मेरी तीन कहानियां भाग ग्यारह : देहरादून यात्रा और असफलता के क्षण
बीएचयू में समय पंख लगाकर उड़ रहा था | पहले साल के ख़राब नम्बरों के बीच अब दुसरे साल फैकल्टी में सबसे अच्छे नम्बर आये और दुसरे साल ६८ प्रतिशत नम्बर के साथ पहले साल का ५३ प्रतिशत मिलकर प्रथम श्रेणी बन गया था और आशा थी की अंतिम साल में अच्छा नम्बर आएगा और बीए प्रथम श्रेणी से पास हो जायेंगे | अब घर से प्रशांत के साथ साइकिल से आने की जगह ब्रोचा होस्टल अड्डा बन चुका था | उस समय अपने मनोज भाई के पास नई नई मारुती वैन आई थी जिसका मजा हम लोग भी लूट रहे थे |
इसी दरम्यान अश्विनी पाण्डेय का हमारे ग्रुप में प्रवेश हुआ | वो भेलुपुरा के पाण्डेय परिवार से थे और जो सबसे अच्छी बात थी उनकी माता जी के हाँथ का भोजन | अश्विनी घर से जो खाना लाता वो हम खा जाते और वो ख़ुशी ख़ुशी हमारे मेस का खाना खाता था | हमें उसकी माँ के हाथ का खाना अच्छा लगता और उसे हमारे मेस का |
अश्विनी भाई का मन पढने में कम और लडकियों के साथ दोस्ती में ज्यादा लगता था | वो क्लास में कम और ड्रामा क्लास में ज्यादा दिखाई देते थे | अब परीक्षा की बारी आई तो हम सब अपना अपना प्रश्न पत्र लेकर उत्तर लिख रहे थे तभी किसी के सुबकने की आवाज आई | देखा तो अपने अश्विनी भाई कापी रख कर रो रहे थे | अब लगा की कुछ इसे परेशानी है| हम लोगो ने पूछा तो बताया की कुछ आ नही रहा है | खैर जब परीक्षक को लगा की ये बच्चा कुछ नही लिख पा रहा है तो कहा की इसको कुछ बता दो लिख ले पर अश्विनी भाई ईमान के पक्के थे | उन्होंने कहाँ की फेल हो जायेंगे पर किसी और का बताया हुआ नही लिखेंगे | खैर किसी तरह वो प्रश्न पत्र हल कर बाहर आये | तो हमने और आनंदेश्वर शर्मा ने उनको सांत्वना दिया | पर परिणाम वही था अश्विनी भाई थर्ड डिविसन के करीब नम्बर पा कर हम लोगो के साथ तीसरे साल में प्रवेश कर गए थे | अब हम लोगो ने तीसरे साल के शुरू में प्रतियोगी परीक्षा की तयारी शुरू कर दी | एस एस सी परीक्षा का परिणाम आया जिसमे मैंने अच्छे नम्बर से पास कर लिया था और फिजिकल के लिए करीब तीन महीने का समय मिल गया जो देहरादून में होना था | अब सब को लगने लगा की मै अस्सिस्टेंट कमांडेंट बन कर ही आऊंगा क्योकि फिजिकल में मेरे फेल होने का कोई सवाल ही नही था |
तीन महीने के अथक परिश्रम के बाद जब मेरी तैयारी पूरी हो गयी तो पता नही कहाँ से अश्विनी भी आ गया और उसने कहा की मै भी पास हो गया हु और मेरा भी फिजिकल होना है |
अब चुकि उसको ज्यादा समय नही मिला और उसका शरीर भी उस तरह से फिट नही था जिससे की वो फिजिकल एग्जाम पास कर सके पर वो भी जाना चाहता था | हम दोनों साथ देहरादून पहुचे और आईटीबी पी के हेडक्वार्टर में साथ साथ रुके | अब पहले ही दिन पंगा हो गया | खाने में रोटी के साथ मांस था और मै ठहरा शाकाहारी , मैंने कहाँ की मुझे कुछ और दे दो तो वहा का अधिकारी बोला की सेना में शामिल होने आये हो और ये सब नही खाओगे तो कैसे चलेगा | वो अड़ा रहा और हम भी अड़े रहे की ये नही खायेंगे , अंत में खीर खाकर ही रात गुजारी |
अब अगले दिन फिजिकल की बारी थी और सुबह पहले अश्विनी का फिजिकल था और जैसे मुझे पहले से पता था , वो फेल हो गया | मुझे सारा फिजिकल देखने का मौका मिला और मै एकदम निश्चित था की मेरा चयन हो जाएगा | जब मेरी बारी आई तो पता चला की राजेश पायलेट आये है और अब हमारा एग्जाम अगले दिन होगा |
हम सब वापस आ गये | अश्विनी ने कहा की चलो मसूरी बगल में ही है और हम केम्पटी फाल में नहा कर वापस आ जायेंगे | मैंने कहा की यहाँ से तो जाने की आज्ञा नही मिलेगी तो उसने कहा की हम चोरी से चलते है | हमने एक ख़ुफ़िया रास्ता खोजा और उससे निकल कर बिना किसी को बताये मसूरी में केम्पटी फाल में नहाने के लिए निकल पड़े | उधर से एक वैन जा रही थी जिसको हाथ दे कर रोका तो पता चला की वो नाविवाहिता जोड़ा है जो हनीमून मनाने मसूरी आया है | किसी तरह मिन्नत कर हम उनके साथ मसूरी निकल पड़े |
मसूरी आते ही हम केम्पटी फाल में नहाने के लिए कूद पड़े , अभी मेरा पैर पानी में अंदर पड़ा ही था की अचानक दर्द हुआ , पैर पानी के उपर उठाया तो खून की बौछार दिखाई दी | जल्दी से घबरा कर पैर पानी के अंदर डाल दिया | केम्पटी फाल का पानी काफी ठंडा था इसलिय पानी के अंदर घाव नही पता चल रहा था | जब नीचे हाथ डाल कर निकाला तो एक बियर की बोतल का टुकड़ा मेरे अंगूठे को काट चुका था और उसके अंदर एक पत्थर घुस गया था | किसी तरह से पानी के अंदर ही हाथ डाल कर पत्थर निकाला पर खून बहने का सिलसिला चलता रहा |
किसी तरह रुमाल से बाँध कर जब बाहर निकले तो देखा की पैर काफी कट चुका था और उसमे स्टिच लगानी पड़ेगी | आज के केम्पटी फाल और १९९३ में जमीन आसमान का अंतर है | तब के समय आस पास कोई डॉक्टर नही था और खून रुकने का नाम नही ले रहा था | हमारे पास न कोई साधन और न ज्यादा पैसा | किसी तरह से नवविवाहिता जोड़े को मना कर उनकी गाड़ी से जब करीब दस किलोमीटर तक आया तो डॉक्टर मिला और उसने पैर में स्टिच लगा कर उसपर जोर देने से मना कर दिया |
अब सारा सपना टूट चूका था | जिस फिजिकल की तैयारी तीन महीने से चल रही थी वो मेरे से दूर चला गया | वहा किसी को बता भी नही सकते थे और मेडिकल तो देना दूर की बात थी क्योंकि बिना आज्ञा के हम चोरी से बाहर घुमने आये थे |
अब लौट के बुद्धू घर को ही पहुचे और बीए का तीसरा साल हंगामा खेज रहा जहाँ पर सफलता और असफलता दोनों मिली पर सबसे अच्छी बात थी की हम और अश्विनी अब अच्छे दोस्त हो चुके थे |
आगे की कहानी अगले भाग में .....