पर धरती पर सब एक जैसा नही रहा , इस पैर के टूटने का और छः महीने तक पढाई से लगभग दूर होना घातक रहा और मुझे मनोविज्ञान के प्रथम साल में सिर्फ तिरपन प्रतिशत अंक से संतोष करना पड़ा | अब थोडा अच्छा नही लग रहा था | दुसरे साल को अपना साल बनाने के लिए योजना बनायीं और प्रमोद पाण्डेय के ब्रोचा हॉस्टल में हम लोगो ने भी जगह बना ली | ब्रोचा हास्टल का रूम नंबर २२७ अब अपना घर हो गया | अभी कुछ दिनों तक ही मेस और हास्टल का आनंद लिया था की इक दिन सुबह उठते ही जैसे पहाड़ टूट पड़ा |
कई विद्यार्थी कम गुंडे ज्यादा जैसे तत्व हमारे कमरे पर आ गये और कहने लगे की चलो भैया ने बुलाया है | मेरे साथ उस समय अश्विनी पाण्डेय था और प्रमोद , हम लोगो को भगवान दास हास्टल के एक कमरे में ले जाया गया | हमे लग रहा था कि आज कुछ होने वाला है | हमारे दिल की धड़कन बढ़ गयी थी , अश्विनी काफी परेशान लग रहा था | कमरे के अंदर का वातावरण एक दम फ़िल्मी था | कोई राजेश भुअरी नेता जी थे , नाम में भुअरी इसलिए जुड़ गया की उनकी आँखे भूरी थी | अब हम तो अभी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का गणित समझ रहे थे की काफी उलझा सवाल सामने आ गया | अब वो लोग कुछ कहते उससे पहले ही चेलो ने भैया जी जिन्दा बाद का नारा लगाकर हमारे अन्दर के जोश को ठंडा कर दिया , लगा ज्यादा बोलेंगे तो कुछ भी हो सकता है |
उन्होंने बिना लाग लपेट के पूछा की नए हो , और प्रश्न तो प्रमोद से था क्योंकि वो उस कमरे का जायज मालिक था और हम तो हॉस्टल लाइफ को जीने और समझने के लिए वहां थे | नेता जी को भी पता था की ये तो क्या बोलेगा बस प्रमोद को समझा देना है | प्रमोद को समझा दिया और हमारा कमरा नेता जी का चुनाव कार्यालय बन गया | अब हम लोगो को अपना सामान निकालने के लिए कुछ समय दिया गया | मरता क्या न करता , अब जब मरी रहे थे तो मैंने धीरे से कहा की हम लोगो तब तक खाली नहीं करेंगे जब तक हमको दूसरा कमरा नेता जी व्यवस्था कर के नहीं देंगे |
नेता जी की भृकुटी तन गयी की ये कल का छोकरा हमसे कमरे के बदले कमरा मांग रहा है , पर हम भी थे की अपना तो कुछ जाना नही एक आखिरी दम लगा ले जिससे कुछ मिले तो अच्छा न मिले तो भी कोई बात नही क्योंकि हम तीनो ही बनारस के वासी थे और तीनो का ही घर यूनिवर्सिटी से मात्र आठ –दस किलोमीटर दूर था | बात बन गयी और नेता जी को लगा की ये सब अगर कमरा खाली नही करेंगे तो उनकी इज्जत जायेगी और चुनाव में भी असर पड़ेगा , यही सब सोच कर उन्होंने हम लोगो को अय्यर हॉस्टल का एक कमरा दिलवा दिया और हम चल पड़े उसमे रहने |
कई बार हौसला चिड़िया को बाज से भी लड़ा देता है , हार और जीत तो इतिहास में दफ़न हो जाते है पर शायद हमने हौसले को इतिहास में उतनी जगह नही दी जितना उसे मिलना चाहिए